राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष पद से आजाद को विदाई देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी भावुक हो गए थे। उन्होंने आजाद की तारीफों के पुल बांधे थे। उन्हें अपना दोस्त बताया था। तभी भाजपा के कुछ नेताओं ने कहा था कि अगर आजाद को उनकी पार्टी फिर राज्यसभा में नहीं लाती है, तो भाजपा उन्हें यह मौका देने के लिए तैयार है। जम्मू जमावड़े में आजाद का मुद्दा भी जोर-शोर से गूंजा। इस मंच से आजाद के साथ-साथ कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, भूपिंदर सिंह हुड्डा, राज बब्बर आदि ने कांग्रेस नेतृत्व को जमकर खरी-खोटी सुनाई। यह घटनाक्रम ऐसे समय घूमा है, जब कांग्रेस पांच राज्यों के चुनावी समर में उतरने की तैयारियां कर रही है। पार्टी में असंतोष की चिंगारी को समय रहते नहीं दबाया गया, तो लम्बे समय से संक्रमण काल से गुजर रही कांग्रेस का बेड़ा गर्क होना तय है। उसके निष्ठावान कार्यकर्ताओं का समुद्र पहले ही सूख चुका है। अब दिग्गज नेता भी उसे आंखें दिखा रहे हैं।
दरअसल, कांग्रेस के लगातार सिमटते जनाधार के लिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही जिम्मेदार है, जो वंशवाद और परिवारवाद को तिलांजलि नहीं दे पा रहा है। घुमा-फिराकर कांग्रेस में सत्ता-केंद्र सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी के इर्द-गिर्द घूमता है। पार्टी की लस्त-पस्त हालत पर इन तीनों में से किसी का ध्यान नहीं है। राहुल गांधी ने सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना को सियासत मान लिया है। उन्हें अपने सलाहकारों के साथ कांग्रेस की दयनीय हालत पर विचार-विमर्श करने की फुर्सत नहीं है। कांग्रेस की सत्ता पांच राज्यों तक सिमट गई है। पार्टी के कमजोर ढांचे को दुरुस्त नहीं किया गया तो उसके और संकुचन को टालना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होगा।