ओपिनियन

बड़ा सवाल, क्या केंद्र सरकार ने कृषि विधेयक पास कराने में जल्दबाजी की

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था, लोगों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया दी। पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

नई दिल्लीSep 22, 2020 / 05:36 pm

shailendra tiwari

Agriculture

हर निर्णय में जल्दबाजी से हुआ नुकसान
केंद्र सरकार जल्दबाजी करके हर बार आधे-अधूरे कानून लाकर देश का बंटाधार करने का ही काम करती है। नोट बंदी भी सही से करते तो देश के आम नागरिक को यूं दो-दो हजार रुपए के लिए लाइन में नहीं लगना पड़ता, ना ही बार-बार नए नए नियम लाने पड़ते। फिर जीएसटी लागू किया। अगर ये ढंग से बनता, सरल होता, तो यह देश के लिए अच्छा होता। पर आज 3 साल बाद भी कोई ताल ठोक के नहीं कह सकता कि उसने जीएसटी को पूरा समझ लिया है। अब कृषि कानून भी जल्दबाजी में लाकर, ये खेती भी अडानी, अम्बानी को ही बेचेंगे। किसान अपने ही खेत मे इनका गुलाम बनकर रह जाएगा। सरकार को किसानों की इतनी ही चिंता है, तो उनको खाद और बीज नि:शुल्क दे दे। इससे कृषि की लागत घट जाएगी, तो भी किसान की आमदनी बढ़ जाएगी।
-अरुण गुप्ता कृष्णा नागर, कोटा
…………………..
सरकार पर भरोसा नहीं
अपने अन्य निर्णय जैसे जीएसटी, नोटबन्दी की तरह ही कृषि विधेयक पारित करवाने में सरकार ने जल्दबाजी से काम लेकर देश के किसान विशेषकर छोटे और साधनविहीन किसानों की नाराजगी मोल ली हैं। छोटे किसानों का यह मानना है कि इस बिल के आने से बड़े व्यापारी उनका शोषण करेंगे। उनकी फसल का न तो उचित दाम मिलेगा, न ही समय पर उन्हें पैसा प्राप्त होगा। हालांकि सरकार ने किसानों को आश्वस्त किया है कि सरकार समर्थन मूल्य पर फसल खरीद को बंद करने वाली नहीं है। फिर भी अन्नदाता को सरकार की बात पर विश्वास नही है। जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वह जनहित के कोई भी निर्णय ले, उससे पहले जनता को विश्वास में ले, जिससे असन्तोष नहीं उभरे।
-विनोद कटारिया, रतलाम
……………
विलंब ठीक नहीं
यह कहा जाता है कि अच्छा कार्य जितना जल्दी हो उतना ही अच्छा है। अत: कृषि विधेयक पारित कराने में भी सरकार की ओर से कोई जल्दबाजी नहीं हुई है। सदियों से कृषि माफियाओं के जाल में फंसे किसान को थोड़ी राहत मिलेगी। इस विधेयक के पारित होने से किसानों को अपनी फसल अपने अनुसार बेचने में न केवल आजादी मिलेगी, अपितु दलालों के कुचक्र एवं चंगुल से भी निजात मिलेगी। वे शोषण से भी मुक्त होंगे। आशा की जानी चाहिए कि इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी। किसान अधिक खुशहाल एवं स्वतंत्र होगा, जो देश हित में ही है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। अत: किसानों एवं कृषि विकास सम्बन्धी कानून व सुधार शीघ्रातिशीघ्र ही होने चाहिए, विलम्ब से न केवल किसान, अपितु देश का भी नुकसान होगा।
-श्याम सुन्दर कुमावत, किशनगढ, अजमेर
………………….
नुकसान ही होगा
मंडियों से बाहर काम करने वाले व्यापारी, वेयरहाउसेज, मिलर बगैर मंडी लाइसेंस एवं बिना मंडी टैक्स चुकाए जिंसों की खरीद फरोख्त कर सकेंगे, जिससे मंडियों में कार्यरत व्यापारी व आढ़तियों का व्यापार समाप्त हो जाएगा। मंडी के बाहर भावों में असमानता से वातावरण पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर हो जाएगा।
-मुकेश कुमार टेलर, जयपुर
……………..
कहां है लोकतंत्र
जब सरकार द्वारा बनाए कानून जनता को ही मंजूर नहीं हंै, तो फिर सरकार जबरदस्ती उनको लागू करवाकर किनको फायदा देना चाहती है। बड़े पैमाने पर विरोध के बाद भी अगर सरकार कानून लागू करने के लिए तैयार है, तो फिर लोकतंत्र कहां है? सब जानते हैं कि अभी कोविड महामारी फैली हुई है। इसके बावजूद लोग अपनी जान की परवाह ना करके कृषि बिल के विरोध के लिए इतने बड़े स्तर पर आंदोलन कर रहे हैं, तो कहीं ना कहीं कोई तो कमी रही होगी। फिर भी सरकार यदि ये कह रही है कि इससे एमएसपी और मंडी खत्म नहीं होगी तो फिर उनकी मांगे लिखित में मानने में क्या हर्ज है।
-शैलजा मंगलाव, हनुमानगढ़
…………………..़
संसद की गरिमा के खिलाफ
