scriptप्रवाह: कोशिश धुंध छांटने की | pravah : meanings of Rahul Gandhi's speech in jaipur congress rally | Patrika News

प्रवाह: कोशिश धुंध छांटने की

locationनई दिल्लीPublished: Dec 13, 2021 09:30:34 am

क्यों कांग्रेस जरुरी है? ‘हिन्दुत्व’ को लेकर राहुल गांधी ने जो बातें कहीं, विधानसभा चुनाव के ठीक पहले क्या ये मुद्दे उलटे पड़ सकते हैं? कांग्रेस की जयपुर रैली और राहुल गांधी के भाषण के निहितार्थ समझने के लिए पढ़ें पत्रिका समूह के डिप्टी एडिटर भुवनेश जैन का यह विशेष कॉलम ‘प्रवाह’ –

jaipur congress rally

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कांग्रेस की जयपुर रैली बहुत से संकेत छोड़ गई है। या यों कह सकते हैं कि बहुत से संदेश छोड़ गई। एक संदेश उनके लिए जिन्होंने भाजपा विरोधी गठबंधन के नेतृत्व के लिए ममता बनर्जी जैसे नाम आगे करने शुरू कर दिए। एक संदेश उनके लिए जिन्होंने कांग्रेस में गांधी परिवार के नेतृत्व की उपयोगिता पर ही सवाल करने शुरू कर दिए। गांधी परिवार में बिखराव की बात उछालने वालों के लिए भी संदेश दिया गया और कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर असमंजस की स्थिति को भी दूर करने की कोशिश की गई।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए शंखनाद के रूप में हुई इस ‘महंगाई विरोधी’ रैली की सफलता के लिए कांग्रेस शासित राज्य सरकारों के अलावा गांधी परिवार ने भी पूरी ताकत झोंक दी थी। मंतव्य एक ही लगा कांग्रेस और गांधी परिवार की ‘क्षमता’ पर छाई धुंध को साफ किया जाए।
‘हिन्दू’ और ‘हिन्दुत्व’ के बहाने राहुल गांधी ने ‘धर्मनिरपेक्षतावाद’ के साये से निकल कर भाजपा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक पर सीधा हमला बोला ताकि विपक्ष की दूसरी पार्टियां समझ सकें कि भाजपा विरोधी गठबंधन का नेतृत्व करने की कांग्रेस की योग्यता और दमखम बरकरार है। पार्टी के भीतर कांग्रेस परिवार के प्रति विद्रोह की आवाज उठाने वालों को जवाब दिया गया कि पूरा गांधी परिवार एकजुट है। न कोई बिखराव है और न कमजोरी और भविष्य में भी गांधी परिवार ही पार्टी का नेतृत्व करता रहेगा। सबसे बड़ा संकेत यह दिया गया कि राहुल गांधी ही अब कांग्रेस का नेतृत्व अध्यक्ष के रूप में करेंगे। सोनिया गांधी का अस्वस्थता के बावजूद उनके साथ आना और उनके भाषण पर तालियां बजाना, स्वयं नहीं बोलना, प्रमुख भाषण राहुल का होना यही संदेश दे रहा था कि अब वे ही कांग्रेस के नेता रहेंगे।
राहुल गांधी के भाषण ने यह भी संदेश दिया कि कांग्रेस ने अपनी पारंपरिक लीक में समय की आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन करने की राह पकड़ ली है। अब ”मैं हिन्दू हूं’ कहने और हिन्दू धर्म ग्रंथों का उल्लेख बिना दूसरे धर्मों के ग्रंथों का नाम जोड़े रखने में राहुल को कोई नुकसान नजर नहीं आता। कांग्रेस अब भाजपा विरोध के नाम पर अल्पसंख्यकों को तो साथ लेना चाहती है पर शायद ‘तुष्टीकरण’ के पुछल्ले से पीछा छुड़ाना चाहती है।
जनवरी 2013 में जयपुर में ही हुए चिंतन शिविर में राहुल गांधी ने जब पार्टी के उपाध्यक्ष का पद संभाला था, तब राजनीति को लेकर उनके मन में ऊहापोह था। तब ‘सत्ता जहर है’ जैसी टिप्पणी भी उन्होंने अपनी मां का नाम लेकर की थी। अब वे राजनीति कैसी चल रही है- इस पर तीखी टिप्पणियां करने लगे हैं। राजनीति और सत्ता के अर्थ उन्हें समझ में आने लगे हैं।
राहुल का भाषण नए विषय लिए हुए और आक्रामक भी था। पर मंझे हुए राजनेता के लिए दूरदृष्टा और चतुर होना भी आवश्यक है। वे यह शायद नहीं समझ पाए कि उन्होंने कुछ मुद्दे उठाने के लिए गलत समय चुना। महंगाई विरोधी रैली में भाषण मुख्य रूप से महंगाई पर केन्द्रित होना चाहिए था। ‘हिन्दुत्व’ को लेकर उन्होंने जो बातें कहीं, विधानसभा चुनाव के ठीक पहले ये मुद्दे उलटे पड़ सकते हैं। भाजपा निश्चित ही इन्हें लपक लेगी। एक तरह से कांग्रेस ने उसकी झोली में ध्रुवीकरण को हवा देने वाले मुद्दे डाल दिए। पूछने वाले यह भी पूछेंगे कि नोटबंदी, कृषि कानून, महंगाई, जीएसटी, कोरोना जैसे जिन मुद्दों पर वे मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं, उनके हल के लिए कांग्रेस शासित राज्यों ने क्या किया?
bhuwan.jain@epatrika.com

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