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आपकी बात, पुडुचेरी का राजनीतिक घटनाक्रम क्या किसी रणनीति का परिणाम है?

Published: Feb 18, 2021 06:31:36 pm

Submitted by:

Gyan Chand Patni

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रिया आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

आपकी बात, पुडुचेरी का राजनीतिक घटनाक्रम क्या किसी रणनीति का परिणाम है?

आपकी बात, पुडुचेरी का राजनीतिक घटनाक्रम क्या किसी रणनीति का परिणाम है?

खरीद-फरोख्त की राह खुली
राजनीतिक गलियारे से आ रही खबरें तथा पुडुचेरी के राजनीतिक हालात इस बात का परिचायक हंै कि निश्चित ही राजनीतिक दलों के द्वारा दूरगामी रणनीति तय की गई है। जहां सत्तारूढ़ दल सत्ता को बचाने में लग रहे हैं, तो दूसरे दल सत्ता हथियाने में लगे हैं। उप राज्यपाल को अचानक से हटाना सोची समझी चाल है। सभी दल सरकार के अल्प मत में होने से मौके को भुनाने में लगे हैं। मौके की तलाश सभी को है। खरीद-फरोख्त तेज होने की बू आने लगी है।
-खुशवंत कुमार हिंडोनिया, चित्तौडग़ढ़
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बनी रहे पद की गरिमा
तेज तर्रार आईपीएस अधिकारी रही किरण बेदी को पुडुचेरी के उप राज्यपाल के पद से हटना पड़ा। मुख्य मंत्री से तालमेल का अभाव और क्षेत्रीय राजनीति में हस्तक्षेप के चलते यह फैसला लिया गया। भारत में ऐसी घटना कोई नई नहीं है। राज्यपाल एवं उप राज्यपाल संवैधानिक पद है। इनकी मर्यादा बनी रहनी चाहिए। संविधान में राज्यपाल एवं उप राज्यपाल के अधिकार एवं कर्तव्यों का विश्लेषण कर संशोधन की आवश्यकता है, जिससे राज्यपाल एवं उप राज्यपाल का सम्मान बना रहे।
-नरेन्द्र कुमार शर्मा, जयपुर
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चुनावी तैयारी
हो सकता है कि किरण बेदी को इसलिए अपदस्थ किया हो कि उन्होंने कांग्रेस को अल्पमत में लाने में जरूरत से ज्यादा समय ले लिया। ये तमिलनाडु और पुडुचेरी में होने वाले आगामी चुनावों के लिए रणनीतिक प्रयास लगते हैं।
-कपिल पंड्या, चिखली, डूंगरपुर
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भाजपा की रणनीति
पिछले कुछ वर्षों से पुडुचेरी में उत्पन्न हुए राजनीतिक संकट के बीच बीजेपी ने किरण बेदी को हटाकर कांग्रेस के हाथ से एक बहुत बड़ा मुद्दा छीन लिया है। पुडुचेरी में कांग्रेस विधायकों के लगातार इस्तीफे से कांग्रेस सरकार ने बहुमत खो दिया है, जो एक स्पष्ट रूप से रणनीति का परिणाम साबित होता है।
-सुभाष जाँगिड़, जयपुर
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बदल गए राजनीति के मायने
वाकई राजनीति आम मनुष्य की समझ से परे है। राजनीति में मित्र कब शत्रु बन जाएं, ये कह नहीं सकते। षड्यंत्र और प्रपंच राजनीति शब्द के पर्याय बन चुके हैं। पुडुचेरी की राजनीति भी इसी पथ पर अग्रसर है। विधायकों के त्यागपत्र के बाद राज्य सरकार अल्पमत में आ गई है। कांग्रेस विधायकों के त्यागपत्र के दौर के पश्चात इन विधायकों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। यह आगामी विधान सभा चुनावों में कांग्रेस के लिए झटका साबित होगा, ऐसा अनुमान है। निश्चित रूप से भाजपा की रणनीति है जो पूर्व में भी कई राज्यों में अपनाई गई है। वर्तमान राजनीति इन्हीं प्रपंचों के सहारे संचालित होती है।
-महावीर सिंह सोलंकी, जैसलमेर
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चल रही थी तनातनी
ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि पुडुचेरी की उप राज्यपाल किरण बेदी को हटाया जाना किसी रणनीति का हिस्सा है। उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच काफी तनातनी चल रही थी, जिसके चलते केन्द्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में राजनीति के गलियारों में काफी अस्थिरता नजर आने लगी थी। उप राज्यपाल को हटाने का कार्य पूर्णत: संवैधानिक तरह से किया गया है। इस पर अनर्गल राजनीति शोभनीय नही है।
-नरेश कानूनगो, बेंगलूरु, कर्नाटक
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होगा चुनावों पर असर
पुडुचेरी में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। चार विधायक पार्टी छोडऩे के बाद और एक विधायक को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण सरकार अल्पमत का सामना कर रही है। उधर, किरण बेदी को उप राज्यपाल के पद से हटा दिया गया है। पुडुचेरी में सत्ता के समीकरण बदल चुके हैं। पुडुचेरी में जब से कांग्रेस की सरकार का गठन हुआ है, तब से सरकार उप राज्यपाल किरण बेदी के साथ दुर्व्यवहार करती रही है। पुडुचेरी विधानसभा के चुनाव होने हंै। इस पूरे घटनाक्रम का चुनावों पर असर पड़ेगा।
-कांतिलाल मांडोत, सूरत
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कांग्रेस की गिरती साख का परिणाम
पुडुचेरी का राजनीतिक घटनाक्रम किसी रणनीति का परिणाम नहीं है, बल्कि कांग्रेस की साख घटने के कारण यह घटनाक्रम हुआ है। कांग्रेस के कुछ चापलूस, स्वार्थी नेता कांग्रेस पार्टी को गांधी परिवार से बाहर नहीं निकलने देना चाहते हैं। इसलिए कांग्रेस के कर्मठ और ईमानदार नेताओं का कांग्रेस से मोह भंग होता जा रहा है। हो सकता है कि आने वाले समय में राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में भी पुडुचेरी जैसा घटनाक्रम घटित हो सकता है।
-सुखलाल पाटीदार, मंदसौर
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राजनीति का परिणाम
पुडुचेरी उन केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल है, जहां विधानसभा भी मौजूद है। विरोध के लिए विरोध की राजनीति यहां आम बात है। आए दिन मुख्यमंत्री तथा उपराज्यपाल के बीच विवाद होता रहता था। ऐसी परिपाटी लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है और इससे जन मत का अनादर होता है। ऐसा लगता है कि यह राजनीतिक घटनाचक्र किसी राजनीति का परिणाम ही है, जो देश का दुर्भाग्य है।
-एकता शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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