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Patrika Opinion : त्वरित न्याय के लिए भी हो ऐसी पहल

locationनई दिल्लीPublished: Sep 01, 2021 08:30:39 am

Submitted by:

Patrika Desk

Patrika Opinion : गर्व करने लायक बात यह भी कि सब कुछ ठीक रहा तो शपथ लेने वाली तीन महिला जजों Supreme Court woman judge में से एक को आगामी वर्षों में देश की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश first woman chief justice बनने का गौरव मिल सकेगा।

Patrika Opinion : त्वरित न्याय के लिए भी हो ऐसी पहल

Patrika Opinion : त्वरित न्याय के लिए भी हो ऐसी पहल

न्यायपालिका की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट Supreme court में मंगलवार का दिन कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। नौ जजों के एक साथ शपथ लेने का कीर्तिमान आजादी के सत्तर बरसों में पहली बार कायम हुआ तो लैंगिक समानता की वकालत के दौर में यह सुखद पहलू भी रहा जब शीर्ष कोर्ट में तीन महिला जजों Supreme Court woman judge ने एक साथ पदभार संभाला। संतोष की बात यह भी है कि लंबे समय बाद उच्चतम न्यायालय में जजों के कुल पदों में सिर्फ एक ही खाली रह गया है। और, गर्व करने लायक बात यह भी कि सब कुछ ठीक रहा तो शपथ लेने वाली तीन महिला जजों में से एक को आगामी वर्षों में देश की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश first woman chief justice बनने का गौरव मिल सकेगा।

वैसे इस उपलब्धि के बावजूद देश भर की अदालतों में महिला न्यायाधीशों की आनुपातिक स्थिति को संतोषजनक कतई नहीं कहा जा सकता। उच्च न्यायपालिका में महज 12 फीसदी ही महिला न्यायाधीश हैं। आज एक भी राज्य के उच्च न्यायालय में महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं है। जबकि अन्य क्षेत्रों में उनके लिए अवसर खूूब हैं। ऐसे में यह सवाल भी उठना स्वाभाविक है कि क्या महिला जजों व वकीलों को हाईकोर्ट व शीर्ष कोर्ट तक पहुंचने का मौका जानबूझकर कम दिया जाता रहा है।

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने वाली महिला जजों की गिनती की संख्या इसी तरफ संकेत करने को काफी है। यह तो तब है जब दो साल पहले सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेज में कहा था कि लैंगिक प्रतिनिधित्व की दिशा में कोर्ट रूम को संतुलित करने की जरूरत है। इसमें भी संदेह नहीं कि हमारे देश में न्याय प्रक्रिया की रफ्तार पिछले सालों में काफी धीमी हुई है। अदालतों में मुकदमों की बढ़ती संख्या इसकी बड़ी वजह मानी जाती है। अब इन नियुक्तियों से लंबित मुकदमों के बोझ से एक हद तक छुटकारा मिल सकेगा, यह उम्मीद की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत से शुरुआत हुई है तो हाईकोर्ट व निचली अदालतों में भी जजों के खाली पद भरे जाएंगे, ऐसी उम्मीद भी रखनी ही चाहिए।

सवाल बड़ा है कि लंबित मुकदमों का बोझ कम करने के प्रयास ईमानदारी से क्यों नहीं होते? तारीख पर तारीख के बीच चलने वाली मुकदमेबाजी में घर-परिवार तबाह होने की खबरें भी खूब आती हैं। जजों के सभी पद भरने पर भी त्वरित न्याय की पहल होना ज्यादा जरूरी है। यह तब ही संभव है जब लंबित मुकदमों का बोझ कम हो और निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के पद भरे जाएं।

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