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आदिवासियों और महिलाओं को साधने की कोशिश

वर्ष 2017 में हुए राष्ट्रपति के चुनावों की तर्ज पर भाजपा और आरएसएस ने कई मुद्दों को ध्यान में रखते हुए और रणनीतिक रूप से आदिवासी समुदाय को महत्त्व दिया है। भारतीय समाज का वंचित वर्ग 2024 के संसदीय चुनाव में राजनीतिक निहितार्थ का एजेंडा तय कर रहा है। जाहिर है इस तबके को साधकर केंद्र की सत्ता पर पकड़ मजबूत की जा सकती है।

Jun 29, 2022 / 08:03 pm

Patrika Desk

आदिवासियों और महिलाओं को साधने की कोशिश

आदिवासियों और महिलाओं को साधने की कोशिश


के.एस. तोमर
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक
जनधारणा के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव में मोदी-शाह-नड्डा और आरएसएस ने एक होकर राजनीतिक विजय हासिल करने के पर्याप्त सबूत दे दिए हैं। इसका श्रेय उन्हें उनकी सावधानी से बनाई सूक्ष्म और रणनीतिक योजना को दिया जा सकता है। झारखंड की पूर्व राज्यपाल और अनुभवी आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को उन्होंने उम्मीदवार बनाया है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक द्वारा एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने की घोषणा ने उनकी जीत की राह मजबूत कर दी है। ओडिशा में आदिवासियों की आबादी 22 फीसदी है। यही एनडीए उम्मीदवार के लिए मुख्यमंत्री के समर्थन की वजह बना। इसी समरूपता की वजह से झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन संयुक्त विपक्ष का समर्थन करने के अपने पहले के फैसले की समीक्षा कर सकते हैं। मुर्मू का सम्भवत: समर्थन करने के पीछे यह कारक हो सकता है कि झारखंड में आदिवासियों की आबादी 26.21 फीसदी है। इन्हें नकारना उनके लिए ही आत्मघाती कदम होगा।
विश्लेषकों की मानें तो मुर्मू को उम्मीदवार बनाने के पीछे का विचार बिल्कुल स्पष्ट है। भाजपा 2024 के लिए महिला मतदाताओं को स्पष्ट संदेश देना चाहती है। यह भी एक तथ्य है कि महिलाओं ने राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के 2014 और 2019 के चुनावों में जीत के लिए पार्टी को समर्थन दिया था। दूसरी बात यह कि भाजपा अन्य राज्यों विशेषकर गैर-भाजपा शासित राज्यों में अपने लक्ष्य के लिए आदिवासियों पर नजरें रखगी। नवीन पटनायक के बीजू जनता दल के पास आदिवासियों का समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इसी सादृश्यता पर, हेमंत सोरेन अपने राज्य झारखंड में आदिवासी समुदाय को नाराज करने की बात सोच ही नहीं सकते। अंतिम रूप से, भाजपा देश के आदिवासियों को यही संदेश देना चाहती है कि आजादी के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें सबसे ज्यादा सम्मान दिया है, ऐसे में उन्हें उनके तीसरे कार्यकाल के लिए समर्थन करना चाहिए।
रुचिकर तो यह है कि मुर्मू राजनीति में आने से पहले ओडिशा के स्कूल में शिक्षिका थीं। उनकी खाते की कई उपलब्धियों में सबसे पहली उपलब्धि यही जाती है। और निर्वाचित हो जाने पर इस संवैधानिक पद पर पहली आदिवासी महिला और देश की दूसरी महिला होंगी। प्रधानमंत्री मोदी ने 2017 में भी सबको आश्चर्यचकित कर दिया था जब उन्होंने एससी वर्ग के रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाया था और मजबूत ‘राजनीतिकÓ संदेश देने की कोशिश की थी कि भाजपा वंचित वर्ग से बहुत प्रेम करती है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इस चुनावी प्रक्रिया में कुल 4033 विधायक राष्ट्रपति चुनेंगे। इन सभी के वोट के वैल्यू 5,43,231 है, जबकि लोकसभा और राज्यसभा के 776 सांसदों के वोट का वैटेज 5,43,200 है। सभी सांसदों और विधायकों के कुल वोट का मूल्य 10,86,000 है। राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के लिए इनमें से 50 फीसदी से अधिक वोट चाहिए होते हैं। भाजपा द्वारा सोची-समझी रणनीति के तहत आदिवासी नेता को उम्मीदवार बनाने से एनडीए और सहयोगी दलों के लगभग 48 फीसदी वोट हैं। बीजद के 3 फीसदी वोट और जुड़ जाने से यह फीसद 51 हो सकता है। बीजद के लोकसभा में 12, राज्यसभा में 9 सदस्यों के अलावा 114 विधायक हैं। इनके इलेक्टोरल कॉलेज में 31,000 से अधिक वोट हैं। जगनमोहन रेड्डी की वाइएसआर के 4 फीसदी वोट हैं, जो 2017 की तरह एनडीए के खाते में जा सकते हैं। ऐसे में एनडीए के वोटों का ग्राफ 55 फीसदी तक पहुंच सकता है। एक अन्य पार्टी के 2 फीसदी वोटों के साथ एनडीए उम्मीदवार के वोट 57 फीसद हो सकते हैं। यह केवल कयास है। सच तो राष्ट्रपति चुनाव के बाद ही सामने आएगा।
विपक्ष के सभी 17 दलों ने एनडीए उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लडऩे के लिए एनसीपी नेता शरद पवार को मनाने की सभी कोशिशें की, पर उन्होंने मना कर दिया। इसी तरह जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला, महात्मा गांधी के पोते और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी ने भी विपक्ष के प्रस्ताव पर हामी नहीं भरी और उनका प्रस्ताव खारिज कर दिया। ऐसे में मोदी सरकार के आलोचक माने जाने वाले यशवंत सिन्हा का नाम सर्वसम्मति से सामने आया। तेलंगाना राष्ट्रीय समिति पहले ही सिन्हा को समर्थन देने के अपने फैसले की घोषणा कर चुकी है।
वर्ष 2017 में हुए राष्ट्रपति के चुनावों की तर्ज पर भाजपा और आरएसएस ने कई मुद्दों को ध्यान में रखते हुए और रणनीतिक रूप से आदिवासी समुदाय को महत्त्व दिया है। भारतीय समाज का वंचित वर्ग 2024 के संसदीय चुनाव में राजनीतिक निहितार्थ का एजेंडा तय कर रहा है। जाहिर है इस तबके को साधकर केंद्र की सत्ता पर पकड़ मजबूत की जा सकती है।

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