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गरीबों का मजाक

Published: Apr 04, 2016 09:57:00 pm

निजी स्कूलों में बच्चों को शिक्षा दिलाना आज के दौर में अभिभावकों के
लिए चांद-सितारे तोड़कर लाने से कम नहीं। सरकारें कितने भी नियम-कानून
क्यों न बना दें निजी स्कूल प्रबंधनों को इनकी परवाह ही नहीं

Sumitra Mahajan

Sumitra Mahajan

सुमित्रा महाजन से तो ये उम्मीद नहीं थी कि वे देश के करोड़ों गरीबों का मजाक उड़ाने वाला बयान सार्वजनिक रूप से दे डालें। लोकसभाध्यक्ष का पदभार संभालने वाली सुमित्रा महाजन की गिनती गिने-चुने संजीदा सांसदों में होती रही हैं। 1989 से लगातार आठ बार सांसद चुनी जाने वाली महाजन सोच-विचार कर बोलने के लिए पहचानी जाती हैं लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र इंदौर में निर्धन विद्यार्थियों के अभिभावकों को उन्होंने सलाह दे डाली कि यदि निजी स्कूलों में फीस भरने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं तो बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाएं।

बच्चों के अभिभावकों ने महाजन से निजी स्कूलों में मनमानी फीस बढ़ाने को लेकर मुलाकात की थी। महाजन के सपाट जवाब से ये सवाल खड़ा होता है कि इस देश के गरीब बच्चों को अच्छी अथवा प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार है या नहीं? निजी स्कूलों में मनमानी फीस बढ़ाने की समस्या अकेले इंदौर अथवा मध्य प्रदेश तक सीमित नहीं है। राजस्थान तो पहले ही इस विवाद की आग में झुलसा हुआ है।

हर शहर का हाल एक-सा है। निजी स्कूलों में बच्चों को शिक्षा दिलाना आज के दौर में अभिभावकों के लिए चांद-सितारे तोड़कर लाने से कम नहीं। सरकारें कितने भी नियम-कानून क्यों न बना दें निजी स्कूल प्रबंधनों को इनकी परवाह ही नहीं। ऐसे में लोकसभाध्यक्ष भी गरीबों का मजाक उड़ाने पर उतारू हो जाए तो वो कहां जाए? सरकारों का काम होता क्या है? बिजली-पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना ही तो सरकारों का काम रह गया है। ये काम भी वे ढंग से नहीं कर पाएं तो क्या उन्हें सत्ता में रहने का अधिकार रह जाता है? देश में कितने बच्चे ऐसे हैं जो सरकारी स्कूलों से शिक्षा ग्रहण करके भी अच्छे-अच्छे ओहदों तक पहुंचने में कामयाब रहे हैं।

निजी स्कूलों के प्रबंधन की दादागिरी से आज समाज का हर वर्ग परेशान है। साल-दर-साल फीस बढ़ाने के अलावा तमाम तरह के शुल्कों ने आम अभिभावकों का जीना हराम कर रखा है लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नजर नहीं आता। वे मंत्री-विधायक भी नहीं जो चुनाव के समय दर-दर सिर झुकाते नजर आते हैं लेकिन सत्ता में पहुंचते ही जिम्मेदारियों से किनारा कर बैठते हैं। जहां आम आदमी की बात सुनने वाला कोई ना हो, क्या उसे लोकतंत्र माना जाए? लोकतंत्र का अर्थ तो आम आदमी की आवाज ही है। सुमित्रा महाजन का सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का कहने के पीछे आशय भले ही कुछ भी रहा हो लेकिन उनके इस बयान ने आम आदमी को तकलीफ और खुद उनकी छवि को धक्का जरूर पहुंचाया है।
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