मैं माननीय मुख्यमंत्री जी को कहना चाहता हूं कि यदि कांग्रेस को देश की राजनीति में वजूद बनाए रखना है तो सबसे पहले अपने शासन वाले राज्यों में स्वच्छ, प्रभावशाली, विकासमान और संवेदनशील प्रशासन का उदाहरण पेश करे। दिल्ली के केजरीवाल का उदाहरण सामने है। भाजपा जैसी शक्ति भी ढह गई। कांग्रेस का भविष्य भी इसी बात पर टिका है। स्वयं मुख्यमंत्री पल्ला झाड़ दें, तब सरकार कहां है? सात करोड़ लोगों ने एक उत्तरदायित्व सौंपा, वे कष्ट के समय कहां जाएंगे?
पैसा नहीं है तो विकास भले ही न हो, किन्तु संवेदनशीलता और सुशासन के माध्यम से दिलों को जीता जा सकता है। स्थिति यहां उल्टी है। माफिया राज कर रहा है। अपराध बढ़ते जा रहे हैं। पुलिस निरंकुश होती जा रही है। इसका एक कारण कांग्रेस का शीर्ष कमजोर होना भी है। अत: दलाली करने वाले अफसरों की समानान्तर सरकार बन गई है। जो लोग पिछली सरकार में कमाई (अवैध) कर रहे थे, आज भी वे ही कर रहे हैं।
बाईस फरवरी की रात को जो कुछ घटनाक्रम सात, सिविल लाईन्स में हुआ, उसका पूरा सी.सी.टी.वी. रेकॉर्ड प्रमाण है। पुलिस का रेकॉर्ड तो यह कहता है कि बड़े से बड़े हादसे पर भी समय पर नहीं पहुंचती। यहां क्या तेज आवाज इतना बड़ा आपातकाल या अपराध था कि पुलिस अधिकारी ने पत्रिका के किसी व्यक्ति से बात करना उचित ही नहीं समझा। मकान की तलाशी उसी ढंग से ली गई, जैसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के घर की। यानी बदले की भावना से। क्या इसे निष्पक्ष पत्रकारिता के विरुद्ध दबाव की राजनीति नहीं माना जाएगा? जबकि स्वयं मुख्यमंत्री अनेक पत्रकार वार्ताओं में ऐसी मानसिकता प्रकट कर चुके हैं। हमारे साथ वही सब कुछ हो भी रहा है, जैसी उनकी घोषणाएं हैं। हमें कोई शिकायत भी नहीं है। सरकार उनको ही चलानी है। हमें तो इस पुलिस के आक्रमण से, गरिमाहीन व्यवहार से है, जो सरकार के इशारे से किया गया। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया व उपनेता राजेन्द्र राठौड़ ने इस मामले को सदन में उठाया। संतोष की बात यह रही कि, जवाब में संसदीय कार्यमंत्री शान्ति धारीवाल ने माना, ऐसी कार्रवाई की सरकार की कोई मंशा नहीं थी। जो भी अधिकारी वहां गए, किसलिए गए इसकी जांच वरिष्ठ अधिकारी से करवाई जाएगी।
सरकार तो जनता ने बदल दी। लोग तो वही हैं, मानसिकता वही है। आज खबरों से जब मंत्री नाराज हों, तो विज्ञापन बन्द, भुगतान बन्द। जब सही रास्ते पर चलने का यह फल है लोकतंत्र में। साधारण व्यक्ति पर क्या गुजरती होगी!
जनता को तैयार होना पड़ेगा। केवल पांच साल में एक बार मतदान करना काफी नहीं होगा। भ्रष्टाचार के विरुद्ध भी अभियान चलाना पड़ेगा। वरना, नई पीढ़ी लाचारी में ही जीवन काटेगी। जब नेता ही हाथ झाड़ दे तो कहां जाएंगे? अफसर पैदा तो भारत में ही होते हैं, शिक्षा और प्रशिक्षण से शुद्ध अंग्रेज हैं। नेता और अधिकारी के बीच इसीलिए छत्तीस का आंकड़ा है और यही देश का दुर्भाग्य है।