देखा जाए तो चार साल से माल्या को प्रत्यर्पण कार्रवाई के जरिए भारत लाने के प्रयासों में विफलता ऐसी धारणा को और मजबूत कर रही थी। माल्या ही नहीं, बल्कि मेहुल चौकसी व नीरव मोदी समेत ऐसे दर्जनों और भी उदाहरण हैं। कोर्ट से उम्मीद भी यही की जाती है कि न तो कोई अपराधी बचे और न ही अपराधियों के कानून से बच निकलने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिले। कोर्ट की यह सख्ती उन सफेदपोश अपराधियों के लिए कड़ा संदेश होगा जो पकड़ में आने से बचने के नित नए जतन करते हैं। ऐसे भी अपराधी कम नहीं, जो पकड़े जाने पर भी बचाव के लिए सेहत से जुड़े बहाने बनाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एयरलाइंस कारोबार से जुड़े विजय माल्या को मई 2017 में अवमानना का दोषी मान लिया था। कोर्ट ने उससे संपत्ति का ब्योरा मांगा, जो उसने नहीं दिया। जुलाई 2017 में उसे व्यक्तिश: हाजिर होने का आदेश दिया, लेकिन वह नहीं आया। इस बीच ही बैंकों का 9200 करोड़ का बकाया चुकाने में विफल माल्या ने चार करोड़ अमरीकी डॉलर अपने बच्चों के नाम ट्रांसफर भी कर दिए। सुप्रीम कोर्ट इसी मामले में उसे अवमानना का दोषी मान चुका है, पर उसके खुद हाजिर न होने से कोर्ट को बार-बार सुनवाई टालनी पड़ रही थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि माल्या हाजिर नहीं हो तो भी अगले साल 18 जनवरी को एक तरह से माल्या के खिलाफ निर्णायक सुनवाई शुरू कर दी जाएगी।
यह बात सही है कि प्रत्यर्पण से जुड़े ऐसे मामलों में कई बार डिप्लोमेसी भी जुड़ी होती है। दूसरे देशों के कानून कायदे आड़े आते हैं सो अलग। लेकिन माना जाना चाहिए कि आरोपी की गैरहाजिरी में भी सजा सुनाने की तारीख तय कर कोर्ट ने जो सख्त संदेश दिया है वह भविष्य में नजीर बनेगी। एक तरह से यह संदेश भी है कि अपराधी कितना ही शातिर, कानूनी दांव-पेच में माहिर और रसूखदार क्यों नहीं हो उसे सौ तालों में महफूज रहने का भ्रम नहीं पालना चाहिए।