प्रदेश के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने अपने खिलाफ चल रहे माहौल की प्रतिक्रिया में ही सही, जो भी कहा, यदि सच है तो इससे बढ़कर शर्म का विषय समूचे विभाग के लिए कोई और नहीं हो सकता। मंत्री का कहना है कि जो उनका विरोध कर रहे हैं उन्होंने रिश्वत देकर शिक्षक सम्मान के लिए अपना नाम जुड़वा लिया था। जिसे पता चलने पर हटवाया गया। दिलावर ने यहां तक कह दिया कि ये निकृष्ट लोग वे हैं जो वेतन तो लेते हैं लेकिन पढ़ाते नहीं। जाहिर तौर पर शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली से जुड़े दो सच शिक्षा मंत्री ने खुद बयां कर दिए।
दिलावर चूंकि इस विभाग के मुखिया हैं। इसलिए बयान को जिम्मेदारी भरा ही माना जाना चाहिए। अचरज की बात यह है कि इस प्रकरण में न तो रिश्वत देने वाले का नाम कोई खुलासा कर रहा और न ही जिसने रिश्वत लेने की गुस्ताखी की उसके खिलाफ मंत्री ने कोई कार्रवाई के संकेत दिए। जबकि इस बड़े तथ्य का खुलासा होने के बाद एक-दो नहीं बल्कि तमाम वे अफसर-कार्मिक भी नप जाने चाहिए जिनकी देखरेख में शिक्षक सम्मान सूची बन रही थी। हर वर्ष पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस पर शिक्षक सम्मान की परिपाटी बरसों से चल रही है। सम्मान के लिए निश्चित मापदंड भी तय हैं। इसके बावजूद इन मापदंडों की अवहेलना कर शिक्षक सम्मानित होने लगें तो इसे भला कोई भी बर्दाश्त क्यों करें?
भले ही इसे अपने विरोध को लेकर दिलावर की प्रतिक्रिया समझें या फिर उनकी साफगोई, पर मंत्री की यह स्वीकारोक्ति भी महकमे की छवि पर सवाल खड़े करने वाली है जिसमें उनका इशारा उन शिक्षकों की ओर है जो पढ़ाते नहीं पर वेतन पूरा लेते हैं। प्रदेश भर में शिक्षकों की कमी पहले से ही बनी हुई है। ऐसे में मंत्री यह खुलासा भर कर दें यह काफी नहीं। अगर सचमुच शिक्षक अपनी ड्यूटी के प्रति लापरवाह हैं तो सबसे पहले दिलावर को खुद उनके खिलाफ एक्शन लेना चाहिए। शिक्षा विभाग में तबादलों को लेकर रिश्वतखोरी का सवाल तो खुद पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शिक्षकों के ऐसे ही राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह में खुद शिक्षकों से पूछ चुके हैं। शिक्षकों की तरफ से जो जवाब आया वह भी सबको पता है। ऐसे में मंत्री दिलावर भी अपने महकमे की कमजोरी से वाकिफ नहीं होंगे, ऐसा लगता नहीं।
सवाल यही है कि सब कुछ उन्हें पता है तो फिर कार्रवाई करने के लिए उनके हाथ किसने बांध रखे हैं? दिलावर कोई अकेले मंत्री नहीं जिनका ऐसी लाचारी भरा बयान सामने आया है। पिछले माह ही जलदाय मंत्री कन्हैयालाल चौधरी भी विधानसभा में कह चुके हैं कि ‘मेरे विभाग में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है। सबकी जांच करुंगा तो विभाग चलाना मुश्किल हो जाएगा।’ दो दिन पहले ही नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने भी घटिया सड़कों का निर्माण करने वाले ठेकेदार ब्लैकलिस्ट करने के निर्देश दिए हैं। लेकिन कभी किसी ने यह नहीं कहा कि जिन अफसरों की लापरवाही से ऐसे ठेकेदार बचते रहे हैं उनके खिलाफ भी सख्ती होगी।
दरअसल, अफसरों की मीटिंगों, सार्वजनिक सभाओं और बयानबाजी में नेताओं का ऐसी बातें कहने का स्वभाव ही बन गया है जिससे वे भी चर्चा में बने रहें। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों को इतना तो समझना ही होगा कि पांच साल बाद जनता यदि फिर उन्हें अपना प्रतिनिधि चुनेगी तो बयानों के कारण नहीं बल्कि इस बात के लिए चुनेगी कि उनकी कथनी और करनी में फर्क रहा अथवा नहीं।