scriptमर्यादा का रखें ख्याल | PM Modi once again become Prime Minister: Kalyan Singh | Patrika News

मर्यादा का रखें ख्याल

locationजयपुरPublished: Mar 27, 2019 05:12:54 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

अच्छा हो कल्याण सिंह जी कुछ ऐसा करें और कहें, जिससे स्थापित परम्पराओं से हटकर की गई उनकी टिप्पणी भविष्य के राज्यपालों के लिए नजीर बने।

kalyan singh file photo

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लगता है, आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपना पुराना सब कुछ छोड़ देना चाहते हैं। नीति-नियम, मान-मर्यादा, धर्म और परम्परा सब कुछ। चिंता इस बात की भी कम नहीं है कि यह हर क्षेत्र में हो रहा है। कोई-सा भी क्षेत्र, चाहे वह धर्म हो, राजनीति, समाज या व्यवसाय हो, इससे अछूता नहीं है। और हम यह कर रहे हैं, केवल और केवल कुछ पाने के लिए! उस कुछ को पाने के लिए हम कितना खो रहे हैं, इसकी हमें रत्ती भर भी चिंता नहीं है। आसाराम जैसे उदाहरण धर्म क्षेत्र में खूब हैं तो राजनीति में राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह का उदाहरण ताजा है। होली पर अपने गृह क्षेत्र अलीगढ़ के दौरे में उन्होंने चुनावी राजनीति को लेकर जो टिप्पणियां कीं, वे किसी भी सूरत में उनके पद की गरिमा के अनुकूल नहीं कही जा सकतीं। उन्होंने कहा द्ग ‘हम सभी भाजपा के कार्यकर्ता हैं, इसलिए भाजपा की जीत चाहते हैं। हम सभी चाहते हैं कि पीएम मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री बनें।’ मोदी फिर प्रधानमंत्री बनें, इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो चुकी है और यह देश के 90 करोड़ मतदाताओं को तय करना है कि किसकी सरकार बने। तकलीफ इस बात की है कि कल्याण सिंह जैसा व्यक्ति जिन्होंने 50 साल का सार्वजनिक जीवन जी लिया, वे ऐसी बातें कर रहे हैं। वे उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी रहे हैं। ऐसे में उनके मुंह से ऐसी बातें निकलना कष्ट देता है। कष्ट इसलिए होता है क्योंकि उनके मुंह से निकली बातें औरों के लिए प्रेरणा और संदेश भी होती हैं।

भारतीय राजनीति की यह स्थापित परम्परा है कि राष्ट्रपति हो या राज्यपाल, लोकसभा के अध्यक्ष हों या विधानसभाओं के अध्यक्ष, वे अधिकांशत: आते राजनीति से ही हैं, लेकिन जैसे ही इनमें से किसी भी पद पर बैठते हैं, अपने आप को सक्रिय राजनीति से पूरी तरह अलग कर लेते हैं। कई उदाहरण तो ऐसे भी हैं, जिनमें ऐसे पदों पर बैठने के बाद संबंधित ने पार्टी छोडऩे का ऐलान किया। जिन्होंने ऐसे ऐलान नहीं भी किए, वे भी कभी पार्टी की बैठकों में नहीं गए। सोमनाथ चटर्जी ने तो लोकसभा अध्यक्ष रहते ऐसे ही मामलों में पार्टी की पूरी तरह अनदेखी की। असल में ये सारे पद ऐसे हैं, जिन पर देश और समाज को दिशा देने का जिम्मा है। आमतौर पर इन पदों पर बैठने वाले राजनीति, प्रशासन, समाज और सेना के ऐसे प्रतिष्ठित लोग होते हैं जिनके बारे में यह माना जाता है कि उन्होंने वहां अपनी पारी पूरी खेल ली। ऐसे लोग वापस राजनीति में कम ही जाते हैं।

अपवाद हर जगह होते हैं। अर्जुन सिंह, हरिदेव जोशी और जगन्नाथ पहाडिय़ा जैसे उदाहरण हमारे सामने हैं, जिन्होंने राज्यपाल पद छोडऩे के बाद भी सक्रिय राजनीति में भाग लिया। के. राजशेखरन तो केरल के तिरुअनंतपुरम से चुनाव लडऩे के लिए हाल ही मिजोरम के राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर आए ही हैं। लेकिन ऐसे अवसरों को समाज ने सराहा भी नहीं और उनकी दूसरी पारी को ज्यादा सफलता भी नहीं मिली। अच्छा हो कल्याण सिंह जी कुछ ऐसा करें और कहें, जिससे स्थापित परम्पराओं से हटकर की गई उनकी यह टिप्पणी भविष्य के राज्यपालों के लिए नजीर बने और वे सब पद पर बैठने के बाद पार्टी नहीं, देश और समाज के बनकर रहें।

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