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मां के लिए दिन की क्या जरूरत

locationनई दिल्लीPublished: May 11, 2020 06:47:54 pm

Submitted by:

Prashant Jha

गुलाब कोठारी का अग्रलेख मां पर लोगों की जबरदस्त प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। देशभर के लोगों ने इस अग्रलेख को सराहा है।

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मां के लिए दिन की क्या जरूरत

मां के गुणगान के लिए तो साल के 365 दिन ही कम है। जिस मां की कोख से हमने जन्म लिया, उसके आंचल की छांव में पले-बढ़े, उस मां के लिए यह एक दिन पाश्चात्य संस्कृति का दिया हुआ है। मदर्स डे के रूप में यह एक दिन मां के सम्मान से ज्यादा उसका अपमान करता है। रवि वर्मा, बमेतरा

मां को लेकर ऐसे आलेख की जरूरत
गुलाब कोठारी का अग्रलेख मां सचमुच अद्वितीय है। आज के दौर में मां की महत्ता को लेकर ऐसे ही सृजन की जरूरत है। रमेश माहेश्वरी, जयपुर।

मां का कर्ज कौन चुका सकता है?
पत्रिका के दस मई के अंक में मां शीर्षक से गुलाब कोठारी का अग्रलेख पढ़ा। मां की ममता तो हर प्राणियों की है। फिर यह मदर्स डे वाली मां कौन है? मसं अपने लिए नहीं जीती। उसका कर्ज तो हम जीवन भर नहीं चुका सकते। गोपाल अरोड़ा, जोधपुर।

मां की विशालता का अंदाजा
मां ही गुरु होती है गुरु भी मां बने बिना शिष्य की आत्मा तक नहीं पहुंच सकता। इस एक बात में ही मां की विशालता समझी जा सकती है। मातृ दिवस पर गुुलाब कोठारी का यह अग्रलेख सचमुच झकझोरने वाला है। –सुदर्शन सोलंकी, मनावर, धार (म. प्र.)

गुलाब कोठारी ने अपने अग्रलेख में मां को जिस प्रकार परिभाषित किया वह अंधकार को दूर करने वाले दीपक के समान था। यह सही है कि पूरे वर्ष में मात्र एक दिन अपनी माता के प्रति समर्पण कर कोई मां का प्यार नहीं पा सकता। हमें आजीवन अपनी मां अर्थात सृष्टि के प्रति समर्पित होने का भाव मन में रखना चाहिए।तरुण, श्रीगंगानगर
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