लेकिन आत्मविश्वास की यह आभा कहां से आ रही है? एक साल के लिए स्थगित और अब कठिन परिस्थितियों में आयोजित होने वाले टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने वाले 125 एथलीटों में से प्रत्येक ने खेल शुरू होने के पहले शारीरिक, भावनात्मक और प्रतिस्पर्धी रूप से तैयार रहने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह कहना उचित होगा कि हमारे बैडमिंटन खिलाड़ी, जिन्हें ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने का मौका मिला है, उन्हें वह समर्थन मिला जो वे चाहते थे। आज, क्वालीफाई करने वाले प्रत्येक बैडमिंटन खिलाड़ी की मदद, एक विदेशी कोच, एक फिजियोथेरेपिस्ट और एक स्ट्रेंथ एंड कंडीशनिंग कोच द्वारा की जा रही है। यह स्थिति उस समय से बहुत अलग है, जब खिलाड़ी पर इस तरह के व्यक्तिगत ध्यान की कोई व्यवस्था नहीं थी। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसकी अपेक्षा विकसित देशों के खिलाड़ी भी करते हैं।
मुझे ‘रियो 2016’ की याद आती है, जब भारतीय दल को वांछित परिणाम नहीं मिलने के बावजूद, प्रधानमंत्री ने खिलाडिय़ों को आगे चलकर 100 प्रतिशत प्रदर्शन देने के लिए प्रोत्साहित किया था। मैं उस ओलंपिक टास्क फोर्स का हिस्सा था, जिसे उन्होंने रियो के लिए नियुक्त किया था। मैं देख सकता हूं कि भारतीय खेल में बदलाव की शुरुआत हो रही है और देश में खेल के संदर्भ में सकारात्मक और अधिक पेशेवर माहौल बनाने के लिए उच्चतम स्तर से जमीनी स्तर तक गहरी दिलचस्पी ली जा रही है।
एक उल्लेखनीय बदलाव के रूप में भारतीय खेल प्राधिकरण के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया है कि खिलाडिय़ों की सभी जरूरतों को पूरा किया जाए। जाहिर है, इसका एकमात्र उद्देश्य एथलीटों को खेल के सबसे बड़े उत्सव के लिए अच्छी तरह से तैयार होने में मदद करना है। राष्ट्रीय खेल संघों और भारतीय ओलंपिक संघ के साथ समन्वय करते हुए, युवा मामले और खेल मंत्रालय ने यह सुनिश्चित किया कि कोचों के अनुबंध बढ़ाए जाए। देश भर के उत्कृष्टता केंद्रों में सुरक्षित तरीके से राष्ट्रीय शिविरों का फिर से आयोजन किया गया।
मैं उम्मीद और कामना कर रहा हूं कि टोक्यो ओलंपिक के लिए किए जाने वाले प्रयास सफल होंगे। यह हमारे लिए एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है क्योंकि हमने अपने एथलीटों में काफी निवेश किया है। इससे युवाओं को खेलों को अपनाने की और अधिक प्रेरणा मिलेगी। यह हमारे लिए एक अवसर है कि हम कोविड-19 महामारी के समय में लोगों के चेहरों पर खुशी का भाव ला सकें।