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Patrika Opinion : जरूरत के मुताबिक ही हो सेना पर निर्भरता

locationनई दिल्लीPublished: Dec 07, 2021 09:21:21 am

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Patrika Desk

उग्रवाद प्रभावित इलाकों में सेना की तैनाती की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता। जहां आतंकवाद चरम पर हो, वहां सेना की तैनाती निश्चय ही हालात पर नियंत्रण पाने में कारगर रहती है। हम कश्मीर घाटी में आतंकी हमलों पर सेना के बल पर ही काबू पाने में सफल हो पाए हैं। लेकिन सामान्य परिस्थितियों में आंतरिक सुरक्षा के मामले में लंबे समय तक सेना पर निर्भर रहना विचार का विषय होना ही चाहिए। इससे स्थानीय सुरक्षा बलों की क्षमता व मनोबल पर भी विपरीत असर पड़ना स्वाभाविक है।

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नगालैंड में सुरक्षा बलों की ओर से की गई फायरिंंग में दो दिन पहले चौदह ग्रामीणों की मौत के मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में स्वीकार किया है कि यह हादसा गलत पहचान के चलते हुआ है। संसद में उन्होंने बताया कि सेना को ओटिंग गांव में उग्रवादियों के सक्रिय होने की जानकारी मिली थी। यह खुफिया सूचना मिलने पर ही सेना ने संदिग्ध इलाके की घेराबंदी की थी। गृह मंत्री ने यह भी कहा कि जांच एजेंसियों को भविष्य में ऐसी घटनाओं का दोहराव नहीं हो, यह सुनिश्चित करने की हिदायत दी गई है। निश्चय ही ऐसे मामलों में खुफिया तंत्र की सक्रियता तो अहम है ही, यह भी एक बड़ा सवाल है कि आखिर लंबे समय तक आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर सेना को तैनात रखना कितना जरूरी है?

इस घटना के लिए सेना ने भी खेद जताया है और कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश दे दिए गए हैं। मेजर जनरल रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में गठित कमेटी इसकी जांच करेगी। इस ऑपरेशन में तैनात सैन्य टुकड़ी के खिलाफ पुलिस ने एफआइआर भी दर्ज कर ली है। जाहिर है अब जांच के बाद ही हादसे से जुड़े तमाम पहलुओं का खुलासा हो सकेगा। चौदह नागरिकों व एक जवान की मौत के बाद समूचे प्रदेश में तनाव बना हुआ है। सुरक्षा बलों को व्यापक अधिकार देेने वाले आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (अफस्पा) को वापस लेेने की मांग समूचे पूर्वोत्तर में लंबे समय से की जा रही है। इस घटना के बाद नगालैंड व मेघालय के मुख्यमंत्रियों ने भी इस मांग को दोहराया है। उग्रवाद प्रभावित इलाकों में सेना की तैनाती की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता। जहां आतंकवाद चरम पर हो, वहां सेना की तैनाती निश्चय ही हालात पर नियंत्रण पाने में कारगर रहती है। हम कश्मीर घाटी में आतंकी हमलों पर सेना के बल पर ही काबू पाने में सफल हो पाए हैं। लेकिन सामान्य परिस्थितियों में आंतरिक सुरक्षा के मामले में लंबे समय तक सेना पर निर्भर रहना विचार का विषय होना ही चाहिए। इससे स्थानीय सुरक्षा बलों की क्षमता व मनोबल पर भी विपरीत असर पड़ना स्वाभाविक है।

नगालैंड की इस घटना के बाद पूर्वोत्तर में लोग गुस्से में हैं। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह ने हालात तनावपूर्ण लेकिन काबू में बताए हैं। चिंता इस बात की है कि ऐसी घटनाओं की आड़ में उग्रवादी समूह, लोगों को भड़काने का काम कर सकते हैं। खुफिया सूचनाओं के तंत्र को मजबूत करने की जरूरत भी है। लेकिन उग्रवाद प्रभावित इलाकों में बड़ी जरूरत यह भी है कि सुरक्षा बल स्थानीय लोगों का भरोसा जीतने का काम भी करें।

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