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निजीकरण :सरकारी नीतियों पर हावी होता बाजार

locationनई दिल्लीPublished: Jul 28, 2020 01:57:14 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

आज पूंजीवाद के दबदबे ने सरकार व कम्पनियों को मजबूर किया है कि अपनी जरूरतों व बाजार की मांग के अनुरूप सरकारी नीतियां बने। इसी के अनुरूप सरकार नवरत्न कही जाने वाली कम्पनियों में भी विनिवेश की अनुमति प्रदान करे।

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डाॅ. सत्यनारायण सिंह, पूर्व आईएएस

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से संविधान पारित होने के बाद पूछा गया, किस लक्ष्य को प्राथमिकता देगें उनका जवाब था ”देश के लोगों को आर्थिक व सामाजिक समानता दिलाना, आर्थिक स्तर को ऊंचा उठाना। लोकतंत्र के साथ आर्थिक विकास दर को ऊंचाईयो तक पहुंचाना“। तमाम दायरों, बाधाओं और अड़चनों के बीच लोकतांत्रिक भारत ने आर्थिक क्षेत्र में तरीके से उपलब्धियां हासिल भी की।

एक समय कहा जाता था योजनाबद्ध तरीके से विकास मुमकिन है लेकिन आज पूंजीवाद के दबदबे ने सरकार व कम्पनियों को मजबूर किया है कि सरकार अपनी जरूरतों व बाजार की मांग के अनुरूप नीतियों बनाएं व सरकार नवरत्न कही जाने वाले कम्पनियों में भी विनिवेश करें। इसी प्रवृति के अनुरूप भारत सरकार ने उदारीकरण 2.0 को लागू करना प्रारम्भ कर दिया हैं। आज उदारीकरण के काल में विनिवेश के लिए जबरदस्त दबाव बनाया जा रहा हैं।

भारत में केन्द्रीय सार्वजनिक उदयमों की संख्या 257 है जिनमें 184 लाभ में है। तकनीकी सलाहकार सेवा में 43, भारी व मध्यम इंजीनियरिंग में 36, सीपीएई, परिवहन एवं लाजिस्टिक्स में 23 है। सरकार ने 8 प्रमुख बैंकों का विलय किया बाकि में सरकार की हिस्सेदारी कम करना चाहती है और हिस्सेदारी कम करते हुए शून्य पर ले आयेगें। सरकार एलआईसी में शहरीधारिता का अंश बेचेगी। आईडीबीआई बैंक को एलआईसी के हवाले विनिवेश के लिए किया जा चुका है, एच. पी. को विनिवेश के लिए ओएनजीसी के हाथों सौंपा जा चुका है। 41 कोयला खानों की नीलामी व्यवसायिक खनन के लिए खोल दी है।

कोयला, खनिज व कृषि बाजार को राष्ट्रीय स्तर पर खोलना, रक्षा उत्पादन, परमाणु ऊर्जा, अन्तरिक्ष गतिविधियां, तेल, गैस, दूरसंचार, खनन व खनिज, इस्पात, वित्तीय सेवाओं को रणनीति क्षेत्र का दर्जा देकर गैर रणनीतिक क्षेत्रांे की सभी केन्द्रीय पीएसयू को बेचा जाएगा। कुछ में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी कम की जा सकती है। जिनमें पूर्व में हिससेदारी कम की गई है उनकी बची हुई हिस्सेदारी बेची जा सकती है। कुछ को विलय व होल्डिंग कम्पनियों के अधीन किया जा सकता है।

सरकार को पैसे की जरूरत है। सरकारी घाटा पूरा करने के लिए कपड़ा, सेवा सत्कार, सेवा क्षेत्र से बाहर आना चाहता है। विनिवेश के समर्थन में कहा जा रहा है केन्द्र व राज्यों ने 1200 से ज्यादा सरकारी कम्पनियां 1950 व 1960 के बीच बनाई, क्योंकि उस समय निजी क्षेत्र छोटा था, विशेषज्ञता नहीं थी, पूंजी नहीं थी अब सरकार को व्यापार करने की जरूरत नहीं है। ऊर्जा व रेल्वे को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्रों में बाहर आ जाना चाहिए। रेल्वे क्षेत्र, एयरपोर्ट में भी निजी भागेदारी की जानी चाहिए। कहा जा रहा है कि सरकारी कंपनियों से रिटर्न (प्रतिफल) कम आता है, खर्चा बहुत होता है। एयर इन्डिया में 30-40 हजार करोड़ का नुकसान है।

