scriptप्रसंगवश: प्रवासी परिंदों की सुरक्षा के प्रति हम कितने गंभीर | prasangvash : safety of migratory birds is necessary also | Patrika News

प्रसंगवश: प्रवासी परिंदों की सुरक्षा के प्रति हम कितने गंभीर

Published: Nov 25, 2021 05:02:54 pm

Submitted by:

Patrika Desk

सर्दी के मौसम में बड़ी संख्या में प्रवासी परिंदे राजस्थान आते हैं, पर उनकी सुरक्षा के इंतजाम नजर नहीं आते। दरअसल, प्रदेश में पिछले तीन साल से जिस तरह बड़ी संख्या में पक्षियों की मौत हो रही है, उसे देखते हुए संकट की गंभीरता समझी जा रही हो ऐसा नहीं जान पड़ता।

birds.jpg
राजस्थान की संस्कृति और लोकगीतों में जितना महत्त्व प्रवासी पक्षियों को दिया गया है, वैसा सरकारी स्तर पर दिखाई नहीं देता है। प्रवासी परिंदों की सुरक्षा व देखभाल में भी किसी तरह की गंभीरता दिखाई नहीं देती।
बड़ी संख्या में परिंदों के मरने की घटनाएं सरकारी व्यवस्थाओं एवं महामारी से निबटने के इंतजामों की पोल खोल रही हैं। जोधपुर जिले में कुरजां की मौत का सिलसिला अभी थमा भी नहीं कि सांभर लेक में भी दो दर्जन के करीब कौए मृत पाए गए।
दरअसल, प्रदेश में पिछले तीन साल से जिस तरह बड़ी संख्या में पक्षियों की मौत हो रही है, संकट की गंभीरता समझी जा रही हो ऐसा नहीं जान पड़ता। नवंबर के दूसरे सप्ताह में जोधपुर जिले के बिलाड़ा क्षेत्र के कापरड़ा गांव में कुरजां प्रवासी पक्षी बड़ी तादाद में मृत मिले थे। जोधपुर जिले में अब तक सात सौ से ज्यादा कुरजां की मौत हो चुकी है।
मामले का चिंताजनक पहलू यह है कि इन घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया जा रहा। बीमारी की रोकथाम के प्रभावी एवं पुख्ता इंतजाम तक नहीं हो रहे। सांभर में प्रवासी पक्षियों की मौत पर प्रशासन की नींद तो दो सप्ताह बीतने के बाद टूटी थी। इसके बाद पक्षियों की मौत का कारण पता करने में भी बारह दिन बीत गए जबकि उनके मरने का क्रम जारी रहा।
कई दिनों तक तो प्रशासन यही तय नहीं कर पाया कि मरे हुए पक्षियों को दफन किया जाए या उनका दहन किया जाए। पिछले साल भी देश-प्रदेश में हजारों पक्षियों की बर्ड फ्लू से मौत हुई थी। इस बार भी यही बीमारी वजह बनी पर शुरू में कुरजां का इलाज रानीखेत बीमारी मानकर किया जाता रहा।
राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार से पक्षियों की मौत के कारणों का पता लगाने को भी कहा था। हाईकोर्ट की ओर से ही नियुक्त किए गए न्याय मित्रों ने झील का दौरा किया तो उन्होंने अपनी रिपोर्ट में अधिकारियों की लापरवाही का हवाला दिया था। अफसोजनक यह भी है कि सांभर त्रासदी के बाद पक्षियों की देखभाल के लिए जो बजट मिला वह खर्च ही नहीं हो पाया।
वन विभाग ने इस त्रासदी के बाद सरकार से 37 लाख रुपए का बजट मांगा था। उसमें से 17.5 लाख रुपए स्वीकृत भी हुए लेकिन फंड काम में न लेने से संसाधनों का अभाव रहा। बहरहाल, जरूरत प्रकृति के रक्षक प्रवासी पक्षियों के संरक्षण और पारिस्थितिकी को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर व्यापक कार्ययोजना तैयार करने और उसे ईमानदारी से लागू करने की है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो