scriptखिलाड़ी ही हों खेवनहार | Players are only Helmsman | Patrika News

खिलाड़ी ही हों खेवनहार

Published: Dec 28, 2015 11:35:00 pm

पिछले तीन दशकों में कोई इकलौता खिलाड़ी इस पद तक पहुंचा तो वे राजसिंह
डूंगरपुर थे। यूं गावस्कर और शिवलाल यादव ने भी यह दायित्व संभाला लेकिन
अंतरिम तौर पर

Indian cricket board

Indian cricket board

उम्मीदें अपनी जगह हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का प्रबंधन कभी खिलाडि़यों के हाथों में आ सकता है? बोर्ड में बदलाव के लिए गठित न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा समिति के चार जनवरी को उच्चतम न्यायालय में रिपोर्ट पेश करने की संभावना है। समिति ने बोर्ड में बदलाव को लेकर अनेक सुझाव दिए बताते हैं। क्रिकेट के जानकारों का मानना है कि इन सुझावों को मान लिया गया तो बोर्ड का ढांचा पूरी तरह बदल सकता है।

समिति का सबसे अहम सुझाव ये है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड प्रबंधन से कारोबारियों और राजनेताओं को दरकिनार करइसे खिलाडि़यों के हाथों में सौंपना चाहिए। इसके अलावा और भी सुझाव हैं लेकिन क्या इन्हें स्वीकार किया जाएगा? क्या उद्योगपति और राजनेता दुनिया के सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड का प्रबंधन छोड़ने को तैयार हो जाएंगे? पिछले तीन दशकों से ऐसी आवाजें उठ रही हैं।

बोर्ड की कार्यप्रणाली पर कई समितियां भी बनी और शीर्ष अदालत तक अनेक बार मामला पहुंचा लेकिन सुधार तो दूर मामला बिगड़ता ही गया। विरोध की आवाजों के बीच बोर्ड अध्यक्ष पद पर राजनेता या उद्योगपति ही काबिज होते आए हैं। राजनेता के तौर पर कभी एन.के.पी. साल्वे तो कभी माधवराव सिंधिया, रणवीर महेन्द्रा या शरद पवार सामने आए। राजनेताओं ने रुचि नहीं दिखाई तो बोर्ड अध्यक्ष पद पर उद्योगपति के रूप में आई.एस. बिन्द्रा, ए.सी. मुथैया, जगमोहन डालमिया और एन. श्रीनिवासन ने राज किया।

वर्तमान अध्यक्ष शशांक मनोहर वकील के रूप में अवश्य अपनी पहचान रखते हैं। पिछले तीन दशकों में इकलौता खिलाड़ी इस पद तक पहुंचा तो वे राजसिंह डूंगरपुर थे। यूं गावस्कर और शिवलाल यादव ने भी यह दायित्व संभाला लेकिन अंतरिम तौर पर। बोर्ड का इतिहास बताता है कि यहां खिलाडि़यों के लिए कोई जगह रही ही नही। लोढ़ा समिति की सिफारिशों के बाद यदि राजनेता-उद्योगपति बोर्ड से रुखसत होते हैं तो यह अजूबा ही माना जाएगा। क्रिकेट और क्रिकेट खिलाडि़यों के हित में यही होगा कि खिलाड़ी ही बोर्ड की बागडोर संभाले।

यह कैसे मान लिया जाए कि जिसने कभी बल्ला नहीं पकड़ा हो वह क्रिकेट का उद्धार कर सकता है। राजनेता और उद्योगपति बोर्ड में आते हैं तो इसकी चमक के कारण। यहां उन्हें भरपूर प्रचार भी मिलता है और अपनों को अनुग्रहीत करने के अपार अवसर भी। ऐसा नहीं कि जो अब तक नहीं हुआ, भविष्य में भी नहीं हो सकता। जरूरत राजनेता-उद्योगपतियों के हितों से टकराने का हौसला दिखाने की है। हौसला सामने आया तो बोर्ड के ढांचे में बदलाव अपने आप नजर आने लगेगा।

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