फिलहाल के राजनीतिक हालात तो यही इशारा कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देशवासियों का न्यायपालिका के प्रति भरोसा और मजबूत हुआ है। ट्रायल कोर्ट के जॉन माइकल कुन्हा ने जयललिता, शशिकला और अन्य को आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी करार दिया था। लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट के जज सी. कुमारास्वामी ने दोषियों को बरी कर दिया था।
कर्नाटक सरकार की अर्जी पर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला भ्रष्ट राजनेताओं के लिए सबक है कि वे कानून के हाथों बच नहीं सकते हैं। देखने में आया है कि भ्रष्ट राजनेता अकसर अल्प अवधि की सजा काटकर बाहर आ जाते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने शशिकला के मामले में भारी भरकम जुर्माना भी लगाया है।
ये नसीहत है कि भ्रष्ट राजनेता अपनी काली कमाई को परिवार वालों तथा अपने भविष्य के लिए बचा नहीं पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक की राजनीति पर जरूर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। कभी जयललिता के विश्वासपात्र रहे ओ. पन्नीरसेल्वम को शशिकला धड़े ने अलग थलग कर दिया है।
शशिकला समर्थक विधायकों की बड़ाबंदी जारी है। पन्नीरसेल्वन के लिए सबसे बड़ा फायदा और दिक्कत काफी अजीबोगरीब है। तमिलनाडु में आज की तारीख में यदि हम जमीनी हकीकत देखें तो पाएंगे कि आम जनता या दूसरे शब्दों में कहें कि अन्नाद्रमुक का अधिकांश काडर पन्नीरसेल्वम के साथ है लेकिन विधायकों का उन्हें पर्याप्त संख्या में साथ नहीं है। इसे हम राजनीतिक विरोधाभास ही कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री के पद पर काबिज होने की कवायद में जुटे पन्नीरसेल्वम को आज विधायकों का साथ चाहिए न कि वोटरों का।
उधर, विधायकों का मानना है कि उन्हें मई, 2016 के विधानसभा चुनाव में शशिकला एंड कंपनी के कारण टिकट मिला था और अम्मा यानी जयललिता के करिश्मे के कारण उन्हें जीत मिली थी। इसलिए वे शशिकला खेमे के साथ बने हुए हैं। शशिकला खेमे ने ई. पलनिसामी को विधायक दल का नेता चुनकर मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया है।
अब राज्यपाल को एक नई स्थिति का सामना करना पड़ेगा। संवैधानिक रूप से पन्नीरसेल्वम अब मुख्यमंत्री नहीं हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से वे इस पद पर दावेदारी जता रहे हैं। लेकिन सदन में ई. पलनिसामी ही विश्वास मत हासलि करेंगे। यानी यदि पन्नीरसेल्वम अन्नाद्रमुक खेमे में सेंध लगा पाए तो वे पलनिसामी को विश्वासमत हासिल नहीं करने देंगे और फिर बाद में राज्यपाल को अपने समर्थक विधायकों की सूची सौंपकर दावा पेश करेंगे। लेकिन यहां शशिकला ने एक दांव चला है, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद पन्नीरसेल्वम को पार्टी से बर्खास्त कर दिया है। यानी पन्नीरसेल्वन को समर्थन देने वाला भी अन्ना द्रमुक पार्टी की नजर में पक्षद्रोही कहलाएगा।
तमिलनाडु की सियासी गुत्थी खासी उलझ गई है। भारतीय राजनीतिक इतिहास में ये अपनी तरह का अनूठा मामला बनकर सामने आया है। माना जा रहा है कि फैसले के बाद अन्नाद्रमुक पर भ्रष्ट होने का ठप्पा लग जाएगा, लेकिन मैं इससे पूरी तरह से सहमत नहीं हूं।
यदि हम देखें तो तांसी घोटाले के बाद वर्ष 2011 में जयललिता ने चुनाव जीता था। कोडाइकनाल होटल मामले में आरोपों के बावजूद जयललिता ने चुनाव में जीत हासिल की थी। लेकिन हां, शशिकला खेमे को खासा आघात सहना पड़ेगा। शशिकला को जनाधार प्राप्त नहीं है।
शशिकला कुनबे के साथ अपनी नजदीकियों के कारण जयललिता को वर्ष 1996 के चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। यहां तक कि जयललिता अपनी बरगूर सीट भी हार गईं थीं। राजनीतिक रूप से देखें तो हाल के राजनीतिक घटनाक्रम से द्रमुक को खासा फायदा मिला है। लेकिन अन्नाद्रमुक शेष अवधि के दौरान यदि राजनीतिक स्थिरता प्राप्त कर लेती है तो फिर द्रमुक के पास से ये फायदा निकल जाएगा।
कांग्रेस तो फिलहाल दर्शक की भूमिका में ही है और आगे भी रहेगी। भाजपा के पास भी इस राज्य में फिलहाल आशा जगाने के लिए कुछ खास नहीं है। अब आइए, जानें कि शशिकला के पास अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने के लिए क्या विकल्प हैं- पहला, वे सुप्रीम कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका लगा सकती हैं। लेकिन अभिसमयों के अनुसार याचिका फैसला सुनाने वाली बेंच के समक्ष ही लगाई जा सकती है, लेकिन जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष जल्द ही रिटायर होने वाले हैं। ऐसे में उन्हें जल्द याचिका लगाने और सुनवाई का इंतजार करना होगा।
दूसरा-शशिकला खुद को राजनीतिक रूप से शहीद बताने के जतन कर सकती हैं। इससे उन्हें भविष्य में राजनीतिक फायदा मिल सकता है। बहरहाल, तमिलनाडु की राजनीतिक उठापटक का समाधान अब विधानसभा से ही तय होगा।