ऐसे लोगों का कोई धर्म नहीं होता।’ क्योंकि हर धर्म एक-दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना जगाता है। भाजपा और जद (यू) के बीच रिश्ते पहले ही मधुर नहीं चल रहे। मोदी मंत्रिमंडल के गठन के समय नीतीश अपने दल के एक सांसद को मंत्री पद दिए जाने का प्रस्ताव ठुकरा चुके थे। बाद में उन्होंने राज्य मंत्रिमंडल के विस्तार में भाजपा को दरकिनार कर दिया। ऐसी ही कुछ हालत पश्चिम बंगाल में है। दोनों ही राज्यों में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। तृणमूल की अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता में ईद की नमाज के बाद नमाजियों के समक्ष राजनीति शुरू कर दी। ‘दीदी’ ने कहा, ‘जो हमसे टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा।’ इवीएम में गड़बड़ी करने वालों को जल्द ही कीमत चुकानी होगी। भाजपा के ‘जय श्री राम’ नारे से व्यथित तृणमूल अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा धर्म को राजनीति में घसीट रही है, हमें इसका मिलकर मुकाबला करना होगा।
धार्मिक आयोजन पर राजनीतिक भाषण से साफ झलकता है कि ममता बनर्जी लोकसभा चुनावों के दौरान बंगाल में बढ़ी भाजपा की ताकत से परेशान जरूर हैं। उन्हें लगता है कि धु्रवीकरण के बिना विधानसभा चुनाव में कहीं वे मुकाबले में पिछड़ ना जाएं। उन्होंने कहा, बंगाली संस्कृति और परम्परा का आधार एकता है। लेकिन क्या एकता ऐसे बनती है? चाहे वे गिरिराज सिंह हों या नीतीश कुमार या फिर ममता बनर्जी। उन्हें यह समझ जाना चाहिए कि धार्मिक विद्वेष फैलाने वाले बयानों या भाषणों से एकता कायम नहीं होगी। उन्हें अपने कार्यों और आचरण से जनता का विश्वास जीतना होगा। हाल के लोकसभा चुनाव में मतदाता साबित कर चुका है कि वह सिर्फ विकास और राष्ट्र की एकता का साथ देगा। तभी तो उसने सभी अवसरवादी गठबंधनों को नकार दिया।
राजनेताओं और राजनीतिक दलों को यह भी समझ लेना चाहिए कि धु्रवीकरण या विखंडन की राजनीति अब इस देश में नहीं चलेगी। पूरे विश्व में भारत अपनी धर्मनिरपेक्षता के लिए जाना जाता है। यहां तमाम धर्मों के लोग आपसी सद्भाव, प्रेम और भाईचारे से रहते हैं। नवरात्रों में मुस्लिम परिवारों के व्रत और रमजान में हिंदुओं के रोजे रखने की मिसालें यहां हैं। फिर क्यों राजनेता यह नहीं समझते कि लोगों को जोडऩे में ही उनका हित है। सर्वजन हिताय की बात करने और उस पर अमल करने वालों को ही जनता पसंद करेगी।