घटनाओं के परिदृश्य में यह साफ है कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में अमन-चैन लौटने से आतंकी बौखलाए हुए हैं। ताजा विधानसभा चुनावों में जनभागीदारी से उपजा माहौल, इलाके में लगातार बढ़ रहा पर्यटन और पर्यटक उन्हें फूटी आंख नहीं सुहा रहे। यही वजह है कि इस बार के हमले गुलमर्ग और बूटा पाथरी जैसे इलाकों में किए गए हैं। ये इलाके सामान्य तौर पर आतंक मुक्त समझे जाते हैं और वहां हर समय पर्यटकों की चहल-पहल बनी रहती है। जम्मू-कश्मीर में इन हमलों ने एक बार फिर पाकिस्तान के नापाक इरादों की ओर संकेत किया है, भले ही एक सप्ताह पूर्व वह हमारे विदेश मंत्री की राह में पलक-पांवड़े बिछाता दिखा हो और उसके मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ व पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाते नजर आए हों। उन्होंने ऐसे वक्तव्य भी दिए, जिनमें कहीं न कहीं यह स्वीकारोक्ति थी कि वे गलत राह पर थे। लेकिन विदेश मंत्री के लौटने के एक सप्ताह में जम्मू-कश्मीर की शांति भंग करने की कोशिशों से साबित हो गया है कि पाकिस्तान की कथनी और करनी में अंतर है और वह कभी नहीं सुधरने वाला। उसकी ऐसी ही प्रवृत्ति पहले भी कई बार सामने आ चुकी है। इन आतंकी हमलों में पाकिस्तान सरकार की लिप्तता भले ही जाहिर तौर पर न हो, लेकिन इसमें कोई संशय नहीं है कि शह उसी की है और ये आतंकी उसी के पाले हुए हैं। दोस्ती करने के लिए यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि पाकिस्तान के कथित ‘नॉन-स्टेट एक्टर’ भी भारत के खिलाफ कोई षडयंत्र न रचें। पाकिस्तान ने भारत के विदेश मंत्री जयशंकर की इस नसीहत का मान भी नहीं रखा कि आतंक और मित्रता एक साथ नहीं चल सकते।
भारत के आगामी रणनीतिक कदमों में निश्चित तौर पर पाकिस्तान को इन आतंकी हमलों का जवाब मिलेगा। आतंक के इस पहलू में चीन पर भी नजर रखनी होगी। इस तरह के संकेत सामने आ चुके हैं कि कश्मीर के मुद्दे पर चीन, पाकिस्तान के साथ है। उसका आतंकियों को परोक्ष सहयोग और समर्थन है। देश को कूटनीतिक व राजनीतिक तौर पर पड़ोसी देशों के इस रवैये से भी निपटना होगा।