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Patrika Opinion: कल्याण योजनाओं में बाधा न बने सियासत

Published: May 22, 2022 09:05:28 pm

Submitted by:

Patrika Desk

गरीब के पेट में निवाला जाए, वह भूखा नहीं रहे, यह उद्देश्य तो सभी सरकारों का होना ही चाहिए। लेकिन कोई योजना किस तरह से बेहतर तरीके से लागू हो, इसका ध्यान रखना भी जरूरी है।

प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

घर-घर राशन पहुंचाने की दिल्ली सरकार की योजना के अमल पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। उचित मूल्य की दुकानों पर होने वाली अनियमितताओं को रोकने का दावा करते हुए दिल्ली सरकार इस योजना को लेकर आई थी। वहीं केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम का हवाला देते हुए केन्द्र की योजना को नए नाम से संचालित करने पर ऐतराज किया था। आप सरकार की इस योजना को दिल्ली के सरकारी राशन डीलर्स संघ ने यह कहते हुए चुनौती दी थी कि यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम, पीडीएस नियम और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है।
यह बात सही है कि अनेक पात्र गरीबों के राशन से वंचित होने की स्थिति को रोकने के लिए दिल्ली सरकार घर-घर राशन पहुंचाने की अवधारणा लेकर आई थी। गरीब के पेट में निवाला जाए, वह भूखा नहीं रहे, यह उद्देश्य तो सभी सरकारों का होना ही चाहिए। लेकिन कोई योजना किस तरह से बेहतर तरीके से लागू हो, इसका ध्यान रखना भी जरूरी है। देश के दूसरे राज्यों द्ग मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक के बेंगलुरु द्ग में भी घर-घर राशन पहुंचाने की योजनाएं छिटपुट स्तर पर अलग-अलग स्वरूपों में संचालित की गई हैं। जनहित से जुड़े मसलों पर जब राजनीतिक खींचतान होती दिखती है तो वह ज्यादा चिंताजनक है। इस प्रकरण में केन्द्र व दिल्ली सरकार के तर्क अपनी-अपनी जगह सही भी हैं। लेकिन जरूरत उस समन्वय की भी है जिसके अभाव में गरीब कल्याण की योजनाएं बाधित होती हैं। आए दिन ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जब सियासी खींचतान के आगे अहम योजनाओं का क्रियान्वयन टल जाता है। केन्द्र का आरोप है कि दिल्ली सरकार ने उसकी ओर से उपलब्ध करवाए जाने वाले राशन को घर-घर तक पहुंचाने की योजना का नाम मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना रखा। जाहिर तौर पर इसके भी सियासी फायदे-नुकसान दोनों को ही नजर आ रहे थे। कोर्ट ने यह भी कहा है कि दिल्ली सरकार कोई नई योजना लेकर आ सकती है लेकिन केन्द्र के पैसे का इसके लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
सब जानते हैं कि उचित मूल्य की दुकानों पर राशन की कालाबाजारी की शिकायतें आम हैं। यह भी सरकारी रेकॉर्ड में है कि न केवल बड़ी संख्या में फर्जी राशन कार्ड बनते रहे हैं और उनके नाम पर हजारों करोड़ रुपए के अनाज से राशन माफियाओं की झोली भरती रही है। यह पूरा नुकसान देश का ही होता है। इसलिए देश भर में ऐसी योजना का विकल्प तलाशा जा सकता है जिसमें भ्रष्टाचार की गुंजाइश ही न हो।

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