नीति और रणनीति
Published: Jan 03, 2017 11:03:00 pm
हमारे प्यारे प्रधानजी ने कहा कि नोटबंदी एक ‘नीति’ थी और पचास दिन में
सत्तर बार नियम बदलना एक ‘रणनीति’। सच भी है। ‘नीति’ में एक अस्थायी भाव
होता है लेकिन अगर नीति के आगे
व्यंग्य राही की कलम से
हमारे प्यारे प्रधानजी ने कहा कि नोटबंदी एक ‘नीति’ थी और पचास दिन में सत्तर बार नियम बदलना एक ‘रणनीति’। सच भी है। ‘नीति’ में एक अस्थायी भाव होता है लेकिन अगर नीति के आगे चतुराईपूर्वक दो शब्द ‘रण’ लगा दिये जाए तो आप मजे से उसे तोड़-मरोड़ सकते हैं। चलिए ‘रणनीति’ के बारे में हम आपको दो धनुर्धरों की कहानियां सुनाते हैं। एक बार एक राजा ने अपने महल के सामने एक अंगूठी लटकाई और कहा कि जो भी धनुर्धर इस अंगूठी के बीच में से अपना तीर निकाल देगा उसे वह अपना प्रधान सेनापति बना देंगे। सैकड़ों तीरंदाज ने अपना कौशल आजमाया।
एक दिन साधारण प्रतिभा वाला मनुष्य आया और उसने भी अपनी किस्मत आजमाने को तीर चलाया। और सारा देश यह देख कर दंग रह गया कि उसका तीर अंगूठी के बीच से पार हो गया। मुल्क में जैजैकार मच गई। राजा ने तुरंत उसे सेना का प्रधान बना दिया। प्रधान बनते ही उस आदमी ने पहला काम यह किया कि अपने धनुष-बाण तोड़ कर जला दिये। लोगों ने पूछा तो वह बोला- अंगूठी से तीर निकलना, तीर में तुक्का था। यह करिश्मा किस्मत से हुआ।
अब तीर कमान को हाथ लगाया तो मेरी पोल खुल जाएगी। दूसरी कहानी और भी दिलचस्प है। एक बार धनुर्विद्या में पारंगत एक राजा जंगल में गया। वहां उसने देखा कि हरेक पेड़ पर एक गोला बना हुआ है और उस गोले के बीचोंबीच एक तीर गड़ा है। राजा हैरत में पड़ गया और सोचने लगा कि वो धनुर्धर कितना महान है जिसने हरेक गोले के बीचोंबीच निशाना लगाया है।
राजा उस महान् धनुषबाज को खोजते-खोजते गांव में पहुंचा और बोला- क्या वो महान् धनुर्धर यहां रहता है। यह सुनते ही गांव वाले हंसने लगे और बोले- अजी वो कोई धनुर्धर-वनुर्धर नहीं है। वो एक नौसिखिया है जो पहले तीर चलाता है और बाद में उसके चारों तरफ गोला खींच देता है। तो साहब। समझ गए ‘नीति’ और ‘रणनीति’ में फर्क।