प्रश्न यह है कि महिलाएं स्वस्थ नहीं होंगी तो वे अपनी नौकरी-पेशे, परिवार और बच्चों की फिक्र कैसे करेंगी। महिलाओं के इस जज्बे को सभी सराहते हैं कि वे देश, समाज और परिवार के हर दायित्व को बखूबी निभा रही हैं। मगर कामकाजी महिलाओं के बच्चों पर क्या बीत रही है, इस बारे में भी चर्चा की जानी चाहिए। पुरुषवादी समाज में संवेदनशीलता और महिलाओं की सेहत को लेकर जिम्मेदारी के बोध की घोर कमी है। यह बात सर्वे में भी साफ हुई है। महिलाओं ने बताया है कि जब उनकी सेहत की बात आती है तो 80 प्रतिशत फीसदी पुरुष सहयोगी संवेदनहीन बर्ताव करते हैं।
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इस तरह के सर्वे पहले भी आते रहे हैं, मगर समस्या का समाधान सामने नहीं आया है। आधी आबादी की सेहत की चिंता करते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कामकाज के दौरान महिलाओं के प्रति बर्ताव में सुधार हो। उनके अधिकारों को अधिक संरक्षण दिया जाना चाहिए। यह भी तय किया जाना चाहिए कि श्रम साधना करके जो महिलाएं राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभा रही हैं, उन्हें परिवार व बच्चों के लिए अधिक वक्त दिया जाना चाहिए।
इससे भी अधिक अहम चर्चा का विषय उन महिलाओं की सेहत की चिंता करना है जो गृहिणियां हैं। कार्यालयों व सेवा स्थल पर जो हालात हैं, उससे बदतर स्थितियां घरों में हैं। कार्यालय में पुरुष सहयोगी जैसा बर्ताव करते हैं, वैसे ही व्यवहार का सामना महिलाओं को अपने घरों में भी करना पड़ता है। कई तरह के कानून-कायदे बन चुके हैं, मगर हालात सिर्फ इनके दम पर नहीं सुधरेंगे। सोच बदलने से ही महिलाओं की सेहत से जुड़े सवालों का जवाब मिल सकेगा, उनका समाधान हो सकेगा।