एक दिन सारे यदुवंशियों ने द्वारिका के समुद्र के किनारे इतना सुरापान किया कि आपस में ही भिड़ गए। यहां तक कि उन्होंने कृष्ण और बलराम तक पर आक्रमण कर दिया। परिणाम हुआ गृहयुद्ध और उस युद्ध में सारे यदुवंशी परस्पर मर कटे।
दुखी बलराम तीर्थयात्रा को निकल गए और कृष्ण खिन्न होकर जंगल में जा बैठे जहां एक भील के तीर से उनकी मृत्यु हो गई। एक सर्वशक्तिशाली महान वंश स्वयं ही नष्ट हो गया। चलिए भूतकाल से निकल कर वर्तमान में आ जाते हैं।
लगभग यही कथा अब उत्तर प्रदेश के यादव वंश में दोहराई जा रही है। हमें याद है कि एक सभा में सपा सुप्रीमो के सिर पर एक मोर मुकुट सजा कर उन्हें ‘कलियुग का कृष्ण’ जताने का प्रयास किया गया था। बहरहाल अब उनके भाई और पुत्र में सीधी-सीधी टकराहट होती नजर आ रही है। सपा सुप्रीमो ने अपने बेटे प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया तो बेटे ने चाचा के हाथ से मलाईदार मंत्रालय छीन लिए और राज्य के सबसे बड़े बाबूजी को बदल दिया।
राजनीति के यही मजे हैं। यहां वक्त पडऩे पर बेटा बाप के खिलाफ खड़ा हो जाता है। दक्षिण में ससुर को उसके जंवाई ने पटखनी खिलाई थी। देश की शीर्ष नेता के खिलाफ बहू ने बगावत की थी। कई बार तो घरवली ही अपने पति के खिलाफ ताल ठोक लेती है। त्रेतायुग के भीषण गृहयुद्ध में कृष्ण का यादव वंश तबाह हो गया था अब यूपी के इस परिवार का यह राजकलह क्या गुल खिलाएगा? वैसे भी हमारे यानी जनता के हाथ में है क्या? पर ताली पटका तो कर ही सकते हैं।