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अमरीकी सख्ती पर भारी चीनी रहनुमाई

Published: Jan 10, 2018 02:59:59 pm

चीन अमरीका से बराबरी की कोशिश में है और इसलिए वह उ. कोरिया और पाकिस्तान दोनों को अमरीका का सरदर्द बना रखा है।

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– प्रो. स्वर्ण सिंह, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार

गत सप्ताह अमरीका ने पाकिस्तान से अपनी सुरक्षा सहायता रोक लेने का ऐलान किया। इसकी पाकिस्तान में तिलमिलाहट और भारत में गर्मजोशी भरी प्रतिक्रिया हुई किंतु इसके दूरअंदेशी परिणामों से ध्यान हटता नजर आता है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नवाज शरीफ से दिसंबर 2016 की टेलीफोन वार्ता में पाकिस्तान को ‘एक शानदार देश’ बताते हुए आपसी दीर्घकालीन दोस्ती की उम्मीद जताई थी। उन्होंने नये साल के पहले ट्वीट में नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि अमरीका पाकिस्तान को पिछले 15 साल में 33 अरब डॉलर की सहायता दे चुका है, पाकिस्तान ने उसके बदले में उन्हें ‘झूठ और फरेब’ के अलावा कुछ नहीं दिया, वो लगातार ‘आतंकियों को सुरक्षित ठिकाने’ मुहैया करता जा रहा है।
अमरीका ने 25.5 करोड़ डॉलर (विदेश मंत्रालय) और फिर नब्बे करोड़ डॉलर (रक्षा मंत्रालय) की सहायता पर रोक लगा दी। नाराजगी जाहिर करते हुए, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद अब्बासी ने कहा कि पिछले 15 साल में पाकिस्तान, आतंकवाद से लडऩे में 120 अरब डॉलर लगा चुका है और उसमें अमरीका की सहायता महत्वहीन है। अपने इस जटिल अप्रत्याशित और खतरनाक सहभागी का ध्यान रखते हुए अमरीका ने कहा कि सहायता पर केवल रोक लगी है, उसे रद्द नहीं किया गया है। पिछले पांच दशकों में पाकिस्तान-अमरीका के रिश्तों में कई बार ऐसे उतार-चढ़ाव आए हैं। इस बार राष्ट्रपति ट्रंप के पाकिस्तान पर लगातार दबाव बढ़ाने की नीति में उनकी पूरी टीम उनके साथ है।
हक्कानी नेटवर्क को लेकर बढ़ती चिंताएं अफगानिस्तान में उनकी रणनीति को चुनौती दे रही हंै। 2008 में राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या की कोशिश से लेकर जून 2017 में काबुल के अत्यधिक सुरक्षित राजनयिक परिक्षेत्र में बड़े धमाके तक कई बड़े आतंकी हमलों में हक्कानी नेटवर्क का हाथ माना जाता है। इस नेटवर्क के सरगना जलालुद्दीन हक्कानी को अस्सी के दशक में रूस से लडऩे के लिए अमरीका ने ही बढ़ावा दिया था। 2013 में मुल्ला उमर की हत्या के बाद जलालुद्दीन के पुत्र सिराजुद्दीन हक्कानी को 2015 में तालिबान काउंसिल का डिप्टी लीडर चुना गया था। आज उसे पाक की आईएसआई और अलकायदा दोनों का समर्थन हासिल है।
यह नेटवर्क पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान इलाके में छाया हुआ है। यहां चट्टानी इलाके में कानून-व्यवस्था बनाए रखना बेहद मुश्किल है। इस नेटवर्क पर रोक लगाने में पाकिस्तान विफल रहा है अगस्त 2017 में जब राष्ट्रपति ट्रंप ने नई दक्षिण एशिया रणनीति का खुलासा किया, तभी पाकिस्तान को अराजकता, हिंसा और आतंक के दलालों को सुरक्षा मुहैया कराने का आरोप लगाया था। बाद में सुरक्षा सलाहकार जनरल एचआर मकमास्टर ने कहा था कि पाक को तालिबान व हक्कानी नेटवर्क के प्रति व्यवहार अपना बदलना होगा। रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने अक्टूबर 2017 में कांग्रेस में दिए संबोधन में तो पाकिस्तान का गैर नाटो मित्र का स्तर रद्द करने की धमकी दे दी थी। बाद में जब उपराष्ट्रपति माइक पेंस दिसंबर में अफगानिस्तान के दौरे पर गए तो उन्होंने फिर जोर देकर कहा कि तालिबान की सहायता करने के लिए पाकिस्तान जवाबदेह है।
इस बार मामला ज्यादा उलझा हुआ है क्योंकि पिछले गतिरोधों से हटकर इस बार पाकिस्तान, चीन व रूस से बहुत करीब है और चीन जो अमरीका को एशिया-प्रशांत क्षेत्र से हटाना चाहता है, पाक को अपनी रणनीति का महत्वपूर्ण घटक मानता है। इसीलिए, नए साल के ट्रंप के ट्वीट के जवाब में चीन ने तत्काल अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंक से लडऩे में पाकिस्तान के ‘सराहनीय योगदान’ का जिक्र करते हुए आपसी सामरिक दोस्ती को दोहराया। चीन ने पांच दशकों में उत्तर पूर्व एशिया में उ.कोरिया व द. एशिया में पाक को परमाणु शक्ति बनने में सहायता इसलिए की ताकि ये देश जापान और भारत को उलझाए रखने में सक्षम रहें।
आज चीन, जापान और भारत से अपने आप को बहुत शक्तिशाली मानता है और अमरीका की बराबरी करने की कोशिश में है। इसलिए वह उ. कोरिया और पाकिस्तान दोनों को अमरीका का सरदर्द बना रखा है। आज चीन का राजनैतिक समर्थन और आर्थिक व सैन्य सहायता पाकिस्तान का सबसे बड़ा बल है। अपने ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ में चीन पाकिस्तान में 60 अरब डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता कर चुका है। इसीलिए, अमरीका की आर्थिक और सैन्य सहायता पर रोक का सीमित ही असर होगा।
बहुमुखी रणनीति के अंतर्गत अमरीका को आज पाकिस्तानी जनरलों की यात्रा पर अंकुश, उसके गैर नाटो मित्र स्तर को रद्द करने, आधुनिक हथियारों पर रोक लगाने के साथ पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने की जरूरत है। इसके साथ-साथ पाकिस्तान के लोकतांत्रिक ढांचे को सुदृढ़ करने और चीन पर भी दबाव बनाए रखना जरूरी होगा। पाकिस्तान में परमाणु हथियारों के साथ आज अराजकता और आतंक का माहौल, विश्व में बड़ा खतरा पैदा कर सकता है इसलिए अमरीका को सभी बड़ी शक्तियों को साथ लेकर पाकिस्तान पर दबाव बनाने की जरूरत है। जब तक चीन व रूस जैसे बड़े देश पाकिस्तान के साथ रहेंगे तब तक अमरीका की सहायता रोकने से कुछ हासिल न होगा।
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