कृषि विधेयकों पर संसद में गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए थी। विपक्ष की आपत्तियों का जवाब देना चाहिए था। विपक्ष और देशवासियों को संतुष्ट करना चाहिए था। जरूरी होने पर कुछ संशोधन करने चाहिए थे, लेकिन सरकार ने बिना किसी चर्चा के जल्दबाजी में बिल को पास कराने से संदेह पैदा होता है। साथ ही हर एक बिल बिना चर्चा पास कराना संसद की गरिमा के भी खिलाफ है।
-रियासत अली, नोहर हनुमानगढ़
…………………
कृषक वर्ग की राय आवश्यक
भारत कृषि प्रधान देश है और यहां की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा कृषक वर्ग है। ऐसे में यदि किसान हित में कोई भी विधेयक तैयार होता है, तो उसे आनन-फानन में पारित करने की बजाय उस पर सबसे पहले किसान वर्ग की राय लेना अत्यवश्यक है। ऐसे महत्त्वपूर्ण विधेयकों को संसद से पारित करने से पहले प्रभावित होने वाले वर्ग की राय लेना आवश्यक हैा।
-योगेश मावरी, छोटी सादड़ी, प्रतापगढ़
………………….
यह तो बहुत पहले हो जाना चाहिए था
कृषि विधेयक पारित कराने में सरकार ने जल्दबाजी नहीं की है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से देश की तीन चौथाई जनता कृषि से जुड़ी हुई है। आजादी के 70 वर्ष बाद भी किसानों की समस्याएं जस की तस हैं। जो कानून अंग्रेजों ने बनाए थे, वे कानून आज भी किसानों को जकड़े हुए हैं। आजाद भारत में किसानों को बिचौलियों से आजाद कराने के लिए लाए गए कृषि विधेयकों को पारित कराने को जल्दबाजी कहना उचित नहीं होगा। यह तो बहुत पहले हो जाना चाहिए था।
-सत्येंद्र सिंह जादौन, दतिया
……………….
अनाज सुरक्षा को खतरा
केंद्र सरकार ने कृषि विधेयकों को जल्दबाजी में पारित करवाया है, क्योंकि वह जानती थी कि वोटिंग करवाएंगे तो ये विधेयक पारित नहीं हो पाएंगेा। राजग भी इस मामले में एक मत नहीं था। इससे देश की अनाज सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाएगा। ये विधेयक राज्यों से कृषि संबंधित अधिकार छीनने वाले हैं। इससे छोटे और मध्यम किसान बर्बाद हो जाएंगे।
-अशोक कुमार शर्मा, झोटवाड़ा, जयपुर
……………….
अब किसान आजाद है
कृषि विधेयक पारित करवाने में केंद्र ने जल्दबाजी नहीं की है। अभी देश पूर्णरूप से कृषि पर ही टिका है। यही समय था किसानों के हित में फैसला करने का। अब किसान आजाद हैं। अब देश का किसान ताकतवर बनेगा
-शिवम पारीक, रूपपुरा, कुचामन शहर
………..
सरकार पर किसका दबाव है?
संसद में जिस तरीके से कृषि विधेयक पारित हुए हैं, उसने इस बात को साबित कर दिया कि अब सरकार को न तो विपक्ष की जरूरत है और न ही किसी संसद की और उससे आगे बढ़कर न किसी चुनाव की। जिस देश की आधी से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर हो और जिसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान हों, उसके लिए सरकार कोई कानून बनाए, लेकिन उसके किसी नुमाइंदे से पूछा तक न जाए। क्या यह किसी जीवित लोकतांत्रिक व्यवस्था का लक्षण है? किसी बिल को पारित कराने से पहले उसके तमाम हितधारकों से बातचीत होनी चाहिए। इसमें किसी किसान या फिर उसके नेता से राय-मशवरे की बात तो दूर सदन में सभी कानून निर्माताओं तक को अपना पक्ष नहीं रखने दिया गया। आखिर क्या जल्दबाजी थी इस विधेयक को पारित कराने की? कोरोना महामारी के दौर में इन विधेयकों को पारित किया जाना क्या उचित था? किस बात का दबाव है सरकार पर?
-डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
…………………
किसानों की मुश्किल
भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारे देश का पेट भरने वाला अन्नदाता हमेशा ही मुश्किलों में घिरा रहता है। कभी प्रकृति की मार, कभी खाद-बीज के लिए संघर्ष, कभी फसल के उचित भाव के लिए मशक्कत। हर बार किसान अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है। हाल ही में केंद्र सरकार के कृषि बिल पर कुछ राज्यों के किसान आंदोलन करने को विवश हो गए। केंद्र सरकार ने कृषि बिल पर जल्दबाजी की। कुछ दल वोट बैंक की राजनीति करने के लिए किसानों का बरगला रहे हैं। अच्छा होता सभी दल किसानों के लिए एक होकर उन्हें फसल का उचित दिलाने की कोशिश करते।
-पूनमचंद सीरवी, कुक्षी धार, मध्य प्रदेश
………….
क्यों की जल्दबाजी
