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हमारी भूमि पर कब्जे

Published: Jan 16, 2015 12:12:00 pm

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हमारी सवा लाख वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन और पाकिस्तान के कब्जे को क्या माना जाए? चीन और पाç…

हमारी सवा लाख वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन और पाकिस्तान के कब्जे को क्या माना जाए? चीन और पाकिस्तान की दादागिरी या हमारी कमजोरी? जाहिर है जमीन के इतने बड़े हिस्से पर कब्जा एकाध महीने में तो हुआ नहीं होगा। कब्जे की यह प्रक्रिया सतत रूप से चली होगी। ऎसा मानकर चला जा सकता है। चीन और पाकिस्तान ही नहीं, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे हमारे छोटे-छोटे पड़ोसी देश अक्सर हमें आंखें दिखाते रहते हैं।

कभी खबरें आती हैं कि श्रीलंका ने हमारे मछुआरों को पकड़ लिया, तो कभी बांग्लादेश घुसपैठ के नाम पर हमें आंख दिखाता है। सरकार जमीन के इस कब्जे के बारे में चाहे जो कहे या माने, लेकिन देश जानना चाहता है कि ऎसी नौबत आती ही क्यों है?

क्या इसलिए कि पिछले कुछ सालों से देश राजनीति के ऎसे चक्रव्यूह में फंस चुका है जहां सरकार के पास विदेश नीति पर ध्यान देने के लिए समय ही नहीं है। एक दौर में दुनिया में भारत की गिनती नेतृत्व करने वाले देशों में होती थी, लेकिन वह पहचान धीरे-धीरे धूमिल पड़ी है। दिल्ली में सरकार चाहें अटल बिहारी वाजपेयी की रही हो या दस साल से मनमोहन सिंह की, दुनिया में हम अपना रूतबा बनाए रखने में नाकाम रहे हैं।

सरकार सवा लाख वर्ग किलोमीटर भूमि पर जब पड़ोसियों का कब्जा मान रही है तो उसे यह भी बताना चाहिए कि जमीन वापस लेने के लिए उसने क्या किया?


सरकार चला रहे राजनेताओं की तमाम विदेश यात्राओं का नतीजा कभी सकारात्मक देखने में नहीं आया। मीडिया में तो विदेश यात्राओं के सफल रहने की बातें आती हैं लेकिन हकीकत में वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति नजर आती है। आर्थिक मोर्चे पर हमने तरक्की की, लेकिन विदेशी मोर्चे पर हम लगातार शिकस्त खाते रहे हैं।


चीन, पाकिस्तान, श्रीलंका या बांग्लादेश हम को आंख दिखा रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि आज भारत के साथ मजबूती से कोई देश खड़ा नजर नहीं आता। 1971 के दौर में पाकिस्तान के साथ युद्ध में अमरीका अगर हमारे दुश्मन का साथ दे रहा था, तो तब सोवियत संघ मजबूती के साथ भारत के साथ खड़ा था। मानना पड़ेगा कि जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के दौर में अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की जो पहचान थी वह आज नहीं है।

आबादी के लिहाज से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश को छोटा-सा देश धमकी दे डाले, यह करोड़ों भारतीयों के लिए पीड़ा की बात है। सरकार सार्वजनिक रूप से सवा लाख वर्ग किलोमीटर भूमि पर पड़ोसियों का कब्जा मान रही है तो उसे यह भी बताना चाहिए कि जमीन वापस लेने के लिए उसने क्या किया? समय की भी यही मांग है। उसे देश को यह भी भरोसा देना चाहिए कि भविष्य में कभी किसी को ऎसी हरकत करने का मौका नहीं दिया जाएगा जिससे देश को शर्मसार होना पड़े।
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