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जहरीला लोकतंत्र

Published: Jan 16, 2015 12:12:00 pm

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Super Admin

कहते हैं कि कलियुग में सुर और असुर एक ही शरीर में रहते हैं। समय-समय पर इनकी अभिव्यक्ति..

गुलाब कोठारी

कहते हैं कि कलियुग में सुर और असुर एक ही शरीर में रहते हैं। समय-समय पर इनकी अभिव्यक्ति होती रहती है। चारों ओर मानव देह में दानवों ने जीना मुश्किल किया हुआ है। कहने को भले ही हम लोकतंत्र में जी रहे हैं, किन्तु पिछले वर्षो का अनुभव कहता है कि देश-प्रदेश में कंस-दुर्योधन जैसा राज चल रहा है। नेताओं के लिए भ्रष्टाचार शब्द तो मनोरंजन का साधन लगता है। उनके परिजनों को देेखो – भ्रष्टाचार-दुष्कर्म करने के बाद भी प्रशंसा करते नहीं थकते।

पूरे देश में लोकतंत्र के नाम पर माफिया ही राज कर रहा है। चारों ओर कालेधन का अम्बार लगा पड़ा है। रिश्वत मांगने वाले यमदूतों की तरह कॉलर पकड़-पकड़कर धमकाते हैं। भू-माफिया से तो सब परिचित होते हैं। आबकारी माफिया, ड्रग माफिया, हथियार माफिया आदि पुलिस से सीधे जुड़े रहते हैं।

हत्यारे भी पुलिस और नेताओं की शरण ही पकड़ते हैं। सही अर्थो में बिना पुलिस की भागीदारी के कोई भी माफिया पनप ही नहीं सकता। कोई मुख्यमंत्री पुलिस मुखिया के विरूद्ध कार्रवाई करने का साहस नहीं दिखा पाया। जब तक 10-20 वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को कम से कम उम्रकैद की सजा नहीं होगी, तब तक पुलिस ही सारे माफिया का नेतृत्व करेगी। सरकारें उनको इसी बात के लिए पदक दिलवाती रहेंगी।

आज पुलिस की कृपा से लाखों नवयुवा नशे की भेंट चढ़ चुके हैं। यह सारी बलि कालेधन के धारकों तथा पुलिस के माथे ही चढ़ती है। भगवान भी उनको, उनके अन्न खाने वालों को कभी माफ नहीं करेगा। नशे का तथा माफियागिरी का सारा कारोबार कालेधन की ताकत से चलता है।

कालाधन भी सारा इस रिश्वत, भ्रष्टाचार और घोटालों की नदियों में ही बहता है। जब नेता और अफसर जनसेवा की बात करते हैं, तो उनके भोलेपन पर हंसी आती है। किसको मासूम कहें समझ में नहीं आता। नेताओं को, जिनका कालाधन धंधा चलाने के काम आता है अथवा उन बच्चों को जो नशे की चपेट में आकर जीवन की बाजी हारने में लग जाते हैं।

इससे तो लगता है कि बेरोजगारी बनाए रखना भी कई सोची-समझी चाल नहीं निकल जाए। भर्ती घोटाले और प्रक्रिया इस तरह बनाई जाती है कि कोई न कोई कोर्ट में जाकर भर्ती पर स्टे ले आता है। जो पुराने बैठे हैं, वे ही सेवानिवृत्ति के बाद भी जमे रहते हैं।

पत्रिका के मीडिया एक्शन ग्रुप ने जो तथ्य प्रकट किए, वे चौकाने वाले हैं। यह विषय कोई नया भी नहीं है। कोटा और गंगानगर जिला तो चप्पे-चप्पे में नशे के सहारे जी रहा है। अजमेर तो राज्य में नशीले पदार्थो के वितरण का सबसे बड़ा केन्द्र है। नेपाल, उत्तर-पूर्वी राज्यों, पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश से मादक पदार्थ पहले अजमेर पहुंचते हैं। यहां से देशभर में फैले वितरकों के जाल में पहुंचते हैं।

