ओपिनियन

पुलिस क्यों पस्त!

हीं भी कोई घटना-दुर्घटना हो तो राजनेता सबसे पहले पहुंचते हैं। समाधान निकालने के लिए नहीं, बल्कि अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए।

Jul 04, 2019 / 08:06 pm

dilip chaturvedi

question on police

पुलिस यों तो आमजन की सुरक्षा के लिए होती है। उससे उम्मीद भी यह की जाती है कि अपराधियों में खौफ बनाए रखे, साथ ही आमजन में विश्वास भी। कोई वारदात हो भी जाए तो तत्परता से अपराधियों की धरपकड़ की जाए। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर राजस्थान की राजधानी जयपुर तक में पिछले दिनों अमन-चैन का माहौल बिगाडऩे वाली घटनाओं को देखकर तो लगता है कि पुलिस की ढिलाई के कारण ही हालात नियंत्रण से बाहर हो गए। पुलिस तत्परता बरतती तो समय रहते हालात को काबू में किया जा सकता था।

पुरानी दिल्ली के हौज काजी इलाके में पार्किंग को लेकर हुए विवाद ने इतना तूल पकड़ा कि एक धार्मिक स्थल पर समाजकंटकों ने तोडफ़ोड़ तक कर दी। जयपुर में भी मासूम से बलात्कार के मामले में पुलिस की संवेदनहीनता के कारण ही शास्त्रीनगर इलाके में भय व तनाव का माहौल बना हुआ है। मासूम बालिकाओं से बलात्कार की दो अन्य शिकायतों के बाद भी पुलिस सोती नहीं रहती तो यह नौबत नहीं आती।

ये दो तो ताजा उदाहरण हैं। पुलिस की लापरवाह कार्यशैली के ऐसे उदाहरण आए दिन सामने आते रहते हैं। कहीं फरियादियों की सुनवाई तक नहीं होती तो कहीं समाजकंटक, पुलिस से गलबहियां करते नजर आते हैं। अलवर जिले के थानागाजी में सामूहिक बलात्कार प्रकरण में पुलिस के रवैये को लेकर तब पुलिस महानिदेशक रहे कपिल गर्ग ने अपनी सेवानिवृत्ति के आखिरी दिन अपने दर्द को साझा भी किया।

हत्या, बलात्कार व लूटपाट की आए दिन होने वाली घटनाओं को देखकर लगता है कि पुलिस का इकबाल भी पस्त होता जा रहा है। राजस्थान में तो बजरी माफिया से लेकर डकैत जगन गुर्जर तक पुलिस के इस इकबाल को खुलेआम चुनौती देते नजर आए। पुलिस कप्तान तक पर जानलेवा हमला होने लगे तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपराधियों के इरादे कितने खतरनाक होने लगे हैं। अपराधी की कोई जाति व समुदाय नहीं होता। लेकिन चिंता तो तब होती है जब कानून को हाथ में लेने वाले प्रकरणों को भी साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश होती है। राजनेता भी आग में घी डालने का काम करने लगे हैं।

कहीं भी कोई घटना-दुर्घटना हो तो राजनेता सबसे पहले पहुंचते हैं। समाधान निकालने के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए। तभी आकाश विजयवर्गीय जैसे लोग विधायक पद की गरिमा ताक पर रख सरकारी कारिंदों की बैट से पिटाई करने के बाद भी दंभ भरे बयान देते नजर आते हैं। कई प्रकरणों में राजनीतिक लोग ही अपराधियों का पक्ष लेते नजर आते हैं। पुलिस बेड़े में अच्छे-बुरे सब तरह के लोग हैं। लेकिन ऐसी घटनाएं न केवल पुलिस का मनोबल कम करती हैं बल्कि आम जन का विश्वास भी खत्म करती है। जरूरत जनता के पुलिस पर भरोसे को कायम रखने की है।

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