कसम से जब से खबर पढ़ी है कि
देश से छह हजार करोड़ का काला धन बैंक के माध्यम से हांगकांग चला गया है, हम तो
फिक्र में पड़ गए हैं। सरकार बनने से पहले हमारे नमो भाई ने अपनी छाती फुला-फुला कर
दावा किया था कि उनके प्रधानमंत्री बनते ही छह महीने में विदेशों में जमा काला धन
वापस आ जाएगा और पन्द्रह-पन्द्रह लाख रूपए सभी नागरिकों को मिल जाएंगे। लेकिन यहां
तो “उल्टे बांस बरेली को” चल रहे हैं।
काला धन वापस आने की बजाय छह हजार करोड़ का
काला धन हांगकांग चला गया। हम तो मोटा-मोटी यह समझते हैं कि जब काला धन वापस आने पर
हमारे खातों में पैसे जमा होते तो काला धन देश से बाहर जाने का मतलब है कि हमें
बैंक में और पैसे जमा कराने पड़ेंगे। कसम से उसी दिन से चक्कर में हैं और देश के
खजाना मंत्री जेटली से पूछना चाहते हैं- जरा बता तो दीजिए कि हमारे हक का कितना
पैसा विदेश चला गया।
सच तो यह है कि इस काले धन पर सबसे पहला हक उन ईमानदारों का है
जो बकायदा समय पर अपना टैक्स चुकाते हैं। सरकार तो सीधे-सीधे हमारी पगार से ही
टैक्स काट लेती है जिसे लोग “टीडीएस” के नाम से जानते हैं। एक तरफ करोड़ों लोग हैं
जिनका “टीडीएस” कटता है और दूसरी तरफ ऎसे टैक्स चोर हैं जो हांगकांग से मूंग, उड़द,
चौला, अरहर की दाल खरीदने के लिए रूपया भेजते हैं।
मजे की बात कि हांगकांग में दाल
पैदा होती ही नहीं। हांगकांग तो खुद दालों का आयात करता है। इस बात को जरा यूं
समझिए कि कोई हमसे केले खरीदने का करार करे जबकि हमारे घर के सामने बनी क्यारी में
केले तो क्या एक बैंगन तक पैदा नहीं होता। अलबत्ता वहां एक गुलाब का पेड़ लगा था,
वो भी बरसात नहीं होने से बुरी तरह झुलस गया। मजे की बात कि जो कम्पनियां लेन-देन
कर रही हैं उनका कोई अता-पता ही नहीं मिल रहा। अब किससे जाकर पूछे कि भाई साहब इस
काले धन का क्या होगा? क्या यह कभी देश में आएगा या फिर ऎसे ही बाहर जाएगा जैसा यह
छह हजार करोड़ गया है।
अब आप ही बताए करें तो करें क्या? ऎसे वक्त के लिए हमारे
बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि बेटा सब्ा्र कर। सब्ा्र के पैमाने को न छलकने दें। यूं
भी आम आदमी सब्ा्र करने से ज्यादा और कर भी क्या सकता है। काले धन के बारे में किस
किसने क्या-क्या नहीं कहा। कितने सब्जबाग दिखाए पर हो उल्टा रहा है। इस अर्से में
जितना आया उससे ज्यादा चला गया। गाते रहो काले काले गीत। छोड़ मेरे मीत। सिर्फ
लफ्फाजी करना और जुमले फेंकना ही है नेताओं की पुरानी रीत। तू तो अपनी जेब बचा न
जाने कौन कब काट ले।
राही