श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, चीन, नीदरलैण्ड, सीरिया, स्पेन, अमरीका, आस्टे्रलिया तक सप्लाई होती है। अजमेर पुलिस का असली चेहरा, राजेश मीणा की ओट में कई अफसरों के चेहरों को छिपा देना, इस तथ्य का प्रमाण है कि पूरे अजमेर जिले में सप्लाई का जाल बिछा है। जहां से पुलिस को बंधी आती है। बड़े-बड़े अफसर मूछों पर ताव देते हैं।

मादक द्रव्यों की रिपोट्र्स आदि देखी जाए तो आपको लगेगा कि हम लोग सतयुग से अभी बाहर ही नहीं आए। सन् 2012 में प्रदेश के किसी भी हवाई अaे पर मादक द्रव्यों की सप्लाई नहीं पकड़ी गई। मादक द्रव्य नियंत्रक ब्यूरो की सन् 2012 की वार्षिक रिपोर्ट में राजस्थान का नाम ही नहीं, जहां कोई पकड़ी दिखाई गई हो। आंकड़ों से तो लगता है कि यहां कोई गतिविधि है ही नहीं, जबकि प्रतापगढ़ में, जोधपुर में फैक्ट्रियों में माल बनता है। कार्रवाई की सारी फाइलें बन्द हो जाती हैं, बस! बच्चे मरते रहते हैं, पंगु होते रहते हैं, चोरियां करते रहते हैं। कालेधन वाले ये असुर अट्टहास करते हैं।

नशे में ताण्डव करते हैं। पीढियां जितनी निकम्मी और पंगु होंगी, इनका सत्ता का नशा और गहरा होता जाएगा। किसी को फुरसत नहीं कि गांवों में जाकर इस स्थिति का आकलन करे तथा अपनी करतूतों का प्रतिबिम्ब देखे। आज सभी राज्यों में माफिया वी.आई.पी. की तरह घूम रहा है। दिल्ली के कई नामी-गिरामी माफिया (जिनके नाम बरसों से लोग जानते हैं) आज सरकारों की नीतियों तक को प्रभावित करते हैं। जो माफिया पूर्व केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री के साथ जुड़े थे, वे ही दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के साथ भी जुडे रहे हैं। दिल्ली मीडिया में खूब चर्चित भी रहे हैं।

देश का कोई भी राज्य इससे अछूता नहीं है। और देश का एक भी मुख्यमंत्री यह नहीं कह सकता कि उसे इस सब की जानकारी नहीं है। हाल ही में कुछ प्रदेशों में नई सरकारें बनी हैं। अगले तीन महीनों में दिल्ली के ये सारे धुरंधर माफिया इन सभी प्रदेशों में सक्रिय दिखाई देंगे। और पुलिस की सबके साथ मौन स्वीकृति होगी।

बच्चे जाएं भाड़ में इनकी बला से। कहने का अर्थ यह है कि कोई भी मुख्यमंत्री या पुलिस महानिदेशक इन पर हाथ नहीं डालता। नेता और अफसर का ही धन इन कार्यो में लगता है तथा ये ही पकड़ने वाले। कैसे संभव है। राजनीति में कोई रिश्ता भी नहीं होता। सब के दिल पथराए हुए हैं। आश्चर्य है कि कोर्ट भी प्रसंज्ञान नहीं लेते। पूरी पीढ़ी जर्जर, पूरी व्यवस्था में कोई साथ नहीं। प्रशासन बेरहम, पुलिस हत्यारी, शिक्षक नाकारा और देश का भविष्य…?

जनता को ही उठना होगा। युवा दल बनाकर मैदान में उतरें, अभिभावक साथ दें। आस-पास कोई बेचता हुआ नजर आए, तो उसे पकड़कर किसी मजिस्ट्रेट के सामने खड़ा कर दें। पुलिस से दूर रखें। सप्लाई करने वाले को समाज से बाहर निकालना है, जैसे सूखे तालाबों से “अमृतं जलम्” में मिट्टी को निकाला था। ईश्वर हमारा साथ देगा।
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