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विज्ञान का ताण्डव

जीवन की अजीब विसंगति तो देखिए! एक ओर स्वास्थ्य सेवाओं के जरिए व्यक्ति की औसत आयु बढ़ाने के प्रयासों ने आयु को 25-30 साल तक बढ़ा दिया। दूसरी ओर यही कारण जनसंख्या वृद्धि का हेतु बन गया। परिवार नियोजन का नया नारा चल पड़ा। अब परिवार नियोजन की दवाओं के भी भयंकर परिणाम सामने आने लगे हैं।

जयपुरNov 05, 2019 / 10:51 am

Gulab Kothari

Farming

गुलाब कोठारी

जीवन की अजीब विसंगति तो देखिए! एक ओर स्वास्थ्य सेवाओं के जरिए व्यक्ति की औसत आयु बढ़ाने के प्रयासों ने आयु को 25-30 साल तक बढ़ा दिया। दूसरी ओर यही कारण जनसंख्या वृद्धि का हेतु बन गया। परिवार नियोजन का नया नारा चल पड़ा। अब परिवार नियोजन की दवाओं के भी भयंकर परिणाम सामने आने लगे हैं। रविवार को केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेन्द्र तोमर ने कलोल (गुजरात) में कहा कि कृषि उत्पादन भी बढ़ाना है, लागत भी घटानी है और सन् 2022 तक किसानों की आय भी दुगुनी करनी है। इफको के संयंत्र में नैनो प्रौद्योगिकी से तैयार किए गए नैनो नाइट्रोजन, जिंक, कॉपर का क्षेत्र परीक्षण आरंभ किया गया। इफको का दावा है कि इन उर्वरकों के उपयोग से किसानों की लागत लगभग 50 प्रतिशत कम हो जाएगी तथा पैदावार में 15 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकेगी। स्वागत है !

देश गरीब है। आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जी रही है। अभी तक के प्रयासों का भी आकलन कर लेना गलत नहीं होगा। आज दिल्ली में पराली का धुंआ अंधकार की ओर जा रहा है। क्या हजारों साल से जो धुंआ रसोई से उठता आ रहा है, उसके परिणाम ऐसे ही थे? कितनी महिलाओं का दम घुटा होगा। निश्चित ही यहां धुंआ विषाक्त है। पचास वर्ष पूर्व पराली जलाने से वहां के गांव वाले भी दु:खी नहीं होते थे। तब विकास नहीं था। आज का धुंआ विकास का धुंआ है। उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों का धुंआ है। वैसे धुंआ तो आग लगने की घटना का अन्तिम पड़ाव है। वही इतना खतरनाक साबित हो रहा है। किसी ने यह जानने का प्रयास भी किया कि इस आग में जला कौन? पराली? नहीं! इस आग में जलकर राख हुई, धुंआ-धुंआ हुई, किसान की जिन्दगी। किसान, किसान का परिवार तथा किसान की भावी पीढिय़ां।

कल ही खबर थी कि राजस्थान में कैंसर के मरीज दो गुना हो गए। यह खबर आ चुकी है कि बीकानेर आती कैंसर मरीजों की ‘कैंसर ट्रेन’ अपर्याप्त है। शीघ्र ही एक और ट्रेन अहमदाबाद के लिए शुरू होगी। यह ट्रेन भी पराली जलाने वाले किसानों से ही लदी होगी। कोई मानवीय-संवेदना से भरा व्यक्ति देख सकता है कि कौनसा जहर जला रहा है पंजाब-हरियाणा को और बढ़ रहा है शेष भारत में? जिसका धुंआ आक्रामक हो रहा है देश की राजधानी पर। इसके चलते किसी अन्य शत्रु की आवश्यकता ही क्या है?

असाध्य रोगों के दो ही कारण होते हैं। एक विषैला अन्न और विषैले विचार। वैसे तो विचार भी अन्न पर ही निर्भर है। जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन। अन्न को ब्रह्म कहा जाता है। विषहीन अन्न लुप्त प्राय: हो चुका है। विकास के दो बड़े यमदूत-रासायनिक खाद और प्रभावी कीटनाशक-हर रोज दरवाजे पर दस्तक देते दिखाई पड़ रहे हैं। यही वह क्षेत्र है जहां से नहरी सिंचाई, बांध परियोजनाएं और विकसित खेती की मशाल आगे बढ़ी थी। आज इसी क्षेत्र से कैंसर का प्रकाश फैल रहा है। जिस खेत की पराली के धुंए से सैकड़ों मील दूर का व्यक्ति आंखों में जलन महसूस कर रहा है तब क्या उस खेत की फसल रासायनिक बम का आत्मघाती स्वरूप नहीं है? ऐसे खेत का अन्न रेलवे, कैंसर अस्पतालों के लिए वरदान हो सकता है। सम्पूर्ण विश्व में हो रहा है। दो पीढ़ी बाद कौन घर बचेगा, इस रोग से? कहां-कहां ट्रेनें जाएंगी, कहां-कहां अस्पताल खोलेंगे?

यही अन्न भ्रष्टाचार बनकर देश की संवेदना, मानवता और नैतिकता को भी लील रहा है। जो खाएगा, पछताएगा। अगली पीढ़ी को भी समेट देगा। लक्ष्मी जैसे आती है, वैसी ही जाती भी। यह धन भी कैंसर अस्पतालों की ही भेंट चढ़ेगा। इस अन्न के रहते न विचार शुद्ध हो सकते हैं, न ही भाव शुद्ध होंगे। विचार भी एक-दूसरे का अन्न होते हैं और भाव भी अन्न रूप होते हैं। मन-बुद्धि-आत्मा के अन्न भिन्न-भिन्न होते हैं। सीधे भीतर पहुंच जाते हैं। अन्त:स्रावी ग्रन्थियों (एंडोक्राइन ग्लैंड्स) पर आक्रमण कर देते हैं। हमें तो पता भी नहीं चलता।

आज विकास के जिस दौर से हम (विश्व) गुजर रहे हैं, वहां किसी युद्ध विराम को सफलता नहीं मिलेगी। न कोई मानवता के इस ह्रास को रोक पाएगा। धन भी मिट्टी दिखाई दे जाएगा। विष और संहार के एक ही देव हैं-शिव। आने वाला काल इनके ताण्डव का साक्षी होगा।

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