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Patrika Opinion: नए मेडिकल कॉलेजों में संसाधनों पर भी दें ध्यान

Published: Jun 09, 2023 09:35:56 pm

Submitted by:

Patrika Desk

मेडिकल शिक्षा में गुणात्मक सुधार की दिशा में अभी काफी काम करना बाकी है। निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस व डोनेशन के नाम पर लाखों खर्च होते हैं, यह भी किसी से छिपा नहीं है।

Patrika Opinion: नए मेडिकल कॉलेजों में संसाधनों पर भी दें ध्यान

Patrika Opinion: नए मेडिकल कॉलेजों में संसाधनों पर भी दें ध्यान

देश में चिकित्सकों की कमी के संकट के बीच यह सुखद खबर है कि केन्द्र सरकार ने इस साल पचास नए मेडिकल कॉलेज खोलने का फैसला किया है। इनमें तीस सरकारी और बीस निजी क्षेत्र के मेडिकल कॉलेज होंगे। इन कॉलेजों के खुलने के बाद देश को हर साल आठ हजार से ज्यादा डॉक्टर और मिलने लगेंगे। संतोष की बात यह जरूर कही जा सकती है कि पिछले कुछ सालों में ही देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़कर 702 हो चुकी है और इनमें सीटों की संख्या लगभग पचास हजार बढक़र एक लाख के आंकड़े को छूने लगी है। मेडिकल शिक्षा में गुणात्मक सुधार की दिशा में अभी काफी काम करना बाकी है। निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस व डोनेशन के नाम पर लाखों खर्च होते हैं, यह भी किसी से छिपा नहीं है।
मेडिकल कॉलेजों की संख्या में वृद्धि के फैसले से यह कहा जा सकता है कि दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाले देश में चिकित्सकों की जरूरत पर सरकार की पूरी निगाह है। लेकिन मांग के अनुपात में इस वृद्धि को नाकाफी ही कहा जाएगा। यह इसलिए क्योंकि देश भर में दूर-दराज के इलाकों में आज भी चिकित्सकों की कमी का बड़ा संकट है। जहां अस्पताल उपलब्ध हैं, वहां भी मरीजों के दबाव के मुकाबले चिकित्सकों की संख्या काफी कम है। इस कमी का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि देश में इस समय 4 लाख 30 हजार डॉक्टरों की और जरूरत है। मांग का यह आंकड़ा आबादी बढऩे के साथ ही साल दर साल बड़ा होता जाएगा। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतने डॉक्टरों के बिना कितने लोगों को चिकित्सकीय सेवाओं से वंचित रहना पड़ता होगा। सुनिश्चित यह भी करना होगा कि मेडिकल कॉलेज गुणवत्ता वाले खुलें, जिनमें आवश्यक आधारभूत सुविधाओं के साथ पर्याप्त संख्या में सक्षम फैकल्टीज भी हों, जो काबिल डॉक्टर तैयार कर सके। अब तक का अनुभव यही है कि पिछले कुछ समय में खोले गए अधिकांश मेडिकल कॉलेज भी चिकित्सा शिक्षकों की कमी झेल रहे हैं। मेडिकल काउंसिल के निरीक्षण के दौरान इधर-उधर से फैकल्टी सदस्य लाकर खानापूर्ति करने के जतन खूब होते हैं। इससे पटरी पर चल रहे पुराने कॉलेजों की लय भी बिगड़ जाती है।
आबादी के अनुपात में डॉक्टरों की संख्या का विश्व स्वास्थ्य संगठन का जो मापदंड (1000 की आबादी पर एक) है, भारत उससे पचास साल पीछे चल रहा है। हम डॉक्टर तैयार करें और उनका पूरा उपयोग नहीं कर पाएं तो यह देश का ही नुकसान है। इसलिए मेडिकल कॉलेेज भी खुलें और डॉक्टरों की भर्ती भी हो, इस बात का पुख्ता इंतजाम करना होगा।

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