scriptप्रवाह : भ्रष्टाचार के रखवाले | Pravah Bhuwanesh Jain column on the issue of corruption in rajasthan keepers of corruption | Patrika News

प्रवाह : भ्रष्टाचार के रखवाले

locationनई दिल्लीPublished: Jan 06, 2023 02:25:53 pm

Pravah Bhuwanesh Jain column: राजस्थान में एक सरकारी आदेश एक आदेश ने सब किए-कराए पर पानी फेर दिया। भ्रष्टाचार का झण्डा पुन: बुलंद कर दिया। अब यह होगा कि रंगे हाथों पकड़े जाने और केस दर्ज करने के बावजूद सरकारी कर्मियों का नाम तक नहीं उजागर किया जाएगा… रिश्वतखोर अफसरों को बचाने के लिए की जा रही पैंतरेबाजी पर केंद्रित ‘पत्रिका’ समूह के डिप्टी एडिटर भुवनेश जैन का यह विशेष कॉलम- प्रवाह

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प्रवाह : भ्रष्टाचार के रखवाले

प्रवाह (Pravah): चार जनवरी 2023 का दिन राजस्थान के इतिहास में एक और काले दिन के रूप में दर्ज हो गया है। इस दिन एक आदेश जारी करके सरकारी अफसरों को बेखौफ होकर प्रदेश की जनता से रिश्वत वसूलने की छूट दे दी गई है। बेखौफ इसलिए कि अब ऐसा करने वालों को सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल होने का डर नहीं रहेगा। वे अगले दस-बीस वर्षों तक, जब तक मुकदमों का फैसला नहीं आ जाता, लूट का तांडव जारी रख सकते हैं। एक तरह से रिश्वतखोरी को लाइसेंस दे दिया गया है।
इसे कहते हैं- गुड़ गोबर करना! एक ही तो मामला था जिसमें राजस्थान सरकार की पिछले 4 साल में अच्छी छवि बनी थी। रिश्वतखोरों के खिलाफ जमकर कार्रवाई हो रही थी। साधारण व्यक्ति की सूचना पर भी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) तुरंत कार्रवाई करता था।

रिश्वतखोर अफसरों व कर्मचारियों पर गत एक साल में ही एक हजार से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए। एक आदेश ने सब किए-कराए पर पानी फेर दिया। भ्रष्टाचार का झण्डा पुन: बुलंद कर दिया। ऐसी भी क्या जल्दी थी महानिदेशक का अतिरिक्त कार्यभार संभालने वाले अफसर को! क्या ऊपर का कोई दबाव था?

कहा जा रहा है कि अफसरों-कर्मियों के मानव अधिकारों की रक्षा के लिए यह आदेश जारी किया गया है। तो क्या मानव अधिकार प्राप्त करने के लिए सरकारी नौकरी करना जरूरी है। आम लोगों के कोई मानव अधिकार नहीं होते। या पुलिस उन्हें ‘मानव’ ही नहीं मानती? यों तो जुआ-सट्टा खेलते हुए पकड़े गए लोगों तक के नाम पुलिस बढ़ा-चढ़ा कर प्रचारित करती है। छोटे-मोटे गिरोह के साथ फोटो छपवाने में ये ही अधिकारी शान समझते हैं। क्या उन्हें अदालत दोषी करार दे चुकी होती है?

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प्रवाह: महापाप से बचो

राजस्थान में बीसियों उदाहरण ऐसे मिल जाएंगे, जब अदालतों से वारंट-सम्मन जारी होने के बावजूद पुलिस आरोपी अफसरों को तामील नहीं करती। पुलिस की मिलीभगत से सरकारी अफसर अदालतों की खुलेआम खिल्ली उड़ाते रहते हैं।

अब यह होगा कि रंगे हाथों पकड़े जाने और केस दर्ज करने के बावजूद सरकारी कर्मियों का नाम तक नहीं उजागर किया जाएगा। रिश्वतखोर अफसरों को बहाल तो कुछ दिनों बाद कर ही दिया जाता है। अब सामाजिक प्रताड़ना से भी मुक्ति। भ्रष्टाचार को प्रतिष्ठित करने का ऐसा बेशर्म उदाहरण राजस्थान में ही देखने को मिल सकता है।

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प्रवाह: कब तक बचेंगे मास्टरमाइंड?

राजस्थान का दुर्भाग्य यह है कि पुलिस और प्रशासन में ईमानदार और साहसी अफसर मुट्ठीभर ही बचे हैं। रीढ़विहीन अफसरों की फौजें तैयार हो गई हैं। राजनीतिक आकाओं को खुश करते हुए वे अपना ईमान भी बेच खाते हैं। माफियाओं के आगे उनकी घिग्घी बंद जाती है। या फिर उनसे हाथ मिलाकर चलते हैं। वे निरीह जनता पर ही शेर होना जानते हैं।

जिस राज्य में पुलिस बल सशक्त हो, वहां माफिया सक्रिय रह ही नहीं सकते। लेकिन राजस्थान में कौनसा माफिया सक्रिय नहीं है? नए-नए माफिया और जुड़ते जा रहे हैं। बजरी माफिया के बाद अब नकल माफिया भी पैदा हो गया। ‘पधारो म्हारे देस’। सबका हार्दिक स्वागत है!

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की संकीर्ण व्याख्या करके मनमर्जी के नियम-फरमान जारी करना लोकतंत्र का गला घोंटने के बराबर है। जनता की रक्षक बनने की बजाए पुलिस संविधान की भक्षक बन रही है। क्या वह नहीं जानती कि ऐसे बचकाना कदम उठाकर वह वर्दी की ही नहीं देश के संविधान की प्रतिष्ठा को भी धूल में मिला रही है।

bhuwan.jain@epatrika.com

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