इन शिविरों में बरती जा रही लापरवाही तो चावल के दाने जैसी है। सरकारी तंत्र कितना जन हितैषी है इसका एक और उदाहरण सहकारी बैंकों से ऋण लेने वाले किसानों के लिए चल रही सहकार जीवन सुरक्षा बीमा योजना का हाल है। तीन माह से इस योजना के तहत किसानों का बीमा नहीं हो रहा है। कंपनी ने शर्तों में बदलाव की मांग करते हुए योजना से हाथ खींच लिए हैं। मामला सुर्खियों में आया तब विभाग के मंत्री ने अफसरों से जवाब तलब किया और किसान हित में काम करने के निर्देश दिए। एक और उदाहरण मौसमी बीमारियों के प्रभावी नियंत्रण के लिए गठित सर्विलांस दलों के मौके पर न पहुंचने का है। सरकारी अमले की लापरवाही के उदाहरणों की फेहरिस्त ‘एक ढूंढो हजार मिलेंगे’ की तर्ज पर लम्बी होती चली जा रही है, पर न तो अमला सुधरने को तैयार है और न ही इन्हें सुधारने वाले ईमानदार प्रयास करते हैं। कड़ी कार्रवाई का संदेश देने के लिए सरकार तत्काल दूरस्थ स्थान पर तबादले के आदेश देती है, पर ये आदेश कारगर नहीं हैं।
तबादलों को सजा बना कर पेश करना भी नकारात्मकता लाता है। अफसर भी आधे मन से काम करता है, नतीजे में उस जगह के लोग भी परेशान होते हैं। ऐसे में कामकाज की समीक्षा और कार्रवाई के प्रावधानों व प्रक्रिया में आमूलचूल बदलाव की जरूरत है। वर्तमान प्रणाली में न तो अच्छा काम करने वालों को प्रोत्साहन मिल पाता है और न ही लापरवाहों पर लगाम लग पाती है। सरकार को नई तकनीक का सहारा लेते हुए लक्ष्य आधारित समीक्षा व्यवस्था लागू करनी होगी। इसके लिए आवश्यक होने पर सेवा नियमों और भर्ती नियमों में भी बदलाव लाना होगा। (अ.सिं.)