दुनिया के कुल 20 देशों में ही 94 फीसदी जंगल हैं. क़्वींसलैंड विश्वविद्यालय द्वारा वन दायरे का जो मानचित्र जारी किया गया, उसके अनुसार विश्व के पांच देश ऐसे हैं, जिनमें दुनिया के 70 फीसदी जंगल सिमट कर रह गए हैं। भारत का कुल क्षेत्र फल करीब 32 लाख वर्ग किलोमीटर है और जंगलों के कम होते जाने के मामले में चिंताजनक स्थिति यह है कि 1993 से 2009 के बीच ही विश्व भर में भारत के क्षेत्रफल के बराबर 33 लाख वर्ग किलोमीटर जंगल खत्म हो चुके हैं।
जहां तक भारत की बात है तो वन क्षेत्र के मामले में भारत दुनिया में 10वें स्थान पर है और ‘फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां वन क्षेत्र कुल 802088 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र फल में फैला हुआ है, जो भारत के कुल क्षेत्र फल का करीब 24.39 फीसदी है। ‘इंडियन स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017’ में बताया गया है कि भारत में 2015 से 2017 के बीच वन क्षेत्र में 0.2 फीसदी की वृद्धि हुई किंतु पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक यह वृद्धि केवल ‘ओपन फॉरेस्ट श्रेणी’ का ही हिस्सा है, जो प्राकृतिक वन क्षेत्र में वृद्धि न होकर वाणिज्यिक बागानों के बढ़ने के कारण हुई है, जो ओपन फॉरेस्ट श्रेणी में आते हैं।
वर्तमान नीति के अनुसार मृदा क्षरण तथा भू-विकृतिकरण रोकने के लिए पर्वतीय क्षेत्रों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का न्यूनतम 66 फीसदी हिस्सा वनाच्छादित होना चाहिए लेकिन अगर आंकड़े देखें तो देश के 16 पर्वतीय राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में फैले 127 पहाड़ी जिलों में कुल क्षेत्रफल के 40 फीसदी हिस्से ही वनाच्छादित हैं, जिनमें जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र तथा हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी जिलों का सबसे कम क्रमशः 15.79, 22.34 तथा 27.12 फीसदी हिस्सा ही वनाच्छादित है। हालांकि देशभर में सर्वाधिक जंगल महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में हैं लेकिन विकास कार्यों में तेजी, कृषि भूमि तथा डूब क्षेत्र में वृद्धि, खनन प्रक्रिया में बढ़ोतरी इत्यादि कारणों से पिछले कुछ वर्षों में इन राज्यों में भी जंगल घटे हैं।
भारतीय वन सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में सघन वनों का क्षेत्रफल तेजी से घट रहा है। 1999 में सघन वन 11.48 फीसदी थे, जो 2015 में घटकर मात्र 2.61 फीसदी ही रह गए। सघन वनों का दायरा सिमटते जाने के चलते ही वन्यजीव शहरों-कस्बों का रूख करने पर विवश होने लगे हैं और इसी के चलते जंगली जानवरों की इंसानों के साथ मुठभेड़ों की घटनाएं बढ़ रही हैं। हालांकि ‘नेचर’ जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 35 अरब वृक्ष हैं और प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में करीब 28 वृक्ष आते हैं। यह आंकड़ा पढ़ने-सुनने में जितना सुखद दिखता है, उतना है नहीं क्योंकि 35 अरब वृक्षों में से अधिकांश सघन वनों में हैं, न कि देश के विभिन्न शहरों या कस्बों में। वृक्षों की अंधाधुध कटाई के चलते सघन वनों का क्षेत्रफल भी तेजी से घट रहा है। रूस, कनाडा, ब्राजील, अमेरिका इत्यादि देशों में स्थिति भारत से कहीं बेहतर है, जहां क्रमशः 641, 318, 301 तथा 228 अरब वृक्ष हैं। ‘नेचर’ जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार सभ्यता की शुरूआत के समय पृथ्वी पर जितने वृक्ष थे, उनमें से करीब 46 फीसदी का विनाश हो चुका है और दुनिया में प्रतिवर्ष करीब 15.3 अरब वृक्ष नष्ट किए जा रहे हैं। सभ्यता की शुरूआत से अभी तक ईंधन, इमारती लकड़ी, कागज इत्यादि के लिए तीन लाख करोड़ से भी अधिक वृक्ष काटे जा चुके हैं।
भारत में स्थिति बदतर इसलिए है क्योंकि एक तरफ जहां वृक्षों की अवैध कटाई का सिलसिला बड़े पैमाने पर चलता रहा है, वहीं वृक्षारोपण के मामले में उदासीनता और लापरवाही बरती जाती रही हैं। किसी भी विकास योजना के नाम पर पेड़ काटे जाते समय विरोध होने पर सरकारी एजेंसियों द्वारा तर्क दिए जाते हैं कि जितने पेड़ काटे जाएंगे, उसके बदले 10 गुना वृक्ष लगाए जाएंगे किन्तु वृक्षारोपण और रोपे जाने वाले पौधों की देखभाल के मामले में सरकारी निष्क्रियता जगजाहिर रही है। देश में मौसम चक्र जिस तेजी से बदल रहा है, जलवायु संकट गहरा रहा है, ऐसी पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने का एक ही उपाय है वृक्षों की सघनता अर्थात् वन क्षेत्र में बढ़ोतरी। वायु प्रदूषण हो या जल प्रदूषण अथवा भू-क्षरण, इन समस्याओं से केवल ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाकर ही निपटा जा सकता है। स्वच्छ प्राणवायु के अभाव में लोग तरह-तरह की भयानक बीमारियों के जाल में फंस रहे हैं, उनकी प्रजनन क्षमता पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है, उनकी कार्यक्षमता भी प्रभावित हो रही है। कैंसर, हृदय रोग, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का संक्रमण, न्यूमोनिया, लकवा इत्यादि के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और लोगों की कमाई का बड़ा हिस्सा इन बीमारियों के इलाज पर ही खर्च हो जाता है।