ऐसे ही बीते वर्ष मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले संगठन ऑक्सफेम की रिपोर्ट में बताया गया कि दुनिया के साथ-साथ भारत में भी आर्थिक असमानता बढ़ी है। भारत में 63 अरबपतियों के पास देश के आम बजट की राशि से भी अधिक संपत्ति है। इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि बढ़ती आर्थिक असमानता को कम करना सरकारों के लिए सबसे बड़ी आर्थिक-सामाजिक चुनौती है। वैसे तो आंकड़े मौजूद नहीं हैं, मगर कोरोना काल में स्थिति और बदतर प्रतीत होती है। इस दौर में बड़ी संख्या में लोग बेघर हुए, बीमारी के बोझ से टूटे और अब रोजगार की कमी से जूझ रहे हैं। अमीर-गरीब की खाई को पाटने के लिए दो रास्ते अपनाए गए हैं। एक तो गरीबों के हाथों तक कॉर्पोरेट मदद कारगर रूप से पहुंचाई जाए और दूसरा यह कि गरीबों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए बनी सरकारी योजनाओं को कारगर तरीके से लागू किया जाए।
हाल ही में प्रकाशित ‘भारत में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व’ (सीएसआर) रिपोर्ट में बताया गया है कि सीएसआर खर्च हर साल बढ़ता जा रहा है। भारत में गरीबी, भुखमरी और कुपोषण से पीडि़त लोगों तक सीएसआर की राशि नहीं के बराबर पहुंच रही है। दूसरा यह कि बड़ी संख्या में कंपनियां सीएसआर के उद्देश्य के अनुरूप खर्च नहीं कर रही हैं। तीसरा यह कि कंपनियां सीएसआर पर बड़ा खर्च विकसित प्रदेशों में ही कर रही हैं, जिससे लक्ष्य तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है। देश में आर्थिक असमानता दूर करने के लिए कमजोर वर्ग के सशक्तीकरण के लिए अधिक प्रयास करने होंगे। खासतौर से खेती पर विशेष ध्यान देना होगा। ऐसे नए उद्यमों को प्रोत्साहन देना होगा, जो कृषि उत्पादों को लाभदायक कीमत दिलाने में मदद करें।