कोरोना वायरस से भी पहले स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू, दिमागी बुखार, एचआइवी जैसी न जाने कितनी बीमारियां हैं। एक का रास्ता बंद करो तो दूसरे का शुरू हो जाता है। बात सिर्फ महामारी तक सीमित नहीं है, प्रतिवर्ष गैर-संक्रामक रोगों से मौत के आंकड़े भी कम डरावने नहीं हैं। कोरोना से होने वाली मौतों में भी करीब 80 फीसदी गैर-संक्रामक बीमारी से पीडि़त ही हैं। यह समझना कोई मुश्किल नहीं कि निरोगी होना इलाज से बेहतर है।
लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन एंड डेटिस्ट्री के शिक्षक संदीप बंसल का सुझाव गौर करने लायक है कि आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था को इलाज के साथ-साथ रोगों से बचाव के केंद्र के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। ऐसे केंद्रों को इस बात के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए कि उन्होंने किस तरह लोगों को बीमारियों से दूर रखा। जबकि, वर्तमान व्यवस्था में उन चिकित्सा केंद्रों की पूछ-परख ज्यादा है जो रोगों के बेहतर इलाज का दावा करते हैं। इलाज के साथ व्यापार जुड़ गया है। अच्छी मेडिकल फेसिलिटी का मतलब ज्यादा से ज्यादा जांच, अधिक दवाएं और कैश-लेस इलाज या बीमा कंपनियों से रकम वापसी की सुविधा से लगाया जाने लगा है।
नतीजा, ढाक के तीन पात है। हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं। गैर-संक्रामक रोगों की बात करें तो भारत में करीब 7 करोड़ लोग डायबिटीज के शिकार हैं और अनुमान है कि 2030 तक यह संख्या 10 करोड़ हो जाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, करीब 20 करोड़ लोग प्री-डायबिटिक अवस्था में हैं। ऐसे में क्या यह बेहतर नहीं होगा कि चिकित्सा तंत्र इस पर ज्यादा जोर दे कि कैसे हम रोगों से दूर रह सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा लोगों को बीमारियों से दूर रखने में सफल टीम को प्रोत्साहन मिले। बीमार पडऩे पर इलाज की व्यवस्था तो हो, पर स्वस्थ रखने पर ज्यादा जोर दिया जाए।