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मनरेगा में प्राथमिकताएं तय हों

locationनई दिल्लीPublished: Jul 01, 2020 04:16:01 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

मनरेगा में गुणात्मक सुधार करने के लिए मनरेगा श्रमिकों को रोजगार देने के प्रावधान के साथ-साथ हुनर प्रशिक्षण से जोडऩा पड़ेगा। तब रोजगार की गुणात्मकता व विषय वस्तु में भारी अन्तर आ जायेेगा।

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Good news for urban poor – NAP will provide employment, Panjian begins

मानिक चन्द सुराना, पूर्व मंत्री, राजस्थान


देश के हर राज्य में लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर और कामगार कोरोना के चलते अपने-अपने गांवों और कस्बे में लौटे है। इनमें बड़ी संख्या उन कामगारों की है जो किसी न किसी कौशल में दक्ष हैं। इसी दक्षता के कारण उन्हें अपने प्रान्त के अलावा अन्य प्रान्तों में रोजगार प्राप्त हुआ है। अब हालत यह है कि प्रवासी श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के कारण अकेले राजस्थान में ही मनरेगा में 52 लाख श्रमिक हो गए हैं। पिछली जून की तुलना में इस वर्ष प्रवासी श्रमिकों के कारण 20 लाख श्रमिकों को मनरेगा में अधिक रोजगार मिला। मध्यप्रदेश में गत तीन माह में मनरेगा में 17 लाख प्रवासी श्रमिक जुड़े हैं।

मनरेगा में कुशल व अकुशल श्रमिक सभी को राज्य सरकारें रोजगार प्रदान कर सकती है। प्रवासी श्रमिकों का वर्गीकरण प्रत्येक राज्य में किया जाना आवश्यक है। वर्गीकरण और स्किल मेपिंग दोनों भिन्न कार्य नहीं है। अभी तक सिर्फ छत्तीसगढ़ सराकर ने स्किल मैपिंग का कार्य शुरू किया है। इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए प्रधानमंत्री व राज्यों के मुख्यमंत्री स्तर से निर्णय आवश्यक है। मनरेगा के बारे में बड़ा संकल्प और सपना यही है कि पेयजल के समाधान के लिए मनरेगा कार्यक्रम में सभी गांवों के ग्रामीण तालाबों का जीर्णोद्धार व आगारों का निर्माण करने एवं अतिरिक्त पानी की निकासी की व्यवस्था की जानी चाहिए।
वर्ष 2005 के मनरेगा कार्यक्रम से पूर्व भी अकाल राहत कार्यों में तालाब खोदने का ही प्रचलन था और गत 15 वर्षों से मनरेगा में भी वही तालाबों की खुदाई का काम अविवेकपूर्ण तरीके से चल रहा है होना यह चाहिए था कि गांवों के पुराने सबसे बड़े तालाबों में से एक तालाब को पक्का कर उसके आगोर की (पानी की आवक के रास्ते की) व अतिरिक्त पानी के निकासी के रास्तों की व्यवस्था कर दी गई जाती। ऐसी स्थिति में भू-जल का स्तर काफी ऊंचा होता व पेयजल की उपलब्धता ग्रामीण आबादी के लिए कम नहीं होती। इस स्थिति के लिए सरकारों की चूक व दिशा निर्देशों का अभाव तो मूल कारण है ही, एवं उसके अभाव में तालाब खोदने के विचारहीन आदेश के लिए जिला कलेक्टर व मुख्य कार्यकारी अधिकारी दोषी हैं।

मनरेगा के माध्यम से गांव को मॉडल गांव बनाने के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत की आवश्यकताओं के बारे में राज्य सरकार द्वारा विस्तृत दिशा-निर्देश दिये जाने चाहिए। राजस्थान में देश के कुल पशुधन का 18 प्रतिशत गाय व भैंस की आबादी है। पशुधन के बाहुल्य के कारण गांवों की गौचरों का विकास द्रुतगति से किया जाना आवश्यक है। मनरेगा में राज्य सरकार द्वारा पंचायतों के लिए यह निर्देश देने की आवश्यकता है कि मनरेगा का 8/10 प्रतिशत मजदूर गांव की गौचर के विकास के लिए श्रम करेंगे।
मनरेगा को एक्ट में मुख्यतया मांग आधारित कार्यक्रम बताया गया है लेकिन भूतकाल के 15 वर्षों में वास्तविकता में ऐसा नहीं हुआ है। मांग आधारित होने की सही व्याख्या यह है कि ग्रामीण परिवार का पुरूष/महिला जो अकुशल श्रम करने को तैयार है, उन्हें मनरेगा एक्ट के निर्देशानुसार भारत सरकार व राज्य सरकार आवश्यक रूप से 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराए।

मनरेगा में गुणात्मक सुधार करने के लिए मनरेगा श्रमिकों को रोजगार देने के प्रावधान के साथ-साथ हुनर प्रशिक्षण से जोडऩा पड़ेगा। तब रोजगार की गुणात्मकता व विषय वस्तु में भारी अन्तर आ जायेेगा। वर्ष 2019-20 में राजस्थान में 30.4 करोड़ मानव दिवस सृजित किये गये व 2017-18 में यह आंकड़ा 23.97 करोड़ पर था और 2016-17 में यह 25.96 करोड़ मानव दिवस सृजित करने पर था।इनकी तुलना एक स्पष्ट संदेश देती है। स्पष्ट है कि मानव दिवस 2016-17 के मुकाबले वर्ष 2017-18 में मानव दिवस सृजित करने में कमजोर दिख रहे हैं। वर्ष 2018-19 में मानव दिवस रोजगार सृजन में 2017-18 के मुकाबले बेहतर है। वर्ष 2019-20 में 30.40 करोड़ मानव दिवस सृजित कर मनरेगा के आंकड़ों के अध्ययन से स्पष्ट है कि 2018-19 व 2019-20 से भारत सरकार की मनरेगा के बारे में दृष्टिकोण व रुख में सकारात्मक परिवर्तन हुआ है। अत्यन्त दु:ख की बात है कि गांव के तालाबों में ग्रामीण रोजगार गारन्टी कार्यक्रम में ग्रामीण तालाबों में खड्डे खोदने का काम अभी भी जारी है। नौकरशाही के बिना विचारे तालाबों की निरन्तर खुदाई के आदेशों के कारण मनरेगा में अरबों-खरबों रूपए आज तक बरबाद हो चुके है।
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