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परिवारवाद

Published: Sep 14, 2015 10:41:00 pm

लेकिन राजनीति में तो घाघ नेता अपने कपूत को भी माननीय का
उजला मुखौटा पहना कर जनता के माथे लाद देना चाहते हैं

Opinion news

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भारतीय राजनीति का भी जवाब नहीं। जब भी वंशवाद की बात आती है हर पार्टी के लोग सड़क से एक पत्थर उठा कर गांधी परिवार पर फेंक देते हैं। इसका कारण यह है कि नेहरू-गांधी परिवार को राजनीतिक वंशवाद की जननी माना जाता है। मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी यानी पांच पीढ़ी तो साक्षी हैं।

आप शोध करने लगे तो फिर पता चलेगा कि पांच नहीं तो तीन पीढ़ी के वंशवादी एक नहीं सैकड़ों मिल जाएंगे। और अब तो इस रोग से एक-दो नहीं लगभग सारे दल गंभीर रूप से पीडित नजर आने लगेंगे। सिर्फ वामपंथियों को इसका अपवाद मान सकते हैं। क्योंकि वामपंथी अभी तक एकाध सूबों को छोड़ ढंग से कहीं सत्ता में नहीं रहे।अगर उन्हें भी सत्ता का निरन्तर सान्निध्य मिल जाता तो वहां भी वंशवाद हावी होते देर नहीं लगती। लेकिन पश्चिम बंगाल में लगातार सत्ता में रहने के बावजूद वंशवाद नहीं पनपा इससे यह तो जाहिर हो ही जाता है कि वामपंथी अभी इस दौड़ में शामिल नहीं हैं।

इन दिनों बिहार में चुनाव है और वहां लालू पुत्र ने बाकायदा एक प्रेस कॉन्फें्रस में अपने प्रदेश के नेताओं और उनके पुत्रों का नाम ले लेकर बताया कि कौन-कौन से परिवार अपने बेटों, बंधुओं, भाइयों, पत्नियों के लिए टिकट की जुगाड़ में जी जान से जुटे हैं। आंध्र प्रदेश में रामराव, महाराष्ट्र में शरद पवार, तमिलनाडु में करूणानिधि, कश्मीर में अब्दुल्ला, बिहार में लालू, उत्तर प्रदेश में मुलायम, राजस्थान में राजे, पंजाब में बादल, हरियाणा में चौटाला यानी लगभग हर प्रदेश में परिवारवाद मौज मार रहा है।

यह तो अटल और मोदी परिवारवाद से परे हैं वरना भाजपा में भी एक नहीं दर्जनों ऎसे नेता हैं जो अपनी औलादों को राजनीति के पालने में झुला कर सत्ता सुख प्रदान करने को बेताब नजर आते हैं। वैसे एक बात कहें। अपने देश में करोड़ों ऎसे बाप हैं जो अपने बेटों को अपने ही रास्ते पर चलाना चाहते हैं। डॉक्टर का बेटा चाहे “ढोल” ही क्यों न हो पर वह जैसे-तैसे उसे डॉक्टर की डिग्री ही दिलाना चाहता है।

यही हाल वकालत, मास्टरी, सुनारी, लुहारी, व्यापार सभी धंधों में है पर इन्हें वंशवाद नहीं कहा जा सकता लेकिन राजनीति में तो नेता अपने कपूत को भी माननीय का मुखौटा पहना कर जनता के माथे लाद देना चाहते हैं। एकाध का नाम ले लिया तो हमारे गंजे सिर पर ओले पड़ सकते हैं लेकिन हम तो जनता की बलिहारी हैं। अजी कौन कहता है कि नेताजी के खानदान वालों को ही जिताओ। वोट तो आप ही देते हैं न। अपने कर्मो का भार दूसरों पर लादना कोई हमसे सीखे। पहले सिर पर बिठाते हैं फिर री-री करते रहते हैं। जय हो दानवीर जनता की।
राही
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