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Patrika Opinion: बांग्लादेश में आरक्षण के नाम पर दूसरा ही ‘खेला’

आम लोगों की तकलीफों पर सुनवाई के लिए फिलहाल बांग्लादेश में सारे रास्ते बंद हैं। बांग्लादेश में अराजकता के दौर ने भारत की सीमाओं पर भी खतरे बढ़ा दिए हैं। वहां से भारी तादाद में लोग भारत में घुसपैठ कर सकते हैं। घुसपैठ टालने के साथ-साथ बांग्लादेश के घटनाक्रम पर लगातार निगरानी की जरूरत है।

जयपुरAug 11, 2024 / 10:02 pm

Nitin Kumar

शेख हसीना के अपदस्थ होने के एक सप्ताह बाद भी बांग्लादेश संकट के भंवर से बाहर नहीं आ पाया है। शांति का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार भी विफल नजर आ रही है। हालात काबू करने में नाकाम पुलिस अपनी सुरक्षा की दुहाई देकर हड़ताल पर है। अराजकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने ढाका में सुप्रीम कोर्ट का घेराव कर चीफ जस्टिस ओबैदुल हसन को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। आरक्षण के खिलाफ करीब एक महीने से चल रहा आंदोलन सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद खत्म हो जाना चाहिए था, जो आंदोलनकारियों के पक्ष में था।
उथल-पुथल जारी रहने से इन आशंकाओं को बल मिला है कि आरक्षण की आड़ में दूसरा ही ‘खेला’ चल रहा है। शक की सुई पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ और चीन के अलावा अमरीका पर भी घूम रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने के लिए कुछ विदेशी ताकतों ने आंदोलन को हवा दी। दरअसल, भारत के प्रति झुकाव को लेकर शेख हसीना चीन की आंख की किरकिरी बनी हुई थीं। चीन की नजर बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह का प्रबंधन हासिल करने पर थी। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की जासूसी के लिए इस बंदरगाह के जरिए चीन वहां अपना सैन्य और मिसाइल बेस कैम्प कायम करना चाहता था। शेख हसीना का बंदरगाह का प्रबंधन भारत को सौंपने का फैसला चीन के लिए बड़ा झटका था। दोनों देशों के रिश्तों की कड़वाहट पिछले महीने ही सामने आ गई थी, जब चार दिन की यात्रा बीच में ही खत्म कर शेख हसीना ढाका लौट गई थीं। यह संयोग नहीं है कि इस घटनाक्रम के बाद आरक्षण आंदोलन दिन-ब-दिन उग्र होता गया और शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर देश छोडऩा पड़ा।
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि बांग्लादेश में लोकतंत्र पर भीड़तंत्र हावी हो गया है। सभी प्रमुख सरकारी और संवैधानिक संस्थान प्रदर्शनकारियों के निशाने पर हैं। बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक के प्रमुख को भी पद छोडऩे को मजबूर किया गया। जेलों पर हमलों से सैकड़ों कैदी भाग निकले हैं। बांग्लादेश में रह रहे हजारों हिंदुओं की सुरक्षा खतरे में है। आम लोगों की तकलीफों पर सुनवाई के लिए फिलहाल बांग्लादेश में सारे रास्ते बंद हैं। बांग्लादेश में अराजकता के दौर ने भारत की सीमाओं पर भी खतरे बढ़ा दिए हैं। वहां से भारी तादाद में लोग भारत में घुसपैठ कर सकते हैं। घुसपैठ टालने के साथ-साथ बांग्लादेश के घटनाक्रम पर लगातार निगरानी की जरूरत है।

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