सरकार के कदमों को देखें तो पेट्रोल-डीजल के स्थान पर इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन की योजना खूब प्रचार-प्रसार के बावजूद उम्मीद के मुताबिक आगे नहीं बढ़ी। मुख्य समस्या आधारभूत संरचनाओं के विकास की है। सडक़ों के विस्तार के साथ-साथ जगह-जगह इलेक्ट्रिक चार्जिंग पॉइंट की स्थापना के बगैर इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रचलन में लाना मुश्किल है। इन वाहनों की ज्यादा कीमत रही-सही कसर पूरी कर देती है। बिजली की उपलब्धता तो एक स्थाई समस्या है ही। सबसे बड़ी बात यह कि इस पूरी कवायद का लक्ष्य पर्यावरण को शुद्ध रखना है। यह तभी संभव होगा जब इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने में इको-फ्रेंडली बिजली का इस्तेमाल हो और इसमें लगने वाली बैटरी का निर्माण भी पर्यावरण के अनुकूल हो। पेट्रोल-डीजल के स्थान पर कोयले या अन्य जीवाश्म ईंधन से बनाई गई बिजली से वाहन चलाने का कोई लाभ नहीं है। इसलिए सबसे जरूरी यह है कि देश में अक्षय ऊर्जा स्रोतों (पवन-सौर) का तेजी से विकास किया जाए। पूरी दुनिया में अक्षय ऊर्जा स्रोतों के विकास में तेजी तो आई है, पर लक्ष्य अभी दूर है। दरअसल 2015 के पेरिस समझौते के बाद वैकल्पिक ऊर्जा साधनों पर निर्भरता बढ़ाने पर जोर दिया जाने लगा है। अच्छी बात यह है कि इसके सकारात्मक परिणाम आने लगे हैं। दुनिया के कुल ऊर्जा उत्पादन में पवन व सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 2015 के बाद से दोगुनी हो गई है।
जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाली संस्था एम्बर की 30 मार्च 2022 को जारी रिपोर्ट के अनुसार 2021 में दुनिया में 38 फीसदी ऊर्जा स्वच्छ स्रोतों से हासिल की गई है। इसमें पहली बार 10.3 प्रतिशत हिस्सेदारी पवन और सौर ऊर्जा की रही। विशेषज्ञों को भरोसा है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो इस शताब्दी के अंत तक धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री तक सीमित करने में सफलता मिल सकती है। इसमें कोई दोराय नहीं कि भविष्य अक्षय ऊर्जा स्रोतों का ही है। इसलिए जितनी जल्दी इसके अनुकूल व्यवस्था बनाई जा सके, उतनी ही जल्दी हम लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।