मामला गैर शैक्षणिक व शैक्षणिक कर्मचारियों की भर्तियों से कहीं आगे निकल गया है। अब तो कुलपतियों की नियुक्तियां भी पूरी तरह से विवादित होने लगी हैं। कुलपति की नियुक्ति के साथ उसके कनेक्शन की चर्चा होती है, उसकी शैक्षणिक योग्यता की नहीं। ये कथित सरस्वती के मंदिरों के बदले हुए माहौल का एक प्रतीक है। जब कनेक्शन से कुलपति आएगा तो विश्वविद्यालयों में कैसी परम्परा को आगे बढ़ाएगा। इस कनेक्शन का एक भाई है, जिसे करप्शन कहते हैं। दोनों साथ-साथ चलते हैं। इनके कारनामे इनकी पुस्तकों व रिसर्च पेपर्स से कहीं ज्यादा सुर्खियों में रहते हैं। अगर यह सब कुछ और समय चलता रहा, तो निश्चय ही हमारी उच्च शैक्षणिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाएगी। उच्च शिक्षा का निजीकरण पहले ही दीमक की तरह शिक्षा को चाटकर खोखला करता ही जा रहा है। ऐसे में अगर राज्य पोषित विश्वविद्यालयों में भ्रष्ट आचरण वाले कुलपतियों से जुड़े विवाद उठते रहे तो ये विश्वविद्यालय शो-पीस बनकर रह जाएंगे। वैसे भी विश्वविद्यालय डिग्री बांटने के कारखाने बनकर रह गए हैं। अब ये रोजगार का रास्ता नहीं दिखाते, बल्कि तिकड़मबाजी का पाठ पढ़ाते हैं। अगर इनका वातावरण सुधारना है तो पारदर्शितापूर्ण तरीके से उच्च कोटि के शिक्षकों को ही कुलपति बनाना चाहिए। (सं.पु.)