इस कदम से क्या यह संकेत मिलता है कि पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार और सेना ने अपने देश की सुरक्षा रणनीति से आतंकवाद के हथियार को हटा देने का फैसला कर लिया है? या यह सिर्फ लगातार बढ़ रहे अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे पाक की एक छद्म चाल भर है?
पहली बार नहीं है जब पाकिस्तानी हुक्मरानों ने हाफिज सईद को नजरबंद कर उसकी अगुवाई में चल रहे संगठनों पर कार्रवाई की है। पाकिस्तान ने 2001 में संसद पर हमले, 2006 में मुंबई में ट्रेन बम विस्फोट व 26/11 के मुंबई हमले के बाद भी उसे गिरफ्तार किया था। सभी मामलों में या तो पाकिस्तानी अधिकारियों ने उसे छोड़ दिया या फिर वह कोर्ट के ऑर्डर से रिहा हो गया।
पाकिस्तान के हुक्मरान उसकी जमीन-जायदाद आदि के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई से बचते रहे हैं। पाक ने लश्कर-ए-तैयबा को नए नाम के साथ चलने से नहीं रोका। पाकिस्तानी नेताओं ने जमात-उद-दावा के चैरिटेबल संस्था होने तक का दावा किया।
हाफिज सईद को संयुक्त राष्ट्र की आतंकवादी सूची में 2008 में डाला गया था। उसे पिछले पांच वर्षों में अमरीका समेत कई और देशों ने भी आतंकवादी घोषित किया है। इसके बावजूद वह आजाद घूमते हुए भारत के खिलाफ जहरीले बयान देता रहा है।
पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा को छुपे रूप में और जमात-उद-दावा को खुले आम कश्मीर में जिहाद छेड़ने के लिए पैसे जमा करने और युवाओं को भर्ती करने की छूट दे रखी है। पाकिस्तान की सेना के संरक्षण व आईएसआई की सहायता से आतंकवादियों की कश्मीर और देश के दूसरे भागों में घुसपैठ कराई जाती रही है।
आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद जो विरोध-प्रदर्शन कश्मीर में हुए, उनको भड़काने में सईद का ही हाथ था। इन सबके बावजूद पाकिस्तान इतने वर्षों से हाफिज सईद और जमात पर कार्रवाई की भारत, अमरीका और अन्य देशों की मांग की अनसुनी करता रहा है। लेकिन आखिर अब क्यों पाकिस्तान ने यह कदम उठाया है?
दरअसल पाकिस्तानी मीडिया के एक हिस्से में इस तरह की खबरें आई थीं कि अमरीका ने पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि यदि वह जमात के खातों में पैसे की आवक पर रोक नहीं लगाता है तो उस पर आर्थिक क्षेत्र में प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
अमरीका की यह धमकी एक एशिया-प्रशांत सागर मनी लॉन्ड्रिंग समूह की उस रिपोर्ट के बाद आई थी जिसमें यह कहा गया था कि पाकिस्तान आतंक का वित्तीय पोषण रोकने के लिए आतंकवादियों की संपत्ति जब्त करने और उनके खातों पर रोक लगाने आदि की जरूरी कार्रवाई नहीं कर रहा। अगर अमरीका अपनी धमकी को अंजाम देता है तो पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन में समस्याएं खड़ी हो सकती है।
रोचक यह है कि इस समूह में चीन ने पाकिस्तान के साथ खड़े होने की कोशिश की, पर वह अमरीका और भारत के विरोध के आगे टिक नहीं सका। पाकिस्तान को यह चेतावनी ट्रंप के राष्ट्रपति का कार्यभार ग्रहण करने के पहले दी गई थी। अब, जब ट्रंप आतंकवाद पर अपरंपरागत और विवादास्पद तरीके से कदम उठा रहे हैं तो पाकिस्तान में चिंता पैदा हो गई है। इसलिए उसने हाफिज सईद पर कार्रवाई की है। पाकिस्तान निश्चित रूप से यह भी जानता होगा कि ट्रंप का फोकस पाकिस्तान द्वारा तालिबान तथा हक्कानी नेटवर्क को दिए जा रहे समर्थन पर होगा।
अफगानिस्तान में चल रहे संघर्ष में इन संगठनों की प्रमुख भूमिका है। लश्कर-ए-तैयबा भी अफगानिस्तान में दखल रखता है लेकिन इसका फोकस भारत में विशेष रूप से कश्मीर है। पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त चीन आतंकवादी संबंधी मुद्दों पर उसकी ढाल बनता आया है। इसका उदाहरण यूएन की आतंकवाद पर बनी कमेटी से जैश-ए-मुहम्मद के नेता मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित कराने पर चीन का विरोध है।
इस तरह की रिपोर्ट भी हैं कि चीन पाकिस्तान को आतंकवादियों पर कार्रवाई करने का मशविरा दे रहा है। वह पाकिस्तान में चीन – पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाकर अपने रणनीतिक और आर्थिक संबंध गहरे कर रहा है। वह जानता है भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे संबंध इस कॉरिडोर के लिए फायदेमंद होंगे।
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में नवाज शरीफ यह समझ चुके हैं कि पाकिस्तान का आर्थिक भविष्य भारत के साथ अच्छे संबंधों में निहित है। हाफिज सईद पर कार्रवाई में शरीफ सरकार के साथ खड़े होने में भी पाकिस्तान सेना ने व्यवहारिकता का परिचय दिया है।
सरकार और सेना दोनों यह दिखाना चाहते हैं कि भारत, आक्रामक और नकारात्मक रुख अपनाए हुए है जबकि पाकिस्तान इस तरह के कदम उठा रहा है कि जिससे दोनों देशों में बातचीत का माहौल बन सके।
भारत के लिए हाफिज सईद पर कार्रवाई तभी किसी प्रकार से सार्थक होगी जब इसके बाद पाकिस्तान दूसरे आतंकवादी समूहों जैसे हिजबुल मुजाहीदीन तथा जैश-ए-मुहम्मद पर कोई कार्रवाई करता है। इसका जमीन पर असर घुसपैठ रोकने की कोशिशों के रूप में दिखना ही चाहिए।