गर्भपात पर रोक से महिलाओं की जान को बढ़ता है खतरा
वास्तव में असुरक्षित गर्भपात की दर सबसे अधिक वहीं होती है, जहां यह सबसे अधिक प्रतिबंधित है। दुनिया भर में कम से कम 8 प्रतिशत मातृ मृत्यु दर असुरक्षित गर्भपात से होती है।
गर्भपात पर रोक से महिलाओं की जान को बढ़ता है खतरा
ऋतु सारस्वत
समाजशास्त्री
और स्तंभकार अमरीका में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गर्भपात से जुड़े पचास साल पुराने फैसले को पलटने के बाद कट्टरपंथी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। गर्भपात की संवैधानिक वैधता धार्मिक समूहों के लिए एक बड़ा मुद्दा रही है, क्योंकि उनका मानना है कि भ्रूण हर स्थिति में जीवन जीने का अधिकारी है, चाहे वह किसी किशोर कन्या के साथ हुई दुष्कर्म की परिणति ही क्यों न हो। क्या यह धर्मावलंबियों का नैतिक दायित्व नहीं बनता कि जब कभी भी धार्मिक विचारों का विश्लेषण किया जाए, तो वह तर्क संबद्ध हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि वह मानवजाति के लिए न्याय संगत है या नहीं।
गर्भपात का कानूनी अधिकार उस अजन्मे बच्चे के अधिकार से कहीं ज्यादा उस गर्भवती महिला के अधिकार के चिंतन का प्रतिफल है। इससे यह तथ्य स्थापित होता है कि जो सशरीर जीवित है, उसका जीवन कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है, बनिस्पत जिसने अभी जन्म नहीं लिया है। भावनाओं से परे यह चिंतन भी अपरिहार्य है कि क्यों अवांछित गर्भ महिलाओं के जीवन के लिए अहितकारी है। मई 2016 में प्रकाशित ‘बॉर्न अनवांटेड, थर्टी फाइव इयर्स लेटर: द प्रैग स्टडी’ उन बच्चों की आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्थितियों का गहन विश्लेषण है, जो कि अपनी मां के जीवन में अवांछित थे। 1960 के दशक में उन 220 बच्चों को अध्ययन का केंद्र बनाया गया, जिनकी माताएं उन्हें जन्म नहीं देना चाहती थीं। उनकी माताओं को किन्हीं कारणों के चलते गर्भपात के अधिकार से वंचित किया गया। इसलिए उन्होंने बच्चों को जन्म दिया। वहीं अध्ययन में अन्य वे 220 बच्चे भी सम्मिलित किए गए, जिनकी माताएं उन्हें जन्म देना चाहती थीं। निरंतर 35 वर्षों तक इन बच्चों को अध्ययनकर्ताओं ने अपने शोध का हिस्सा बनाए रखा और पाया कि अवांछित बच्चों की शैक्षणिक उपलब्धि सामान्य से बहुत कम रही। यही नहीं उनके जीवन में वांछित बच्चों की अपेक्षाकृत संघर्ष अधिक था और वे 35 वर्ष की आयु तक अपने समान आयु वर्ग के लोगों की तुलना में मानसिक रोगी होने की संभावना अधिक रखते थे। नीति निर्माताओं को यह समझना होगा है गर्भपात का निर्णय माताएं उस अंतिम विकल्प के रूप में करती हैं, जब उनके समक्ष अन्य कोई विकल्प शेष नहीं रहता और जब वे पाती हैं कि वे अपने बच्चों को वह सुनहरा एवं सुरक्षित भविष्य नहीं दे पाएंगी, जिसके वे अधिकारी हैं। एम. बिग्स, एच. गाउल्ड तथा डी. जी. फॉस्टर का अध्ययन ‘अंडरस्टैंडिंग वाई वीमेन सीक अबॉर्शन इन द यूएस’ 2008 से 2010 के अंतराल में उन 954 महिलाओं से साक्षात्कार पर आधारित था, जिन्होंने गर्भपात करवाना चाहा था। अध्ययन में सर्वाधिक 40 प्रतिशत महिलाओं ने गर्भपात का कारण आर्थिक विवशताएं बताईं।
एक महत्त्वपूर्ण विचारणीय तथ्य यह भी है कि किसी स्त्री को कैसे उसी के शरीर की स्वायत्तता से धर्म के आधार पर वंचित किया जा सकता है। 2021 में प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या कोष की रिपोर्ट ‘माय बॉडी इज माय ओन’ उल्लेखित करती है कि शारीरिक स्वायत्तता की कमी से महिलाओं की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हुआ है और साथ ही आर्थिक उत्पादकता में भी कमी आई है। इसके परिणामस्वरूप देश की स्वास्थ्य देखभाल और न्यायिक प्रणालियों के लिए अतिरिक्त लागत आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि समस्या का मूल कारण लैंगिक भेदभाव है, जो पितृसत्तात्मक शक्ति प्रणाली को दर्शाता है और बनाए रखता है। साथ ही लैंगिक असमानता और अक्षमता को जन्म देता है। अमरीका में गर्भपात की संवैधानिक वैधता की समाप्ति महिलाओं के जीवन पर घातक हमला साबित होगी, क्योंकि विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि गर्भपात तक पहुंच की कमी गर्भपात की संख्या को कम नहीं करती। वास्तव में असुरक्षित गर्भपात की दर सबसे अधिक वहीं होती है, जहां यह सबसे अधिक प्रतिबंधित है। दुनिया भर में कम से कम 8 प्रतिशत मातृ मृत्यु दर असुरक्षित गर्भपात से होती है। हाल ही में हुए एक अध्ययन का अनुमान है कि यूएस में गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने से कुल मिलाकर गर्भावस्था से संबंधित मौतों की संख्या में 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है और अश्वेत महिलाओं में 33 प्रतिशत की। इस खतरे की गंभीरता को समझना होगा।
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