ओपिनियन

प्रवाह : आपदा उत्सव

जनता को एक के बाद एक आपदाओं से जूझना पड़ रहा है- पर सरकारें गहरी नींद में सो रही हैं।

Aug 09, 2021 / 07:38 am

भुवनेश जैन

rajasthan assembly

– भुवनेश जैन
जब ‘राम’ रूठ जाए तो लोग ‘राज’ की ओर देखते हैं। उन्हें भरोसा होता है कि दैवीय प्रकोपों की पीड़ा को राज (सरकार) हर लेगा। लेकिन जब राज भी आंखें मूंद ले तो आम जनता के सामने अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता।
जनता को एक के बाद एक आपदाओं से जूझना पड़ रहा है- पर सरकारें गहरी नींद में सो रही हैं। कोरोना महामारी से कुछ राहत मिली तो बाढ़ आ धमकी। चम्बल, कालीसिंध और अन्य सहायक नदियों के इर्द-गिर्द से जिलों में बाढ़ का पानी कहर बनकर टूट रहा है। लोग बेघर हो रहे हैं। सैकड़ों परिवार आसरे के लिए भटक रहे हैं, पर सुध लेने वाला कोई नहीं है।
दैवीय प्रकोपों को दबंगों का प्रकोप कहा जाए तो ज्यादा सटीक होगा, क्योंकि बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदा के असली कारण कहीं न कहीं दबंगों के कारनामे होते हैं। दबंग-यानी हमारे वे अफसर, नेता और भूमाफिया जिनकी दबंगई के चलते नदियों-नालों के जलबहाव क्षेत्र में अतिक्रमण होते हैं। तालाबों और जलाशयों की जमीन पर बस्तियां बना दी जाती हैं। पहाड़ों की तलाई पर कब्जे करके अवैध कॉलोनियां बन जाती हैं।
राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित सभी विभिन्न प्रदेशों में दबंगों के प्रकोपों के सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे। जयपुर में रामगढ़ बांध के जलग्रहण क्षेत्र पर कब्जे, अमानीशाह नाला (अब द्रव्यवती) और अन्य नालों की जमीन पर अतिक्रमण, झालाना, जवाहर नगर और नाहरगढ़ की पहाडिय़ों की तलाइयों पर कब्जे। शहर ग्वालियर, भोपाल, रायपुर, जोधपुर कोई भी हो हर जगह विधायकगण भूमाफिया से मिलकर नोटों और वोटों की फसल इन्हीं अतिक्रमणों के माध्यम से काटते हैं। पहले झोपडिय़ां डाली जाती हैं, फिर उन्हें बेचकर नोट कमाए जाते हैं। जब झोपडिय़ां बस्ती की शक्ल ले लेती हैं तो ‘नियमन’ का झुंझुना दिखाकर वोट बटोरे जाते हैं। कई विधायक तो इस काम में अपनी सात पीढिय़ों के लिए व्यवस्था कर लेते हैं।
जब जलाशयों और नदियों पर अतिक्रमण हो जाते हैं तो वर्षा के समय बहने वाले पानी को या तो रास्ता बदलना पड़ता है या अतिक्रमणों को तोड़ते हुए प्राकृतिक रास्ते पर आना पड़ता है। दोनों ही सूरत में बाढ़ आती है और शिकार होती मासूम जनता। उन्हें बिना अपराध के सजा मिलती है। जिन्हें सजा मिलनी चाहिए, वे इन आपदाओं के समय उत्सव मनाते हैं। चाहे नेता हों या अफसर, आपातकालीन व्यवस्थाओं के नाम पर दोनों हाथों से तिजोरियां भरते हैं।
असल अपराधी वे अफसर हैं जो अपने सेवाकाल में या तो निकम्मे बने रहते हैं या भ्रष्ट। अपनी आंखों के सामने जलाशयों पर अतिक्रमण होते देखते रहते हैं। अफसरी के ठाठ-बाट अंग्रेजों जैसे चाहिए पर जनता के दर्द से कोई वास्ता नहीं है। रही नेताओं की बात वे तो मगरमच्छी आंसू बहाने में माहिर होते हैं। बाढ़ आते ही सांत्वना देने पहुंच जाएंगे पर भूमाफियाओं से गठजोड़ बनाए रखेंगे।
राजस्थान में उच्च न्यायालय ने 2011 में अतिक्रमण के निस्तारण के लिए राजस्व मंडल की विशेष पीठ बनाई थी। दस साल हो गए एक-तिहाई मामले अब भी लंबित हैं। जो निपटे हैं, उनमें भी मौके से अतिक्रमण हट गए हों- ऐसा लगता नहीं है। जयपुर में अतिक्रमण करके सात सौ कॉलोनियां आबाद हो चुकी हैं। तीन सौ कॉलोनियां तो बहाव क्षेत्र में ही बनी हैं। उच्च न्यायालय ने रामगढ़ बांध के मामले में तो विशेष कमेटी बना दी, पर वह भी ठोस प्रगति नहीं कर पाई। सरकार को तो अंतिम छोर पर बैठे आम आदमी की कोई चिन्ता है नहीं, अदालत को ही कठोर कदम उठाना होगा।
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