विनिवेश में कई घटक है इसमें अधिकारी, मजदूर और सार्वजनिक उपक्रम के प्रबन्धन शामिल है, भारतीय उदयमी व आम जनता की भागेदारी है। विनिवेश से शक्ति संतुलन गड़बड़ा जायेगा। व्यापक पैमाने पर सामाजिक अस्थिरता आयेगी। जिन कम्पनियों की साख व क्षमता है, रिसर्च, तकनीक विकसित करने कराने की क्षमता है ऐसी कम्पनियों की परिसम्पतियां, क्षमता, बाजार में साख, प्रतियोगी ताकत तथा भावी संभावनाओं का समुचित आंकलन हो ही नहीं सकता। शेयरों की बिक्री सही कीमतों पर नहीं हो सकती, इनमें निजी व विदेशी दखल का खतरा हमारे राष्ट्रीय विकास व स्वावलंबन के रास्ते में बाधा साबित होगी। आम आदमी बेरोजगारी, गरीबी, गैर बराबरी, महंगाई और सार्वजनिक सेवाओं की कमी का शिकार है। कर राजस्व की कमी व घाटा पूर्ति तो धनी लोगों से उगानी चाहिए। सोने का अन्डा देने वाली मुर्गीयों को औने-पौने दामों में धनी मानी लोगों के अधिकार में दिया जायेगा।

मिलावट, घटिया क्वालिटी, पर्यावरण प्रदूषण, सामाजिक दायित्वों की उपेक्षा तथा कालाधन किस प्रकार निजी क्षेत्र की पहचान व फितरत बन चुका है, क्रमिक व छदम निजीकरण से उनकी और बढ़ना उपयुक्त नहीं होगा। पूर्व में भी सार्वजनिक सम्पति के स्थान पर निजी एकाधिकार स्थापित करना वैचारिक दुराग्रहता थी, निजी स्वार्थ सिद्धि के बैजोड़ उदाहरण है। उदारीकरण की नीति हमारी अति असहय विषमताओं को और अधिक बढ़ायेगी।

कहा जाता है कल-कारखाने चलाने की बजाय सरकार का ध्यान सुशासन पर होना चाहिए। निजी क्षेत्र अधिक कुशल व लाभदायक है सरकारी क्षेत्र अकुशल। विनिवेेश को आर्थिक सुधार व कुशलता का पर्याय मान बैठना गलत है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में कार्यरत कर्मचारियों का भविष्य और पूंजी बाजार की भूमिका से जुडें सवालों पर भी विचार आवश्यक है। हमें इस और राजनीतिक व आर्थिक दोनों दृष्टियों से देखना होगा। विनिवेश को आर्थिक सुधारों का पर्याय मान बैठना गलत होगा। यह कहना कि विनिवेश से प्राप्त पैसा स्वास्थ्य व शिक्षा पर व्यय होगा निजी गलत बयानी है। सरकार की आर्थिक व सामाजिक विफलता राजनैतिक व आर्थिक अशांति को बढ़ायेगी।

केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उधम लांभाश और सरकारी करों पर ब्याज, करो एवं शुल्कों के रूप में केन्द्रीय खजाने में योगदान देते है। सार्वजनिक क्षेत्र के उदयम अपने लाभ को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की कोशीश में कामयाब हुयें है, आंतरिक संसाधन, विदेशी मुद्रा अर्जन में योगदान दिया है, महत्वपूर्ण परिणाम दिखाए है। सार्वजनिक क्षेत्र का अचल पूंजी निमार्ण में बहुत बड़ा योगदान है। निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जन किया है, सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी कल्याण व सुविधा उपलब्ध कराने में मार्गदर्शक रहे है। भुगतान शेष के संतुलन को सुविधाजनक बनाया है।

सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के उधमों के रिजर्व और अतिरेक को सार्वजनिक निवेश में इस्तेमाल करना चाहिए न कि सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा अर्जित बहुमूल्य सार्वजनिक बचत को सट्टा बाजार में लाभ प्राप्त करने के लिए अपनिर्देशित कर दिया जाए। सार्वजनिक क्षेत्र केा भारी स्त्रोत को निवेश के लिए गतिमान करने की अपेक्षा सरकार विनिवेश या सार्वजनिक निजी साझेदारी कर बरबाद कर रही है। यह राजनीति से प्रेरित निर्णय है।

उधमों में निवेश में विस्तार कर इसका प्रयोग अन्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए। निष्कर्ष यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उदयमों ने देश का औद्योगिक आधार कायम किया है। यह राष्ट्रीय समन्वय में योगदान देते है। इन उद्यमों ने अपना निष्पादन उन्नत कर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में महत्वपूर्ण उन्नति व गुणात्मक परिवर्तन हुआ है। यह आरोप भी समाप्त कर दिया है कि सार्वजनिक क्षेत्र में अकुशलता उनकी जड़ में है। आवश्यकता है सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यमों को स्वायत्ता प्रदान की जायंे। नवरत्न व लघुरत्न कम्पनियों को अपने रिजर्व केवल सार्वजनिक क्षेत्र की पारस्परिक निधियों में निवेश करने की इजाजत दी जायें। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का लाभ कई गुना बढ़ा है, उन्हें घाटे में चलने वाले हाथी समझना भारी भूल हैं विनिवेश से उनकी मानवीय व्यवस्था व पारस्परिक सहयोग समाप्त हो जायेगा।

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