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कविताग्नि

Published: May 06, 2016 02:59:00 am

Submitted by:

afjal afjal khan

चारों तरफ आग सी लगी है। सड़क पर सूरज तपता है। घर में दीवारें तपती हैं। दफ्तर में बॉस का दिमाग तपता है। बाजार में कीमतें तप रही हैं। कार की छत तपती है और अगर आपको किंचित सफलता मिल गई तो जान पहचान वाले तपते नजर आते हैं।

चारों तरफ आग सी लगी है। सड़क पर सूरज तपता है। घर में दीवारें तपती हैं। दफ्तर में बॉस का दिमाग तपता है। बाजार में कीमतें तप रही हैं। कार की छत तपती है और अगर आपको किंचित सफलता मिल गई तो जान पहचान वाले तपते नजर आते हैं। 
लेकिन इधर लग रहा है जैसे सारा जमाना कविता की अग्नि में जल रहा है। क्षमा करें। हम कविता नामक किसी अभिनेत्री की बात नहीं कर रहे और न ही कविता नामधारी किसी सुन्दरी की। 
हम तो काव्यपुत्री कविता की बात कर रहे हैं जो शब्दों से रची जाती है, जिसमें भावों को मिलाया जाता है पर शब्दों और भावों से अधिक कविता में दिल का दर्द मिला होता है। हमारे पुराने कवि मित्र कृष्ण की एक जोरदार कविता है आप भी जरा मुलाहिजा फरमाइएगा। 
कृष्ण कहते हैं- कविता अमरता का एक मात्र अंतिम पथ है/ किन्तु इस कठिन-कराल-कंटकाकीर्ण-कौतुक-कान्तार को/ कोई-कोई ही पार कर पाया है। अधिकांश कवि ‘कविताग्निÓ में भस्म हो जाते हैं। 

कसम से कवि ने अपनी कलम से एक जोरदार सत्य कह दिया। अच्छा चलिए- आदिकवि वाल्मिकी, कविकुल गुरु कालीदास से लेकर आधुनिक कवि मुक्तिबोध तक आपको कितने कवियों के नाम याद आ रहे हैं। 
अगर आपने काव्यशास्त्र पढ़ा है तो अधिक से अधिक तीन दर्जन कवियों और हमारी तरह फुटपाथिए बच्चे की तरह कविता पढ़ी है तो दस-पांच कवियों से ज्यादा का नाम नहीं गिना सकते। आज के बेचारे कवियों का कहना ही क्या। इनमें से कुछ ने तो ‘सात ताली गिरोहÓ बना रखा है और कुछ ने ‘व्हाट्सएप ग्रुपÓ। 
सात ताली गिरोह का मतलब है वे सात कवि जो एक दूजे की कविता पर ताली बजाते हैं। इन सात कवियों का एक आलोचक मित्र होता है जो अक्सर इन्हीं कवियों के जेब से ‘पीनेÓ के बाद उन्हीं के सामने गरियाता है लेकिन सुबह उठ कर ऐसा जोरदार कसीदा लिख कर किसी कथित लघु पत्रिका में छपवाता है कि उस समीक्षा को पंडित रामचन्द्र शुक्ल और पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी भी पढ़ ले तो छाती पीट कर हाय-हाय करने लगे। 
दूसरा है ‘व्हाट्सएप समूहÓ। इसमें सात से लेकर सत्ताईस या ज्यादा कवि हो सकते हैं। इनमें एकाध कालजयी कवियित्री होती है जो तपते जेठ में फागुन की और सूखे जून में बसंत बहार की कविता लिखती है।
 विरह प्रेम पर लिखे उसके दोहे चौपाइयों पर सारे कवि ऐसी गलाफाड़ वाहवाही करते हैं कि डर के मारे बेचारे सच्ची कविता तक घबरा कर भाग जाती है। इधर फेसबुक पर तो कहना ही क्या? मार्क जुकरबर्ग के इस महापूंजीवादी शाहकार ने तो घर-घर, गली-गली, गांव-गांव, नगर-नगर इतने कवि पैदा कर दिये कि पूछो मत।
एक लुगाई कवियित्री कुछ भी लिख दे तो लाइक्स की बाढ़ आ जाती है। सच्चे कवि तो फेसबुक से दूर ही रहते हैं पर हजारों तुक्कड़ फेसबुक पर महाकवि बन बैठे। एक युवा कवि ने तो प्रतिदिन एक प्रेम कविता लिखने का ऐसा प्रण किया कि स्वयं ‘प्रेमÓ ने चुल्लू भर पानी में डूब कर आत्महत्या कर ली। 
यह आत्महत्या भी फेसबुक फ्रैन्ड्स की तरह नितान्त आभासी थी। बहरहाल आप अगर कविताग्नि में जल रहे हैं तो लिख डाले चार लाइन और फेसबुक पर पोस्ट कर दें। कल आपकी गिनती महाकवियों में होने लगेगी।
-राही

आज के कवियों का कहना ही क्या। इनमें से कुछ ने तो ‘सात ताली गिरोहÓ बना रखा है और कुछ ने ‘व्हाट्सएप ग्रुपÓ। सात ताली गिरोह का मतलब है वे सात कवि जो एक दूजे की कविता पर ताली बजाते हैं।

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