कृषि विधेयक पारित करवाने में केन्द्र सरकार ने बहुत जल्दबाजी की है। भारत को किसानों का देश कहा जाता है। देश का बड़ा तबका खेती-किसानों पर निर्भर है। इसके बावजूद देश की संसद में किसानों के मुद्दे पर कभी सार्थक बहस होती ही नहीं, यह वाकई चिंता की बात है। संसद का सत्र कोरोना काल के चलते विपरीत परिस्थितियों में शुरू हुआ तो उम्मीद थी कि देश के हालात पर चर्चा होगी। मायूस चेहरों पर मिल बैठकर सहमति निकाली जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
-मुकेश जैन चेलावत, पिड़ावा, झालावाड़
………………………
सरकार ने सही किया
गत कुछ वर्षों में किसानों को अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाने के कारण किसान हतोत्साहित हुए। परिणामत: किसानों की आत्महत्या के केस भी बढ़े। किसानों की फसल का सही मूल्य ना मिल पाने के कई कारण है जिनमें मुख्यत: हैं-लागत के अनुरूप फसल का उत्पादन ना होना, बिचौलियों का हस्तक्षेप और बड़े विक्रेताओं का छोटे विक्रेताओं पर भारी पडऩा। किसान देश की आधारशिला का प्रमुख अंग हैं। ऐसे में किसानों को स्वावलंबी बनाने के लिए नए विधेयकों के पारित होने में देरी से देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ से अधिक कुछ नहीं होता। अत: सरकार ने सही किया है।
-निभा झा,जामनगर, गुजरात
……………
विपक्ष को विश्वास में लेना था
केन्द्र सरकार ने कृषि विधेयकों को पारित करवाने में बहुत ही जल्दबाजी की है। उसने विपक्ष को विश्वास में नहीं लिया। मात्र अपने स्वार्थ की खातिर हड़बड़ी में विधेयक पारित कर दिया। हर सरकार अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए मनचाहे कानून बनाने लगी है, जो न्याय संगत बात नहीं है। सरकार को पहले इस मसले पर विपक्ष के साथ बैठकर खुली चर्चा करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।
-सुनील कुमार माथुर, जोधपुर
………………………
चौपट हो जाएगी खेती
निश्चित रूप से कृषि विधेयक वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कुछ समय बाद में ही पारित करने चाहिए थे। यह वर्तमान कोरोनावायरस के कारण जल्दबाजी में लिया गया फैसला लग रहा है। इससे किसानों की आर्थिक व्यवस्था चरमरा जाएगी। कृषि एवं खेती पूरी तरह चौपट हो जाएगी।
-महेश आचार्य, नागौर
………………….
किसान होगा बिचौलियों से मुक्त
संसद से पारित कृषि विधेयक किसानों के हित में हैं। इन विधेयकों के कानून बन जाने के बाद किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी और किसान बिचोलियों के चुंगल से भी मुक्त हो जाएंगे। किसान अपनी मर्जी से अपनी फसल का मोलभाव तय कर पाएगा और अपनी फसल अपने हिसाब से बेच पाएगा। इसलिए केंद्र ने कृषि विधयेक पारित कराने में कोई जल्दबाजी नहीं की, बल्कि ये तो वर्तमान समय की मांग थी।
-कुशल सिंह राठौड़, कुड़ी भगतासनी, जोधपुर
……….
केंद्र सरकार की हठधर्मिता
विपक्ष का यह आरोप सही ही लगता है कि मंडियों का अंत होगा और किसान अपने ही खेतों में मजदूर बनकर रह जाएंगे। बड़े कॉर्पोरेट व कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट के नाम पर किसानों का शोषण करेंगी। एमएसपी न देने की साजिश लगती है। केंद्रीय मंत्री का मंत्री पद से इस्तीफा, विपक्ष व किसानों द्वारा आंदोलन की चेतावनी से साफ है की सरकार ने ठीक नहीं किया है।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
…………..
बढ़ेगी जमाखोरी और कालाबाजारी
संसद में कृषि विधेयक बिल जल्दबाजी में पारित किए गए। सड़क से लेकर संसद तक इन बिलों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन सरकार ने किसानों की एक न सुनी। भाजपा के सबसे पुराने दल सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने भी इस बिल का विरोध किया। इस बिल पर संसद में विस्तार से चर्चा होनी चाहिए थी।साथ ही साथ केंद्र सरकार को राज्यों से भी इस पर राय लेनी चाहिए थी। नए कानूनों से किसानों की हालत और खराब हो जाएगी और कृषि उत्पादों की जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ जाएगी,जिससे महंगाई भी बढ़ेगी।
-वसीम अख्तर, मांगरोल, बारां

Home / Prime / Opinion / बड़ा सवाल, क्या केंद्र सरकार ने कृषि विधेयक पास कराने में जल्दबाजी की

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.