मां का कर्ज कौन चुका सकता है?
पत्रिका के दस मई के अंक में मां शीर्षक से गुलाब कोठारी का अग्रलेख पढ़ा। मां की ममता तो हर प्राणियों की है। फिर यह मदर्स डे वाली मां कौन है? मसं अपने लिए नहीं जीती। उसका कर्ज तो हम जीवन भर नहीं चुका सकते। गोपाल अरोड़ा, जोधपुर।
मां की विशालता का अंदाजा
मां ही गुरु होती है गुरु भी मां बने बिना शिष्य की आत्मा तक नहीं पहुंच सकता। इस एक बात में ही मां की विशालता समझी जा सकती है। मातृ दिवस पर गुुलाब कोठारी का यह अग्रलेख सचमुच झकझोरने वाला है। –सुदर्शन सोलंकी, मनावर, धार (म. प्र.)
गुलाब कोठारी ने अपने अग्रलेख में मां को जिस प्रकार परिभाषित किया वह अंधकार को दूर करने वाले दीपक के समान था। यह सही है कि पूरे वर्ष में मात्र एक दिन अपनी माता के प्रति समर्पण कर कोई मां का प्यार नहीं पा सकता। हमें आजीवन अपनी मां अर्थात सृष्टि के प्रति समर्पित होने का भाव मन में रखना चाहिए।तरुण, श्रीगंगानगर