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Patrika Opinion : सोशल मीडिया की लत पर मजबूत कवच की दरकार

ऐसे समय में, जब बच्चों में सोशल मीडिया की लत वैश्विक चिंता के तौर पर उभरी है, भारत सरकार ने ‘डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट’ का मसौदा जारी किया है। इसमें प्रावधान है कि 18 साल से कम उम्र के नाबालिगों का सोशल मीडिया अकाउंट खोलने के लिए माता-पिता की मंजूरी अनिवार्य होगी। यह प्रावधान […]

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ऐसे समय में, जब बच्चों में सोशल मीडिया की लत वैश्विक चिंता के तौर पर उभरी है, भारत सरकार ने 'डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट' का मसौदा जारी किया है। इसमें प्रावधान है कि 18 साल से कम उम्र के नाबालिगों का सोशल मीडिया अकाउंट खोलने के लिए माता-पिता की मंजूरी अनिवार्य होगी। यह प्रावधान काफी पहले लागू हो जाना चाहिए था, क्योंकि दूसरे देशों की तरह हमारे देश के बच्चों में भी सोशल मीडिया की लत चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुकी है। जब देश में 18 साल से कम उम्र वालों का ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनता, वे किसी एग्रीमेंट में शामिल नहीं हो सकते तो सोशल मीडिया पर उनकी सहमति इतनी आसानी से क्यों उपलब्ध है? हाल ही एक सर्वे में खुलासा हुआ कि भारत में 9 से 17 साल के 60 फीसदी शहरी बच्चे रोज औसतन तीन घंटे या इससे ज्यादा समय सोशल मीडिया, वीडियो/ओटीटी और ऑनलाइन गेम्स जैसी गतिविधियों पर खर्च कर रहे हैं। ऐसे बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि इस लत का असर उनकी सेहत पर पड़ रहा है।
वे आक्रामक हो रहे हैं, धैर्य घट रहा है, उनके कामकाज की शैली सुस्त होती जा रही है। बच्चों में इस तरह के खतरों के प्रति विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले से चेता रहा है। उसकी रिपोर्ट के मुताबिक सोशल मीडिया की लत से दुनिया के 10 फीसदी से ज्यादा बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ा है। अवसाद और चिड़चिड़ापन बढऩे के साथ वे परिवार, समाज से कटकर अकेलेपन के आदी हो रहे हैं। इंटरनेट का आविष्कार करने वाले टिम बर्नर्स-ली ने दुरुस्त फरमाया था कि हर नई तकनीक मानव सभ्यता के विकास के लिए जरूरी है, लेकिन किसी तकनीक की अति विनाश के खतरे खड़े कर सकती है। सोशल मीडिया पर यह सटीक बैठता है। इसने इंसान को संपर्कों के नए आयाम दिए, उनके ज्ञान और अनुभव में वृद्धि के नए दरवाजे खोले। कोरोना काल में जब लोग घरों में सिमट गए थे, सोशल मीडिया ने ही उन्हें बाहर की दुनिया से जोड़ रखा था।
दरअसल, सोशल मीडिया से ज्यादा बच्चों में इसके इस्तेमाल की अति पर नियंत्रण की जरूरत है। अभिभावकों के साथ सोशल मीडिया की भी जिम्मेदारी है कि ऐसी अवांछित सामग्री को लेकर बच्चों के लिए मजबूत सुरक्षा कवच की पहल करें। सरकार ने 'डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट' का मसौदा जारी कर सराहनीय कदम उठाया है। इस पर जनता से 18 फरवरी तक सुझाव मांगे गए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए इसे अमली जामा पहनाने में ज्यादा विलंब नहीं होगा।