दावोस में खुलेंगे सहयोग के नए रास्ते
भारत का ऑटो बाजार दुनिया में पांचवें स्थान पर है और यह विश्व की दूसरी सर्वाधिक आबादी वाला देश है

- प्रो. गौरव वल्लभ
विघटित विश्व में साझा भविष्य निर्माण की अवधारणा के साथ विश्व आर्थिक मंच (डब्लूईएफ ) का 48 वां वार्षिक सम्मेलन दावोस (स्विट्जरलैंड) में हो रहा है। यह सम्मेलन २३ जनवरी से शुरू हुआ और 26 जनवरी तक चलेगा। वैश्वीकरण के इस युग में दुनिया के विभिन्न देशों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और कुछ देश तो ऐसे हैं जो दुनिया का सरताज बनने के भी इच्छुक हैं। इसी महत्वाकांक्षा बीच विभिन्न देश, समान हितों वाले समूहों में बंट गए हैं।
ऐसे माहौल में स्वहितवादी विचारधारा का व्यापक असर देशों के परस्पर सहयोग पर पड़ा है और इसीलिए एकीकृत साझा हितों जैसे अंतरराष्ट्रीय सहभागिता, पर्यावरण संतुलन, शांति, सीमा सुरक्षा तथा अर्थव्यवस्था की आवश्यकता महसूस की गई। शायद इसीलिए डब्लूईएफ का मुख्य एजेंडा राष्ट्रों के बीच परस्पर सहयोगात्मक व एकीकृत विदेश नीतियों पर केंद्रित है। सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया है। प्रधानमंत्री ने अपने उद्बोधन में दरारों और दूरियों को बढ़ावा देने वाली विश्व व्यवस्था पर चिंता जताई। आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबलाइजेशन की फीकी होती चमक के खतरे भी गिनाए। वर्ष 1997 के बाद पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री डब्लूईएफ में भाग ले रहे हैं। 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी देवेगौड़ा ने डब्लूईएफ में शिरकत की थी।
भारत विश्व मंच पर बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार है। भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे तेज गति से बढ़ते हुए तरक्की के पथ पर अग्रसर है और माना जा रहा है कि 2022 तक भारत जर्मनी से आगे निकल चुकेगा जो आर्थिक शक्ति के मामले में दुनिया में चौथे स्थान पर है। भारत का ऑटो बाजार दुनिया में पांचवें स्थान पर है और यह विश्व की दूसरी सर्वाधिक आबादी वाला देश है; जिनमें 65 प्रतिशत युवा हैं जिनकी आयु 35 वर्ष से कम है। कृषि के जरिये विश्व जीडीपी में योगदान के लिहाज से भारत दूसरे स्थान पर है और भौगोलिक क्षेत्र के लिहाज से यह दुनिया में सातवे नंबर पर है। इसके अलावा हाल ही 35000 का स्तर पार कर लेने के बाद भारतीय स्टॉक मार्केट भी विश्व में तीसरे पायदान पर खड़ा है। हांगकांग और अमरीका का नंबर पहले आता है।
जहां तक व्यापार वरीयता का सवाल है, तीस पायदान चढक़र भारत उन पांच शीर्ष देशों में शुमार हो गया है जो निरंतर बेहतरी की ओर अग्रसर हैं। ऐसी स्थिति में अंतरराष्ट्रीय संस्थान, राजनेता और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सीईओ दुनिया को एक समग्र राष्ट्र बनाने के लिए भारत के सुझाव और एजेंडा की ओर उत्सुकता से देख रहे हैं। 2018-20 में विश्व की समग्र अर्थव्यवस्था में विकास की दर जहां 2.9 से 3.1 फीसदी है, अमरीकी अर्थव्यवस्था की दर 2.0 से 2.5 फीसदी, यूरो देशों की 1.5 से 2.1 फीसदी तथा चीन की 6.2 से 6.4 फीसदी है। वहीं भारत की आर्थिक विकास दर सबसे तेजी से बढ़ते हुए 7.3 से 8.1 फीसदी तक रहने का अनुमान है। इसलिए दुनिया भर के पूंजीवादी भारत को विश्व व्यापार केंद्र के तौर पर देख रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की वर्ष 2017 में आई रिपोर्ट के अनुसार विश्व बेरोजगारी की दर 5.8 प्रतिशत तक बढऩे की संभावना है। भारत को विकासशील एवं विकसित देशों में बेरोजगारी पर आवाज उठानी होगी। उच्च स्तरीय रोजगार कौशल बढ़ाने के लिए सकल प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए तकनीक आधारित अर्थव्यवस्था की जगह निर्माण व उत्पादन आधारित अर्थव्यवस्था में रोजगार कौशल को प्रोत्साहन देना होगा। श्रमिकों को रोजगार के लिए तैयार करने वाले देशों में यह सिद्धान्त व्यवहारिक है। रोजगारों की यह अदला-बदली अगर सीमा पार राष्ट्रों में हो जाए तो दुनिया भर में सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा, परस्पर जीवन शैलियों की जानकारी साझा होगी और यहीं से ‘विश्व एक घर’ की अवधारणा का मार्ग प्रशस्त होगा।
वल्र्ड बैंक, आईएमएफ, यूनिसेफ की ही तर्ज पर भारत को विभिन्न राष्ट्र समूहों में वल्र्ड लेबर बैंक व वल्र्ड इनोवेशन सेल बनाने की वकालत करनी चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्लूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्वास्थ्य सेवा विश्व जीडीपी की 9.89 प्रतिशत है। भारत की दो योजनाएं स्वच्छ भारत अभियान व योग-जीवन शैली ने दुनिया को संकेत दिया है कि स्वास्थ्य सेवाओं में पैसा खर्च करने के बजाय बहुमूल्य जीवन को बचाने पर ध्यान देना बेहतर विकल्प है। स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य केवल स्वच्छता ही नहीं है बल्कि बीमारियों के उपचार में होने वाला खर्च भी कम करना है, जो इस वक्त जीडीपी का 6.8 फीसदी है।
इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंज की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व जीडीपी के मुकाबले वैश्विक ऋण बढ़ कर जीडीपी का 3.25 गुना हो गया है। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि दुनिया ऋण के बल पर विकास कर रही है, जबकि इसे चुकाने के लिए विश्व के पास पर्याप्त संपत्ति व संसाधन नहीं है। इसलिए राष्ट्रों का व्यक्तिगत दायित्व है कि वे कर्ज के बल पर हो रहे विकास की चकाचौंध में न बह कर अपने राजकोषीय घाटे और सरकार पर कर्ज का हिसाब रखें। भारत को इस दिशा में भी दुनिया को राह दिखाने को तैयार रहना होगा।
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