scriptहड़ताल की राजनीति | Politics of Strike in India | Patrika News

हड़ताल की राजनीति

locationजयपुरPublished: Jun 16, 2019 02:57:55 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

यह बात सही है कि जूडा पर काम का बोझ है। उसे हल्का किया जाना चाहिए। हड़ताल किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।

Politics of Strike

Politics of Strike

पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों (जूडा) से मारपीट के विरोध में देशभर में हड़ताल हो रही है। हर जगह डॉक्टरों को सुर क्षा देने की मांग हो रही है। स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा रही हैं। हड़ताली डॉक्टरों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अल्टीमेटम को भी मानने से इनकार कर दिया है। पश्चिम बंगाल हाईकोर्ट ने भी सरकार को दखल देकर जल्द हड़ताल खत्म कराने के निर्देश दिए हैं। लेकिन, डॉक्टर हैं कि मानने को तैयार नहीं है।

हड़ताल की वजह सिर्फ इतनी है कि सोमवार रात को कोलकाता के नीलरतन सरकारी मेडिकल कॉलेज में एक व्यक्ति की इलाज के दौरान मौत हो गई। परिजनों ने डॉक्टरों पर अनदेखी का आरोप लगाया, जिसको लेकर जूनियर डॉक्टरों और परिजनों के बीच में विवाद हो गया। दोनों पक्षों में मारपीट हो गई। इसके बाद से डॉक्टर हड़ताल पर हैं। वे बिना सशस्त्र सुरक्षा के काम पर वापस आने को राजी नहीं हैं। खैर, यह सिर्फ एक मामला नहीं है। पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों में आए दिन इस तरह के हालात बनते हैं। मरीज के परिजनों के साथ जूडा के विवाद की घटनाएं लगभग आम हैं।

पिछले दिनों राजस्थान के एसएमएस अस्पताल के जूनियर डॉक्टर का वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह मरीज के साथ मारपीट कर रहे थे। मध्यप्रदेश के गांधी मेडिकल कॉलेज में भी हाल के दिनों में इस तरह का विवाद हुआ था। उसके बाद कॉले ज की हाईपावर कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर संभागायुक्त कल्पना श्रीवास्तव ने विवाद की वजह जानने के लिए जांच कमेटी बनाई। कमेटी की रिपोर्ट चौंकाने वाली थी। जो वजह सामने आई, वह इशारा करती है कि पूरे देश में भी विवाद के पीछे लगभग यही कारण हो सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया कि मेडिकल कॉलेज जूनियर डॉक्टरों के भरोसे चल रहे हैं। सीनियर डॉक्टर अस्पतालों के भीतर कुछ समय के लिए ही आते हैं। ऐसे में गंभीर मरीज भी जूडा के हवाले ही होते हैं। अत्यधिक काम के बोझ के कारण जूडा दबाव में होते हैं। उसके कारण उनमें चिड़चिड़ापन भी बढ़ रहा है, जो विवाद का बड़ा कारण है। सरकारी अस्पतालों में मरीजों का दबाव अधिक है और सुविधाएं अपर्याप्त। इसके कारण मरीजों को देखने में भी परेशानी आती है। ऐसे में परिजन और जूडा के विवाद होते हैं।

खैर, गांधी मेडिकल कॉलेज ने अपने सीनियर डॉक्टरों को अस्पताल में रहने और जूडा को मानसिक तौर पर शांत रखने के लिए योग और दूसरे इंतजामों के बारे में सोचना शुरू कर दिया है। सवाल पश्चिम बंगाल की हड़ताल का है। जिस तरह से इस छोटी घटना पर पूरे देश में हड़ताल को तूल दिया जा रहा है, वह सवाल खड़ा करता है कि आखिर इसके पीछे कौन है?

उस समय यह सवाल और बड़ा हो जाता है जब खुद ममता बनर्जी इस हड़ताल के पीछे भाजपा और वामदलों के होने का आरोप लगाती हैं। तो क्या अब सरकारी अस्पतालों के भीतर भी राजनीति प्रवेश कर गई है? तो क्या अपने नफा-नुकसान के हिसाब से राजनीतिक पार्टियां हड़ताल कराएंगी और आम आदमी को तड़पकर मरने के लिए छोड़ देंगी? डॉक्टरों को भी विवाद की जड़ में जाना होगा।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो