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Patrika Opinion: सुरक्षा मानदण्डों की जानलेवा अनदेखी

बाहर से आलीशान-सी दिखने वाली इमारतें भीतर से मौत का साजो-सामान लिए हों तो दोष किसे दें? बड़ा सवाल इस बात का भी है कि हादसे के बाद दिखाई जाने वाली सक्रियता आखिर ऐसे किसी भी संस्थान के संचालन की अनुमति देते वक्त क्यों नहीं दिखाई जाती?

जयपुरAug 05, 2024 / 11:08 pm

harish Parashar

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के कोचिंग संस्थानों को लेकर जो बात कही है वह कमोबेश देश के सभी हिस्सों में संचालित कोचिंग संस्थाओं पर भी लागू होती है। कोचिंग संस्थानों में सुरक्षा संबंधी मानदण्डों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने कहा कि दिल्ली की घटना ने आंखें खोल दी हैं। साथ ही यह भी कहा कि कोचिंग संस्थान ‘डेथ चैम्बर’ बन गए हैं और देश के विभिन्न हिस्सों से आए उम्मीदवारों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। सुरक्षा मानदण्डों की पालना को लेकर सवाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र, दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम को भी नोटिस दिए हैं।दिल्ली के एक कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में पानी भरने से तीन छात्रों की मौत के बाद कोचिंग संस्थानों में सुरक्षा मानदण्डों की अनदेखी की तरफ जिम्मेदारों का ध्यान गया है। निरीक्षण व नोटिस देने के काम भी खूब हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया है कि ऐसे किसी भी संस्थान में जब तक सुरक्षा मानदण्ड पूरे नहीं हों, वहां ऑनलाइन कोचिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए। दरअसल, जब कहीं भी ऐसा हादसा होता है तो हमारे यहां लकीर पीटने का काम ज्यादा होता है। दिल्ली ही क्यों, देश के अलग-अलग हिस्सों मेंं चल रहे कोचिंग संस्थान भी तमाम मानदण्ड पूरे कर संचालित हो रहे हों, ऐसा लगता नहीं। यह इसलिए क्योंकि कभी किसी कोचिंग संस्थान में आग लगने, कहीं बाढ़ का पानी घुसने या फिर कहीं लिफ्ट में बच्चों के फंसने की खबरें आए दिन आती रहती हैं। अधिकांश कोचिंग संस्थान बहुमंजिला इमारतों में और तहखानों तक में संचालित होते नजर आते हैं। हैरत की बात यह है कि पानी की निकासी या फिर अग्निशमन व्यवस्था के बारे में जांच की खानापूर्ति ज्यादा होती है। आवासीय इलाकों में संचालित कोचिंग संस्थानों के चलते अक्सर आवागमन भी बाधित होता है। दिल्ली के मामले में तो यह तथ्य भी सामने आया है कि संस्थानों को अनुमति देने के नियम-कायदे भी अलग-अलग सरकारी संस्थानों में अलग-अलग हैं। ऐसे में तय मानदण्डों की समुचित पालना होना संभव होता ही नहीं। हां, नियम-कायदों की फाइलों पर जमी धूल झाडऩे का काम तभी होता है जब कोई हादसा हो जाता है।
बात सिर्फ कोचिंग संस्थानों की ही नहीं, सार्वजनिक आवाजाही वाले सभी केन्द्रों पर सुरक्षा मानदण्डों की अनदेखी कभी भी जानलेवा साबित हो सकती है। बाहर से आलीशान-सी दिखने वाली इमारतें भीतर से मौत का साजो-सामान लिए हों तो दोष किसे दें? बड़ा सवाल इस बात का भी है कि हादसे के बाद दिखाई जाने वाली सक्रियता आखिर ऐसे किसी भी संस्थान के संचालन की अनुमति देते वक्त क्यों नहीं दिखाई जाती?


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