‘स्वच्छता ही सेवा’ स्वच्छ भारत मिशन के तहत किए गए शानदार नवाचारों में से एक है जो इस माह अपने दस जादुई वर्ष पूरे करने जा रहा है। स्वच्छता ही सेवा एक बड़े समुदाय को स्वच्छता की जिम्मेदारी सौंपने का प्रयास है। इस कार्यक्रम में संपूर्ण भारतीय समाज और सभी राज्य सरकारें, स्थानीय निकायों के सभी अंग और केन्द्र सरकार शामिल हैं। इसकी टैगलाइन, ‘स्वभाव स्वच्छता- संस्कार स्वच्छता’, स्वच्छ भारत मिशन के मूल भाव – आदतें, व्यवहार, प्रथाएं और स्वच्छता की संस्कृति को परिलक्षित करती है।
हमारी प्राचीन सभ्यता और धर्मग्रंथों में स्वच्छता के प्रचुर संदर्भों के बावजूद, कड़वी सच्चाई यह है कि भारत में 2014 में 600 मिलियन लोग खुले में शौच करते थे। शुरुआत में इस प्रवृत्ति को समाप्त करना चुनौतीपूर्ण काम लगता था। शौचालयों की उतनी मांग नहीं थी जितनी घर या बिजली या पानी की थी। इस कार्य की तीन चुनौतियां थीं- मांग पैदा करना, घरेलू शौचालय उपलब्ध कराना और यह सुनिश्चित करना कि जिस सम्पत्ति का निर्माण किया गया है, उसका उपयोग स्थाई रूप से होता रहे। यह एक आश्चर्यजनक सफलता थी कि जब देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पांच साल में मिशन के कार्यान्वयन के बाद 2 अक्टूबर 2019 को खुद को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया। यह लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य द्वारा निर्धारित 2030 की समय सीमा से बहुत पहले हासिल कर लिया गया था।
इस मिशन की सफलता के पीछे राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति एक बहुत बड़ा कारण थी। मिशन इसलिए भी सफल हुआ क्योंकि इसने स्वच्छता के विचार को सभी क्षेत्रों और वर्गों के बीच मुख्यधारा में ला दिया। अब चाहे रेलवे हो या पेट्रोल पम्प, स्कूल, फैक्ट्री, कार्यालय, मंदिर प्रन्यास, सरकार हो या गैर सरकारी संगठन, कार्पोरेंट हो मीडिया, यह सभी का एजेंडा बन गया। यदि स्वच्छता को सेवा का नाम दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि इसके जरिए मिलने वाले उस स्वास्थ्य और खुशहाली के बारे में सोचें जो यह सामान्य भारतीय परिवारों को प्रदान करती है, विशेषकर उन गरीब परिवारों को जो हमेशा गंदगी में रहने का खमियाजा भुगत रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार, स्वच्छ भारत मिशन के पहले पांच वर्ष में तीन लाख से अधिक बच्चों की जान बचने का अनुमान है।
यह भारत की शौचालय क्रांति का परिणाम है, जिसका बाहरी एजेंसियों द्वारा मूल्यांकन किया गया है। ओडीएफ गांवों में रहने वाले परिवार स्वास्थ्य लागत पर एक वर्ष में औसतन 50,000 रुपए बचा लेते हैं। ओडीएफ क्षेत्रों में भूजल के प्रदूषण में भी कमी आई है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने 120 मिलियन शौचालयों की देखभाल और इनका नियमित उपयोग बड़ी चुनौती होगी। हमारे कस्बों में बने साढ़े छह लाख सार्वजनिक शौचालयों पर सजगता से नजर रखनी होगी, अन्यथा ये बेकार होकर गंदगी से सडऩे लगेंगे। मिशन का मुख्य फोकस ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन पर केंद्रित हो गया है। भारत में हर साल उत्पन्न होने वाला प्लास्टिक कचरा बड़ी चुनौती है। अपशिष्ट प्रबंधन धीरे-धीरे तकनीक आधारित लाभदायक उद्योग बनता जा रहा है, जिसमें स्टार्टअप आगे बढ़ रहे हैं।
अपशिष्ट से धन पैदा होना अब तेजी से एक वास्तविकता बनता जा रहा है। हम जो कचरा हमारे पर्यावरण में फेंंकते हैं, वह एक जैसा नहीं है। इसमें सब्जियों के साधारण छिलकों से लेकर डायपर, सैनिटरी पैड जैसे जहरीले अपशिष्ट और मेडिकल व इलेक्ट्रॉनिक कचरा शामिल होता है। इसका निस्तारण विशेष तरह से करने की जरूरत होती है। ऐसे में जहां से कचरा पैदा हो रहा है, वहीं इसका पृथक्करण महत्त्वपूर्ण हो जाता है। हरा-नीला के विचार को घरेलू आदतों के रूप में अपनाने की जरूरत है। उपभोग कम करें, वस्तुओं का फिर से उपयोग करें और पुनर्चक्रण का मंत्र व्यक्तिगत जीवन में अपनाने की जरूरत है। प्रत्येक वर्ष स्वच्छता ही सेवा का आह्वान सभी भारतीयों को याद दिलाता है कि स्वच्छता का कार्य प्रगति पर है। लोगों की ऊर्जा और सामूहिक प्रयास सफलता का मूल मंत्र है।
—अक्षय राउत